सुख की तलाश में दुखी होता है मनुष्य: स्वामी जी
संवाद सहयोगी सुंदरबनी ज्ञान गंगा आश्रम सुंदरबनी के निर्माता पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 महामंडलेश्
संवाद सहयोगी, सुंदरबनी : ज्ञान गंगा आश्रम सुंदरबनी के निर्माता पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर विश्वात्मा नंद सरस्वती जी महाराज ने आश्रम में आयोजित कथा में उपस्थित श्रद्धालुओं को अपने प्रवचनों से निहाल किया। स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य को इस संसार में ज्ञान की तलाश करनी चाहिए, लेकिन इसके विपरीत वह इस संसार में ईष्र्या को अपनाते हुए सुख की तलाश में लग जाता है। इससे वह दुखों में गिरता जाता है। स्वामी जी ने कहा कि दुख सबके जीवन में होता है चाहे वह छोटा हो चाहे बड़ा हो, लेकिन यह कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए कि यह दुख किसकी वजह से है। लेकिन यह कारण जानने बिना ही मनुष्य ईष्र्या करके अधिक धन कमाना चाहता है। एक दूसरे से बड़ा होना चाहता है। इसके लिए वह धन उसके दुख का कारण बन जाता है। उन्होंने कहा कि एक दुख को समाप्त करने के लिए मनुष्य एक उपाय करता है। लेकिन एक समय ऐसा आता है वही उपाय उसके लिए फिर से दुख का कारण बन जाता है।
उन्होंने कहा कि परमात्मा का सिमरन करने से ही मनुष्य ज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ता है, लेकिन कई बार विपरीत बुद्धि होने के कारण वह परमात्मा के सिमरन को छोड़कर मोह माया के चक्कर में जुट जाता है। इससे वह दुखों से घिर जाता है, लेकिन मनुष्य ही संसार में एक ऐसा प्राणी है जो जीवन भर धन कमाकर उसका संग्रह करता है और उसी से वह दुख पाता है। स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य के अतिरिक्त कोई भी प्राणी अपने जीवन शैली को चलाने के लिए धन एवं भोजन का संग्रह नहीं करता। इसके बाद भी वह सुखी जीवन जीता है। इन तथ्यों को समकक्ष रास्ता रखते हुए स्वामी जी ने कहा कि मनुष्य को जीवन में मात्र धन का संग्रह जरूरत के मुताबिक ही करना चाहिए अन्यथा उसका दुरुपयोग भी संभव है। कथा के समापन पर मधुर आरती का गुणगान हुआ। स्वामी जी ने सभी भक्तों को आशीर्वाद देकर प्रसाद भेंट किया।