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फिर मुख्यधारा में लौटने की जद्दोजहद में कश्मीर के पूर्व आइएएस शाह फैसल, रिहा होने के बाद बदले सुर

बीते रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात की तारीफ कर एक बार फिर चर्चा में आए कश्मीर के पूर्व आइएएस शाह फैसल। कभी अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का विरोध करने वालों में शामिल रहे फैसल की मुख्यधारा में लौटने की वजह तलाशती रिपोर्ट

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 06 Feb 2021 12:07 PM (IST)Updated: Sat, 06 Feb 2021 12:07 PM (IST)
फिर मुख्यधारा में लौटने की जद्दोजहद में कश्मीर के पूर्व आइएएस शाह फैसल, रिहा होने के बाद बदले सुर
नए अवतार में शाह फैसल। फाइल फोटो

नवीन नवाज, श्रीनगर। यूथ आइकॉन, नौकरशाह और फिर सियासतदान। पिछले एक दशक में शाह फैसल कई अवतार में सामने आए और हर अवतार में र्सुिखयां बटोरते दिखे। अब सियासत और नौकरशाही से दूरी के बावजूद वह देश और दुनिया में र्सुिखयां बटोर रहे हैं। इंटरनेट मीडिया पर उनकी सक्रियता जम्मू कश्मीर ही नहीं पूरे देश में उत्सुकता का माहौल पैदा किए है। नए अवतार में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुरीद नजर आते हैं। वह उसी भारत को आज जगतगुरु की भूमिका में देख रहे हैं, जहां वह कुछ समय पहले मुस्लिमों को हाशिए पर बताते थे। सब उनके अगले कदम पर कयास लग रहे हैं। उनके बदले सुर को एक खेमा घर वापसी करार दे रहा है। वहीं कुछ लोग इसे मुख्यधारा में लौटने की जद्दोजहद के तौर पर देख रहे हैं।

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वर्ष 2009 की यूपीएससी परीक्षा में टाप करने वाले शाह फैसल कश्मीर में युवाओं के लिए आइकॉन बन गए और आज जब सियासत से अलग होने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करने पर इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय जिहादी उनकी आलोचना करते हैं तो सैकड़ों कश्मीरी युवा उनकी ढाल बनकर खड़े नजर आते हैं। कभी कश्मीर में गेटवे ऑफ मिलिटेंसी (आतंक के द्वार) के नाम से कुख्यात कुपवाड़ा जिले के लोलाब में रहने वाले शाह फैसल ने आतंकवाद की पीड़ा को खुद झेला है। आतंकियों की आलोचना करने और उन्हें शरण न देने की कीमत उनके पिता ने वर्ष 2002 में अपनी जान देकर गंवाई थी।

वर्ष 2008 में श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन के दौरान कश्मीर में जिस तरह से अलगाववादियों ने सिलसिलेवार बंद और पथराव से हालात बिगाड़ने की साजिश रची, उस समय शाह फैसल नई उम्मीद बनकर आए थे। उन्हें आम कश्मीरी युवाओं का असली नुमाइंदा कहा गया। केंद्र सरकार ने उन्हें जम्मू कश्मीर कैडर ही प्रदान किया। उन्होंने शिक्षा विभाग में फैली यूनियनबाजी को बंद कराया और शिक्षकों को वापस कक्षाओं में जाने पर मजबूर कर दिया। मई 2018 में फुब्राइट- नेहरु मास्टर्स फेलोशिप के आधार पर वह हावर्ड कैनेडी स्कूल चले गए और करीब छह सात माह बाद वापस लौटे।

इंटरनेट मीडिया पर पहले जैसे सक्रिय लेकिन तेवर बगावती नहीं: खुद को सिस्टम का आदमी बताने वाले शाह फैसल जिस तरह आज इंटरनेट मीडिया पर सक्रिय हैं उसी तरह वह करीब तीन साल पहले सक्रिय थे। यह बात दीगर है आज उनके पुराने विवादास्पद ट्वीट नजर नहीं आते। विवादास्पद ट्वीट के कारण ही नोटिस भी जारी किया गया, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं बल्कि नौ जनवरी 2019 को इस्तीफा दिया। उनका यह इस्तीफा आज तक मंजूर नहीं हुआ है।

जेल से रिहाई के बाद बदले सुर: एक साक्षात्कार में फैसल ने कहा था कि कश्मीर में सियासत दो तरह से हो सकती है, या आप कठपुतली बन जाओ या फिर अलगाववादी। जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू किए जाने के खिलाफ वह कथित तौर पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का सहारा लेने के लिए विदेश जा रहे थे तो उन्हेंं दिल्ली एयरपोर्ट पर गिरμतार कर लिया गया। बीते साल तीन जून को रिहा होने के बाद उन्होंने पूरी तरह चुप्पी साध ली और 10 अगस्त 2020 को सियासत से अलग होने का एलान कर दिया। जेल से रिहाई के बाद से ही बदले-बदले नजर आने वाले शाह फैसल ने नौकरशाही में लौटने की इच्छा का संकेत देते हुए कहा था कि अवसर मिलने पर वह काम करेंगे। माना जा रहा है कि उनकी किसी तरह सिविल सेवा या फिर अन्य किसी महत्वपूर्ण पद पर वापसी हो सकती है।

रिहा होने के बाद बदले सुर: एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा मैंने बेशक कहा था कि कश्मीर में सियासत दो तरह से होती है आप कठपुतली बनो या फिर अलगाववादी। इसके आगे मैंने जो कहा वह भी सुना जाना चाहिए। मैंने कहा था कि न मैं कठपुतली हूं और न अलगाववादी। मैं इस मुल्क का शहरी हूं, मुझे इसका फख्र है और मैं इसके भविष्य में भागीदार हूं।

बीच का कोई रास्ता नहीं

  • अनुच्छेद 370 को 1949 में संसद ने ही संविधान में शामिल किया था और 2019 में इसे हटाया गया है। लोकतंत्र में राष्ट्रीय सहमति और सम्मान आवश्यक है
  • अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद कश्मीरियों को दिल-दिमाग से भारत के साथ रहना है या फिर पूरी तरह खिलाफ होकर। अब बीच का कोई रास्ता नहीं है

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