आजादी के सात दशक बाद भी पहाड़ों पर रेंग रही जिंदगी
संवाद सहयोगी पुंछ जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद शहरी क्षेत्र तो आबाद ह
संवाद सहयोगी, पुंछ :
जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद शहरी क्षेत्र तो आबाद हो रहे हैं, लेकिन कस्बे से दूरदराज के पहाड़ी इलाके आज भी शासन और प्रशासन की नजरों से ओझल हैं। विकास की रथ पर सवार जम्मू कश्मीर के राजौरी जिले की सुंदरबनी तहसील में कुछ ऐसे गांव हैं जहां के लोग आज भी स्वास्थ्य, बिजली-पानी, शिक्षा व सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। सड़कों के अभाव में पहाड़ों पर रेंगते नजर आते हैं। कुछ मिनटों का सफर करने में घंटों लगता है। इनमें से एक सीमावर्ती क्षेत्र की अंतिम पंचायत नाह के वार्ड-पांच है। आजादी के सात दशक के बाद भी यहां के लोगों के जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ और ये लोग अपने पूर्वजों की तरह ही जीवन बसर करने को विवश हैं। वार्डवासियों में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आक्रोश है।
पहाड़ों पर बसे इस गांव की सबसे बड़ी परेशानी सड़क नहीं होने के कारण गांव विकास से अछूता है। किसान गेहूं की फसलें काटकर इकट्ठी कर चुके हैं लेकिन सड़क के अभाव में थ्रेशर मशीन गांव तक नहीं पहुंच पाती। यही वजह है कि यहां के लोग आज भी पुराने तरीके से गेहूं निकाल रहे हैं। ग्रामीणों ने आरोप लगाते हुए कहा कि हर चुनावी रैली में राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेता कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। गांव की भोली भाली जनता को विकास के सपने दिखाने के लिए योजनाओं का खाका खींचकर इनसे वोट हासिल कर लिए जाते हैं, लेकिन फिर गांव की तरफ नहीं देखा जाता है। गांव की महिलाएं शीला देवी प्रकाशो देवी ने बताया कि गांव में आज भी जब कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाता है तो उसे चारपाई पर उठाकर सड़क तक पहुंचाया जाता है। क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता इंसानियत संस्था के प्रधान नैनो बगवाल ने बताया कि हर प्रशासनिक मीटिग व जनता दरबार में सड़क निर्माण की मांग को बड़े जोर शोर के साथ ग्रामीण उठाते हैं, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ। ग्रामीणों का कहना है कि डिजिटल इंडिया में बीमार को अस्पताल पहुंचाने के लिए आज भी पालकी का सहारा लेना पड़ता है।
ग्रामीणों ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से गांव में जल्द से जल्द सड़क विकास कार्य शुरू करवाने की मांग की है, ताकि उन्हें किसी तरह की परेशानी ना हो। वहीं वार्ड-पांच की पंच ममता बगवाल का कहना है कि प्रशासनिक बैठक में वह गांव तक सड़क पहुंचाने की मांग उठाती है, लेकिन अभी तक सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है। वार्ड के लोगों को आज तक पक्की सड़क नसीब नहीं हो सकी है। लिहाजा गांव वालों को डिजिटल इंडिया के दौर में भी कई प्रकार की परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है। चुनाव के दौरान सड़क बनाने का दावा करने वाले नेता चुनाव जीतने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में आना तक उचित नहीं समझते हैं। गांव में परेशानी इस कदर है कि यहां शादी करके आने वाली बहू ने अपने आपको पूरी उम्र कोसती रहती हैं।
- कुंदन लाल गांव में सड़क की सुविधा नहीं होने के कारण बीमार व्यक्ति को कंधे पर उठाकर सड़क तक पहुंचाना पड़ता है। अगर रात के समय कोई व्यक्ति बीमार पड़ता है तो गांव में अफरातफरी का माहौल पैदा हो जाता है। गांव के लोगों को पक्की सड़क तो आज भी एक सपने जैसा लगता है। इस सपने को पूरा करने के लिए जनप्रतिनिधियों ने गांव वासियों को कई बार ख्वाब दिखाए लेकिन आज तक लोगों का जो सपना पूरा नहीं हो सका।
- शीला देवी गांव में बिजली पानी सड़क सबसे बड़ी समस्या है। पहाड़ों पर बसे इस गांव में नेता चुनाव के समय हाथ जोड़कर वोट मांगने आ जाते हैं, लेकिन परिणाम की घोषणा होते ही गायब हो जाते हैं। आलम यह है कि आज भी ग्रामीण अपनी तकदीर को कोस रहे हैं। लोग अपनी मजबूरियों के बीच समय व्यतीत कर रहे हैं। गांव की 90 प्रतिशत आबादी खेती-बाड़ी पर निर्भर करती है ऐसे में सड़क नहीं होने के कारण लोगों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
- विजय वीर विकास की दृष्टि से गांव बहुत पिछड़ा हुआ है। डिजिटल इंडिया में जिस गांव में आज भी सड़क नहीं है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांव के लोग किस बदहाली में जिदगी गुजर बसर कर रहे होंगे। योजनाओं का सही क्रियान्वयन ही विकास को गति प्रदान कर सकता है। लिहाजा शासन प्रशासन में बैठे उच्च अधिकारी अगर विकास का खाका खींचें तो गांव को उसका हक मिल सकता है।
- मुहम्मद हुसैन मूलभूत समस्याओं का निराकरण गांव स्तर पर ही होना चाहिए । बिजली पानी, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य का अभाव हर चुनाव में मुद्दा बनता है। कम से कम इन समस्याओं का निराकरण तो जरूर होना चाहिए। गांव बहुत पिछड़ा हुआ है। लोग आज भी अपने कंधों पर सामान उठाकर घरों तक ले जाते हैं। सरकार को इस गांव की तरफ ध्यान देना चाहिए।
- रमेश चंद्र इस गांव में रहने वाले अधिकतर परिवार इस बार वोट ना देने का मन बना चुके हैं। भाजपा, कांग्रेस, नेशनल कान्फ्रेंस सभी दल एक जैसे ही हैं। सात दशक से उनकी मांग को किसी ने नहीं सुना। बिजली-पानी, सड़क, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा सबका हक है, लेकिन यहां के लोग इन चीजों से वंचित हैं। अब ग्रामीणों की उम्मीदें टूट चुकी हैं कि उन्हें सुविधाएं मिलेंगी।
- मधुबाला हमारी जिदगी तो इन पहाड़ों पर रेंगते हुए निकल गई , लेकिन नई पीढ़ी किस तरह से अपनी जिदगी का गुजर-बसर करेगी। यह एक बड़ा सवाल है। यहां न तो सड़क है और न पीने के लिए शुद्ध पेयजल है। लोग आज भी कंधे पर सामान उठाकर घरों तक पहुंचाते हैं सरकारों की लापरवाही और प्रशासन की बेबसी का खामियाजा इस गांव के गरीब लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
- बद्रीनाथ