भीषण ठंड झेलने को रहें तैयार, 'चिल्ले कलां' आज से
नवीन नवाज, जम्मू : शुक्रवार सुबह जब कश्मीर में लोग घरों के किवाड़ खोलेंगे तो 'चिल्ले कलां' दस्तक दे च
नवीन नवाज, जम्मू : शुक्रवार सुबह जब कश्मीर में लोग घरों के किवाड़ खोलेंगे तो 'चिल्ले कलां' दस्तक दे चुका होगा, लेकिन उम्मीद के मुताबिक, बर्फ की सौगात लेकर नहीं आएगा। इस बार वह सूखी शीतलहर के साथ आएगा। सूखी ठंड के कारण वीरवार तड़के वादी में न्यूनतम तापमान को सामान्य -1.5 डिग्री सेल्सियस से और नीचे -4.9 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा दिया है। उसकी आमद के साथ दिन का अधिकतम तापमान गिरना शुरू होगा। वादी में लोगों की दिनचर्या, खान-पान व पहनावा में बदलाव आएगा। नदी-नालों में पानी जमा जाएगा।
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क्या होता है चिल्ले कलां
कश्मीर में सर्दियों के तीन परंपरागत मौसम हैं, जिनमें सबसे ज्यादा भीषण ठंड वाला 40 दिन का चिल्ले कलां है। इसके बाद चिल्ले खुर्द और चिल्ल बाईच आते हैं। चिल्ले कलां मूलत: फारसी भाषा का शब्द है। चिल्ला चालीस दिन और कलां का मतलब बड़ा। सदियों के सबसे ठंडे 40 दिन। पहले इस मौसम को कश्मीर में शिशिर मास कहा जाता था, लेकिन इस्लाम के कश्मीर में आने और फारसी का प्रभाव बढ़ने के साथ शिशिर मास धीरे-धीरे चिल्ले कलां हो गया। चिल्ले कलां 21 दिसंबर से जनवरी के अंत तक चलता है।
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बदलती वैश्विक जलवायु से चिल्ले कलां भी प्रभावित
30 साल पहले तक कश्मीर में चिल्ले कलां का मतलब उच्चपर्वतीय व मैदानी इलाकों में अक्सर हिमपात या बारिश। खेत खलिहानों से लेकर गली-बाजारों तक बर्फ की बिछी चादर। अगर हिमपात न हो तो आसमान में अक्सर धुंध व बादल। सूरज कभी निकले तो तपिश गर्मी का अहसास कम और बर्फीली हवाओं के थपेडे़ अहसास ज्यादा कराए। अब ऐसा नहीं हो रहा है। चिल्ले कलां में बारिश और हिमपात कम हो गया है। हिमपात के दौर दो से तीन ही होते हैं। सूरज भी अब पहले से कहीं ज्यादा चमकता है। जलवायु परिवर्तन का असर इस बार भी चिल्ले कलां पर नजर आ रहा है। शुक्रवार को चिल्ले कलां का पहला दिन है। हिमपात नहीं होगा। पहले सप्ताह के दौरान हिमपात की संभावना नहीं है। श्रीनगर स्थित मौसम विभाग के निदेशक सोनम लोटस ने कहा कि अगले तीन-चार दिनों तक हिमपात की कोई संभावना नहीं है। अगले 40 दिनों तक न्यूनतम और अधिकतम तापमान, दोनों में गिरावट आएगी। हिमपात और बारिश भी होगी। कुछ वर्षो के दौरान चिल्ले कलां के बजाय चिल्ले खुर्द और चिल्ल बाईच के दौरान सबसे ज्यादा हिमपात हुआ है। इसे आप जलवायु परिवर्तन का असर भी कह सकते हैं। हरिसा और सूखी सब्जियों का मौसम
हरिसा और सूखी-सब्जियां अब सारा साल ही कश्मीर में उपलब्ध रहती हैं। चिल्ले कलां में इनकी मांग बढ़ जाती हं। पहले यह सर्दियों मे मिलती थी। इस समय करेला, टमाटर, शलगम, गोभी, बैंगन समेत कई अन्य सब्जियां और सूखी मछली भी बाजार में आ चुकी है। इन्हें स्थानीय लोग गर्मियों में सूखाकर रख लेते हैं ताकि सर्दियों में जब कश्मीर का रास्ता बंद हो जाए तो इनको पकाया जाता है। गोश्त के शौकीनों के लिए हरीसा की दुकानें पूरे कश्मीर में सज चुकी हैं। हरीसा-गोश्त, चावल व मसालों के मिश्रण से तैयार होने वाला विशेष व्यंजन है। हरिसा शरीर को अंदर से गर्म रखने के साथ कैलोरी को भी बनाए रखता है।
पहनावा भी बदलेगा
चिल्ले कलां के दौरान कश्मीर में लोगों का पहनावा बदल जाता है। मोटे ऊनी कपड़ों के साथ फिरन पहनने वालों की तादाद बढ़ जाती है। फिरन कश्मीर का पारंपरिक पहनावा है। गर्म कपड़े से बना फिरन कई रंगों में और डिजायनों में उपलब्ध रहता है। फेदर जैकेट और फर जैकेट की मांग बढ़ जाती है। नल जमेंगे
चिल्ले कलां के दौरान वादी में पेयजल आपूíत अक्सर प्रभावित होती है। पारा जमाव ¨बदु के नीचे चला जाता है। दवाब से पाइप फट जाती हैं। अगर पेयजल आपूíत की पाइपें ठीक रहती हैं तो लोगों के घरों में नलों का पानी जमा रहता है। सुबह नौ-दस बजे के बाद ही नलों में पानी का बहाव शुरू होता है। स्थानीय लोग पाइपों को मोटे गर्म कपड़ों के नीचे या फिर घास से ढक कर रखते हैं। कई लोग बाजार में उपलब्ध थर्माेकॉल भी इस्तेमाल करते हैं। नहीं माहौल भी बदल गया है
वयोवृद्ध कश्मीरी साहित्यकार व कवि जरीफ अहमद जरीफ ने कहा कि अब कहां चिल्ले कलां। सबकुछ बदल गया है। गर्मियों में घरों में औरतें सर्दियों के लिए चिल्ले कलां के लिए तैयारियां करती थी। राशन जमा किया जाता था, सब्जियां सुखाई जाती थी। बच्चों की खूब मौज रहती थी। स्कूलों में छुट्टियां और सिर्फ बर्फ में खेलना। रसोई घर में चूल्हे के पास बैठना और हरीसा (मीट, चावल और मसालों का मिश्रण) खाना। अब यह सब कहां।