दो माह बाद सड़कों पर दौड़ी यात्री बसें, मिली राहत
जागरण संवाददाता कठुआ जिले की सड़कों पर करीब दो माह बाद यात्री बसें दौड़ने से आम लोग
जागरण संवाददाता, कठुआ : जिले की सड़कों पर करीब दो माह बाद यात्री बसें दौड़ने से आम लोगों को कोरोना महामारी में बड़ी राहत मिली है। जिला मुख्यालय की सड़कों के अलावा ग्रामीण क्षेत्र और हाईवे, खासकर कठुआ-जम्मू के बीच मार्ग पर बुधवार को चारों ओर चहल-पहल दिखी। शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के कस्बों के दो माह से सूने पड़े बस स्टाप वाले चौक चौराहों पर लोगों का आना जाना शुरू हो गया है। सबसे ज्यादा राहत कठुआ, बसोहली, बिलावर, बनी, रामकोट, हीरानगर, नगरी आदि रूट पर सफर करने वाले लोगों को मिली, क्योंकि कोरोना महामारी के दौरान ठप पड़ी परिवहन सुविधा बहाल होने से दिक्कतों का अंत हुआ है।
चौक-चौराहों पर चालक परिचालक यात्री निर्धारित रूट का नाम लेकर सवारियों को आवाज लगाने शुरू हो गए हैं। पहले दिन सड़कों पर दौड़ रही यात्री बसों में सवारी बहुत कम देखी गई, जिसका कारण कोरोना महामारी के जारी प्रकोप के चलते लोग सफर करने को मजबूर है, लेकिन बस चालकों को अभी उम्मीद है कि कोरोना महामारी का प्रकोप पहले की तरह टलते ही बसों में पहले जैसी क्षमता से सवारियां बैठना शुरू हो जाएगी और उनका धंधा फिर शुरू होगा।
वहीं, सरकार ने संक्रमण में कमी को देखते हुए अब अनलॉक प्रक्रिया शुरू करते हुए गैर जरूरी सामान की दुकानों को भी खोलने की अनुमति भी देना शुरू कर दिया है, लेकिन सड़कों पर यात्री वाहनों की हड़ताल से दुकानदारों के पास भी ग्राहक नहीं आ रहे थे। शहरों की गांवों से क्नेक्टिविटी का मात्र निजी यात्री बसें ही हैं। इसमें सामान्य बसों के अलावा मिनी बसें और आटो सवारी शामिल है। इसी के साथ अब बढ़ती गर्मी के चलते एक किलोमीटर तक पैदल सफर करना भी असंभव हो गया था। इसके अलावा जिन लोगों के पास अपने निजी वाहन नहीं थे, वे तो दो माह से घरों से जरूरी काम करने के लिए भी वंचित थे। ऐसे में उन्हें सबसे बड़ी राहत है।
ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की निजी परिवहन सुविधा रोजमर्रा की जिदगी का एक हिस्सा बन चुका है, खासकर कठुआ जिला में, जहां पर सरकारी बसों की सेवाएं नहीं के बराबर है, सिर्फ हाइवे पर सरकारी बसें दौड़ती है, जिसका लाभ ग्रामीणों को उतना नहीं मिलता है, जितना मिलना चाहिए। इसके अलावा विद्यार्थियों के लिए भी जिला के ग्रामीण क्षेत्रों में निजी बस सेवा मुख्य सुविधा है। हालांकि, अभी तो स्कूल बंद हैं। जिले में अधिकांश गांवों के लोगों को डूर स्टेप पर बस सुविधा मिलती है। बाक्स---
पहली बार लंबे समय तक बस आपरेटर रहे हड़ताल पर
पहली बार निजी बस आपरेटर लंबे समय तक हड़ताल पर रहे। इससे पहले वर्ष 2008 में भी श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड भूमि आंदोलन के दौरान दो महीने बसें बंद रहीं थी। हालांकि, उस समय हड़ताल निजी बस आपरेटरों द्वारा नहीं बने माहौल के चलते थी। इस बार बस आपरेटरों ने पेट्रोल व डीजल के दामों में हुई बढ़ोतरी को देखते हुए किरायों में 35 फीसद से 50 फीसद तक बढ़ोतरी किए जाने की मांग की। अगर 50 फीसद सवारी बैठानी है तो 50 फीसद किराया बढ़ाया जाए, अगर पूरी क्षमता से बैठानी है तो डीजल के मूल्यों को देखते हुए कम से कम 35 फीसद तक बढ़ाया जाए। हालांकि बीच में कोरोना महामारी का एकदम प्रकोप बढ़ने से उनकी मांग न तो सरकार के लिए और न ही बस आपरेटरों के लिए उतनी अहमियत रही। फिर भी सरकार ने 19 फीसद किराया गत माह ही बढ़ाने की घोषणा कर दी, लेकिन सवारी 50 फीसद बढ़ाने की शर्त बस आपरेटरों को स्वीकार नहीं थी। अब सरकार ने पूरी क्षमता से सवारी बैठाने की घोषणा कर दी है।
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भगवान का शुक्र है कि महामारी कुछ टली है। दो माह से बंद पड़ा कारोबार शुरू हुआ है। दो माह से बेकार हो गए थे। बस से जुड़े मैकेनिक, टायर पंक्चर, चाय वाले, ढाबे वाले, एजेंट, सर्विस स्टेशन, पेंटर आदि बेरोजगार हो गए थे। उम्मीद है कि जल्द ही गाड़ी पहले की तरह दौड़ेगी। सबसे ज्यादा चालक व परिचालक प्रभावित हुए है।
-सुरेंद्र सिंह, बस चालक।
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पहले दिन 50 के करीब बसें विभिन्न रूट पर दौड़ी। उम्मीद है कि सभी रुट पर जल्द बसें दौड़ने लगेगी, क्योंकि अभी सभी मालिक बसें नहीं चला रहे हैं, लेकिन चालक जरूर निकल पड़े हैं, इसका कारण है कि वे बिल्कुल बेरोजगार हो गए थे। डीजल मूल्यों के बढ़ते दाम और टैक्स से परिवहन का धंधा लाभकारी नहीं रहा है। सरकार ने इतने टैक्स आदि बढ़ा दिए हैं कि कई लोग इस धंधे से दूर होने लगे।
-हरमोहेंद्र सिंह, प्रधान, मिनी बस यूनियन, कठुआ