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प्रदेश में आयुर्विज्ञान के लिए 14 और सीटें मंजूर

प्रदेश के राजकीय मेडिकल कालेजों और जिला अस्पतालों के लिए आयुर्विज्ञान में राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (एनबीईएमएस) ने पीजी पाठ्यक्रमों के लिए 14 और सीटों को मंजूरी प्रदान की है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 09 Dec 2021 05:14 AM (IST)Updated: Thu, 09 Dec 2021 05:14 AM (IST)
प्रदेश में आयुर्विज्ञान के लिए 14 और सीटें मंजूर
प्रदेश में आयुर्विज्ञान के लिए 14 और सीटें मंजूर

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर: प्रदेश के राजकीय मेडिकल कालेजों और जिला अस्पतालों के लिए आयुर्विज्ञान में राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड (एनबीईएमएस) ने पीजी पाठ्यक्रमों के लिए 14 और सीटों को मंजूरी प्रदान की है। यह प्रदेश के विभिन्न स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा संस्थानों में जारी डीएम, एमसीएच और एमडी व एमएस के पाठ्यक्रमों में पहले से उपलब्ध सीटों के अतिरक्त हैं। अब इन सीटों की संख्या 140 हो गई है। इसके अलावा एनबीईएमएस ने मेडिकल साइंस में दो और सीटों की अनुमति देते हुए उप जिला अस्पताल कुपवाड़ा के जनरल मेडिसन विभाग को भी मान्यता दी है।

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अधिकारियों ने बताया कि कठुआ और डोडा स्थित दोनों मेडिकल कालेजों के अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कुपवाड़ा को जनरल मेडिसन विभाग में दो-दो सीटें दी गई हैं। अनंतनाग और राजौरी स्थित सरकारी मेडिकल कालेजों के लिए प्रसूति व स्त्री रोग विभाग के लिए चार-चार सीटों को मंजूरी मिली है, जबकि शेरे कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान सौरा को आपातकालीन चिकित्सा के लिए दो सीटों की मंजूरी दी गई है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जम्मू कश्मीर के निदेशक यासीन चौधरी ने बताया कि प्रदेश में डिप्लोमा आफ नेशनल बोर्ड कार्यक्रम के लिए विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों से 140 आवेदन मिले हैं। इनमें से 53 आवेदनों को मंजूरी दी गई है। उन्होंने बताया कि यह स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रशासकीय विग के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है। स्वास्थ्य संस्थानों की टीमों की निगरानी स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव विवेक भारद्वाज खुद कर रहे थे।

डीएनबी पाठयक्रमों को जिला अस्पतालों और नए मेडिकल कालेजों में भी शुरू किया गया है। पहले ये सिर्फ जम्मू और श्रीनगर में स्थित दो सरकारी मेडिकल कालेजों के अलावा शेरे कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान सौरा में ही उपलब्ध थे। अन्य कालेजों और अस्पतालों में इन्हें शुरू करने से न सिर्फ जम्मू कश्मीर में चिकित्सा विशेषज्ञों की कमी दूर होगी, बल्कि श्रीनगर व जम्मू के मेडिकल कालेज पर भी बोझ कम होगा।


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