सुखी होना है तो इच्छाओं को करो कम: साध्वी रुपेश्वरी भारती
जारी श्री कृष्ण कथामृत का समापन हो गया है। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान नई दिल्ली द्वारा आयोजित कथा के अंतिम दिन श्री आशुतोष महाराज की शिष्या कथा व्यास साध्वी रूपेश्वरी भारती जी ने कथा का समापन करते हुए कहा कि राजा परीक्षित भय व असुरक्षा से ग्रस्त है जिनके समक्ष हरक्षण मौत मुंह खोले खड़ी थी
जागरण संवाददाता, कठुआ: शहर के रामलीला मैदान में चल रहे श्री कृष्ण कथामृत संपन्न हो गया है। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान नई दिल्ली द्वारा आयोजित कथा के अंतिम दिन श्री आशुतोष महाराज की शिष्या कथा व्यास साध्वी रूपेश्वरी भारती जी ने कथा का समापन करते हुए कहा कि राजा परीक्षित भय व असुरक्षा से ग्रस्त है, जिनके समक्ष हर क्षण मौत मुंह खोले खड़ी थी, फिर भी परीक्षित की मुक्ति केवल हरि चर्चा या कृष्ण लीला को श्रवण करने से मात्र से नहीं हुई थी, अपितु पूर्ण गुरु श्री शुकदेव महाराज द्वारा प्रभु के तत्व रूप को अपने अंदर जान लेने से हुई थी।
शास्त्रानुसार मनुष्य की अज्ञानता व सभी संशयों का नाश गुरु द्वारा दिव्य नेत्र के प्राप्त होने से होता है। भगवान कृष्ण ने अर्जुन का मोह व मोहजनित संशय नष्ट करने के लिए उनसे कहा था कि मैं तुम्हें दिव्य चक्षु प्रदान करता हूं। दिव्य चक्षु से परमात्मा के शाश्वत रूप का दर्शन करते ही उसकी समस्त दुर्बलताएं ऐसे विलीन हो गई, जिस प्रकार सूर्य के उदित होने पर कुहासा छट जाता है।
राजा परीक्षित को भी शुकदेव जी ने ब्रह्म ज्ञान प्रदान कर दिव्य नेत्र जागृत करने के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। अंत में साध्वी जी ने बताया कि आज दिव्य ज्योति जागृति संस्थान में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा ब्रह्म ज्ञान प्राप्त कर लोगों को परीक्षित की तरह मुक्ति के मार्ग को पाया है। संस्थान आज विश्व शांति, बंधुत्व एकता की स्थापना की ओर आगे बढ़ रहा है। उन्होंने संस्थान व आयोजकों की ओर से भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह के आयोजन में भारी संख्या में सम्मिलित होने वाले कठुआ क्षेत्र के निवासियों का धन्यवाद करते हुए कहा कि क्षेत्र निवासियों का सहयोग चिर स्मरणीय रहेगा। संस्थान सभी को ब्रह्म ज्ञान प्राप्ति हेतु आमंत्रित करता है, और भविष्य में ऐसे ही सहयोग की अभिलाषा करता है। कथा के अंत में विशाल भंडारे का आयोजन किया गया।
उधर, शहर के शिवनगर में जारी श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन कथा व्यास पियूष जी महाराज ने भगवान श्री कृष्ण के गोपियों संग रास लीला का प्रसंग अपनी मधुर वाणी से भजनों के माध्यम से सुनाकर भावविभोर कर दिया। कथा के पंडाल में उपस्थित श्रद्धालु कृष्ण भक्ति में लीन होकर झूमने पर मजबूर हो गए। पियूष जी महाराज ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने कथा के प्रत्येक प्रसंग में हमें अपना कर्म निष्काम एवं भक्तिभाव से करने की प्रेरणा दी। उन्होंने हमें जीवन में कर्तव्य पालन की जिम्मेदारी से अवगत कराया है। इसलिए हमें इस कथा के माध्यम से अपने कर्म और जीवन के लक्ष्य को जानना है। इसी अपने प्रवचनों में पियूष जी ने कहा कि दुख का मूल कारण है अज्ञान और दुख निवारण है ज्ञान। सत् की जिज्ञासा छोड़ कर अन्य जितनी भी हमारी इच्छाएं हैं वे हमें दुख ही देती हैं। जितनी ज्यादा इच्छाएं होंगी, जितनी ज्यादा तृष्णा होगी, मनुष्य उतना ही दुखी होगा। सुखी होना है तो इच्छाओं को कम कर दो और पूर्णरूप से सुखी होना है तो कथा सत्संग के द्वारा पूर्णता का अनुभव करों। अल्प में सुख नहीं पूर्ण में सुख है। जारी कथा का रविवार समापन होगा।