Move to Jagran APP

29 साल पहले शुरू हुआ था कश्मीरी पंडितों का 'वनवास', भूल नहीं पाते हैं आज का दिन

Kashmiri Pandits का निर्वासन और पुनर्वास देश की सियासत में सिर्फ सियासी मुद्दा है। कश्मीरी पंडित कैसे वहां रहेगा, जब वह मानसिक रूप से खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 19 Jan 2019 10:02 AM (IST)Updated: Sun, 20 Jan 2019 01:06 AM (IST)
29 साल पहले शुरू हुआ था कश्मीरी पंडितों का 'वनवास', भूल नहीं पाते हैं आज का दिन
29 साल पहले शुरू हुआ था कश्मीरी पंडितों का 'वनवास', भूल नहीं पाते हैं आज का दिन

श्रीनगर, नवीन नवाज। भगवान राम का वनवास 14 साल में खत्म हो गया था। हमें तो 29 साल हो रहे हैं। उम्मीद नहीं कि यह मेरे जीते जी खत्म होगा। अपनी मिट्टी से बेगाने हुए कश्मीरी पंडित समुदाय के आरएल हंडु भावुक हो उठते हैं। जीवन के 70 वसंत देख चुके हंडु ने कहा जब कोई मुझे कहता है कि रिटायर्ड जिंदगी का मजा ले रहे हो तो मेरा जवाब होता है, निर्वासन झेल रहा हूं। अपनी जड़ों से उजडऩे का दंश झेलने वाले वह अकेले नहीं हैं, उन जैसे हजारों हैं जो जम्मू से बाहर देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में घर लौटने की आस में जी रहे हैं।

loksabha election banner

कश्मीरी पंडित जो धरती पर स्वर्ग कहलाने वाले कश्मीर के मूल नागरिक हैं, वे आज घाटी में लौटने को तरस रहे हैं। ऐसा नहीं कि कश्मीर में पंडित समुदाय नहीं है। कुछ हैं, लेकिन वह अपने ही घर में बेगाने नजर आते हैं। कोई भी पंडित हो, चाहे वह घाटी में घुट-घुट कर जी रहा हो या वादी से बाहर पहचान के संकट से जूझ रहा हो। 19 जनवरी 1990 को नहीं भूलता। सिर्फ युवा पीढ़ी नहीं जानती उस समय क्या हुआ था। इस काले दिन का असर वह भी महसूस करती है। यह वह दिन था जब कश्मीर से पंडितों को जान से ज्यादा बहु-बेटियों की इज्जत बचाने के लिए रातों रात घर-बार छोड़ जम्मू के लिए निकल आए थे। कुछ जम्मू में रुक गए तो कुछ देश के अन्य राज्यों की तरफ।

कैसे शुरू हुई साजिश
19 जनवरी की तैयारी 1989 में शुरू हो चुकी थी। चार जनवरी 1990 को स्थानीय अखबारों में जिहादी संगठनों ने इश्तिहार छपवा पंडितों को कश्मीर छोडऩे या फिर इस्लाम कुबूल कर कश्मीर में निजाम ए मुस्तफा का हिस्सा बनने के लिए कहा था। पंडितों के मकानों व धर्मस्थलों पर हमले हुए। जब पलायन हुआ तो पंडितों को औने-पौने दाम पर मकान, जमीन,खेत खलिहान बेचने को मजबूर होना पड़ा। जिसने नहीं बेचा, वह बेचने के काबल नहीं रहा क्योंकि संपत्ति पर कब्जा हो गया था।

चुन चुन कर मारा गया
पनुन कश्मीर के चेयरमैन डॉ. अजय चुरंगु ने कहा कि कई लोग कहते हैं कि कश्मीर में पंडितों की तुलना में कश्मीरी मुस्लिम ज्यादा मरे हैं, लेकिन कोई यह नहीं सुनाता कि 1990 में पंडित समुदाय में डर व खौफ पैदा करने के लिए चुन चुन कर पंडित समुदाय के गणमान्य नागरिकों को मौत के घाट उतारा गया। पंडित समुदाय की महिलाओं के साथ दुष्कर्म और हत्या की घटनाएं हुई। गली-बाजारों पोस्टर लगाकर, मस्जिदों की लाउड स्पीकरों पर कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोडऩे या मरने का फरमान सुनाया जाता था। पंडितों को उनके घर से खदेड़ा गया है। हद यह है कि पंडितों के निर्वासन और एग्जोडस को विस्थापन का नाम दे दिया है। हमारे नाम पर सिर्फ सियासत होती है। पहले हमारा जिनोसाईड हुआ और आज उससे इन्कार हो रहा है। बीते 30 सालों में हम जिनोसाईड से डिनायल ऑफ जिनोसाईड पर पहुंचे हैं। यह देश की एकता व अखंडता के लिए सही नहीं है।

पनुन कश्मीर के संयोजक और साहित्यकार डॉ. अग्निशेखर ने कहा कि मूल प्रश्न तो यह है कि एक अभागी कौम ने राष्ट्रभक्ति का दंड भुगता है। आज वह अपने ही देश में निर्वासित है। उसके निर्वासन की उपेक्षा हो रही है। भारत को टुकड़े करने का नारा देने वालों की सुनी जा रही है, भारत बचाने की गुहार करने वालों को लताड़ा जा रहा है। ऐसा लगता है कि पंडित देश और देश के कर्णधारों के लिए फालतू लोग हैं,जिनकी किसी को जरूरत नहीं है। यही मुझे 30 वर्षों में समझ आया है।

19 जनवरी 1990 को भाजपा के सहयोग से वीपी सिंह की सरकार थी और आज भाजपा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व मे अकेली अपने दम पर सत्ता में है। हमारे लिए कुछ नहीं बदला। पंडितों को भुलाया और भुनाया जाता है। हम लोग देश की बड़बोलेपन और खामेशी की सियासत के शिकार हुए हैं। सवाल पुनर्वास का नहीं, यह भारत की धर्मनिरपेक्षता, सार्वभौमिकता और अखंडता का है। भारत सरकार को पहले तो रिवर्सन ऑफ जिनोसाईड करना होगा। विशेष कानून बनाना होगा। जिनोसाईड भारत के लिए नया शब्द है, क्योंकि यह हमारी परपंरा में नहीं था। पंडितों की यह हालत भारत के भविष्य का संकेत है।

क्या किसी ने पलायन पर खेद जताया
कश्मीरी हिंदु वेलफेयर सोसायटी से जुड़े चुन्नी लाल कहते हैं कि आज यहां सभी कहते हैं कि कश्मीरी पंडितों को वापस आना चाहिए। हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता और आतंकी अक्सर पंडितों की वापसी की बात करते हुए आज भारतीय सुरक्षाबलों को जिम्मेदार ठहराते हैं। क्या किसी ने पंडितो के पलायन के लिए कभी खेद जताया है। धार्मिक कटटरता के माहौल में कौन रहेगा, हम पर शर्तें लादी जाती हैं।

वापसी का हर संभव प्रयास किया : नेकां
नेशनल कांफ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर ने कहा कि हमने सत्ता में रहते हुए कश्मीरी पंडितों की वापसी का हर संभव प्रयास किया है। कश्मीरी पंडित तो हमारा हिस्सा हैं,हम उनके बिना अधूरे हैं। उनसे ज्यादा तो कश्मीर में नेकां के कार्यकर्ता मारे गए हैं, तो क्या हमने कश्मीर छोड़ दिया। कश्मीरी पंडितों को आना चाहिए। कश्मीरी मुस्लिम उनका सहयोग करता है और करेगा। रही बात उनहोंने घर बार क्यों छोड़ा, क्यों मारे गए और किसने मारा इन सभी बातों का पता लगाने के लिए हमारे नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्रूथ एंड रिकांसिलिएशन कमीशन के गठन की बात की है।

पूरे कश्मीर ने पीड़ा झेली है
नेकां के टू्रथ एंड रिकांसिलिएशन कमीशन को महज जुमला करार देते हुए पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के वरिष्ठ नेता नईम अख्तर ने कहा कि कश्मीरी पंडितों का पलायन एक मानवीय मुद्दा है। उनके पलायन से पूरे कश्मीर ने पीड़ा झेली है। वह बंदूक के डर से गए थे, कुछ कहते हैं कि तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन सिंह ने भगाया था। जब यहां हालात बिगड़े तो उस समय नेशनल कांफ्रेंस की ही सरकार थी। हमने सत्ता में रहते हुए उनके लिए यहां कपोंजिट कालौनियां बनाने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज भी लागू किया है।

पुनर्वास देश की सियासत में सिर्फ सियासी मुद्दा
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ और पत्रकार आरसी गंजू ने कहा कि कश्मीरी पंडितों का निर्वासन अथवा एग्जोडस और पुनर्वास देश की सियासत में सिर्फ सियासी मुद्दा है। कश्मीरी पंडित कैसे वहां रहेगा,जब वह मानसिक रूप से खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करेगा। रोजगार के नाम पर जो कश्मीरी पंडित कश्मीर गए हैं,वह कैसे डर कर वापस आए हैं, यह कोई सुनाता है। कश्मीर में जब भी हालात बिगड़ते हैं तो उनकी कॉलोनियां पर पत्थर क्यों गिरते हैं। कश्मीर में अगर किसी जगह कोई एक कश्मीरी पंडित मरता है तो उसके संस्कार में कश्मीरी मुस्लिमों के शामिल होने को बढ़ा-चढ़ाकर क्यों पेश किया जाता है, इसे समझने जरूरत है।

तीन लाख कश्मीरी पंडित परिवार रहते थे
कश्मीर में आतंकवादका दौर शुरु होने से पहले वादी में 1242 शहरों, कस्बों और गांवों में करीब तीन लाख कश्मीरी पंडित परिवार रहते थे। आज वादी में 242 जगहों पर सिर्फ 808 परिवार रह गए हैं। जिहादियों के फरमान के बाद कश्मीर से बेघर हुए कश्मीरी पंडितों में से सिर्फ 65 हजार कश्मीरी पंडित परिवार जम्मू में पुनर्वास एवं राहत विभाग के पास दर्ज हुए।

एक ही कश्मीरी परिवार लौटा
कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार द्वारा जारी पैकेजों के तहत सिर्फ एक ही कश्मीरी पंडित परिवार बीते 30 सालों के दौरान कश्मीर लौटा है।

2200 पदों पर ही नियुक्तियां
प्रधानमंत्री पैकेज के तहत प्रदान की गई नौकरियों में लगभग 2200 पदों पर ही नियुक्तियां हुई हैं।

अलग होमलैंड चाहिए
कश्मीरी पंडित चाहते हैं कि उनके लिए कश्मीर में एक अलग होमलैंड बने जिसे केंद्र शासित राज्य का दर्जा मिले। राज्य के सभी सियासी दल इसका विरोध करते हैं। कांग्रेस व भाजपा भी प्रत्यक्ष रूप से इसकी समर्थक नजर नहीं आती। कश्मीरी पंडित चाहते हैं कि 1990 के दशक में उनके मकानों व जमीन जायदाद पर हुए कब्जों को केंद्र व राज्य सरकार छुड़़ाए या फिर जिन लोगों को अपनी सपंत्ति बेचनी पड़ी थी, उसे वह वापस दिलाई जाए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.