अक्षय तृतीया पर यज्ञोपवित संस्कार
जागरण संवाददाता, राजौरी महा मंडलेश्वर 1008 राजगुरु स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती जी महाराज की अध्य
जागरण संवाददाता, राजौरी
महा मंडलेश्वर 1008 राजगुरु स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती जी महाराज की अध्यक्षता में ज्ञान गंगा आश्रम सुंदरबनी में अक्षय तृतीया क अवसर पर सामूहिक यज्ञोपवित संस्कार का आयोजन किया गया। जिसमें काफी संख्या में युवाओं व बालकों ने यज्ञोपवित धारण किया।
इस अवसर पर अपने प्रवचनों के माध्यम से संगत को निहाल करते हुए स्वामी जी ने कहा कि भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही धरा पर आए। स्वामी जी ने कहा कि यज्ञोपवित संस्कार धारण करने से बच्चों को धर्म का पालन करने चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे दिव्य शक्तिों की भी प्राप्ति संभव होती है। बच्चों को शुरू से ही सहीं मार्ग पर चलाने के लिए एवं धर्म का ज्ञान देने के लिए यज्ञोपवित संस्कार अहम है। इससे बच्चा कभी भी गलत संगत में नहीं जाता और वह हमेशा ही धर्म का पालन करने के साथ साथ लोगों की सेवा के कार्य में भी जुटा रहता है। इस लिए यज्ञोपवित संस्कार धारण करने के साथ साथ खीखा भी रखने के बाद नियमों का पालन करना भी जरूरी है। इस अवसर पर राजौरी, पुंछ, जम्मू, ऊधमपुर, कठुआ आदि कई क्षेत्रों से लोग अपने बच्चों को यज्ञोपवित संस्कार करवाने के लिए आश्रम लाए थे। अंत में हवन यज्ञ का आयोजन किया गया और पूर्ण आहुति के साथ यह कार्यक्रम संपन्न हुआ।
यज्ञोपवित धारण करने के बाद किन नियमों का पालन करना चाहिए।
-ब्रह्मचारी का पालन करना चाहिए और भूमि पर सोना चाहिए।
-दंड धारण करना चाहिए।
-गुरु आज्ञा का पालन करना चाहिए।
-झूठ नहीं बोलना चाहिए।
-धर्म शास्त्र के उपदेश का पालन करना चाहिए।
-मास मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
-जल में नहाते समय जल उछालना नहीं चाहिए।
-सूर्य को उदय होते एवं अस्त होते नहीं देखना चाहिए।
-दूसरों की ¨नदा नहीं करनी चाहिए।
-गुरु सेवा में हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
-अंधेरे में भोजन नहीं करना चाहिए।
--