कागजों में पालीथिन पर प्रतिबंध, फिर भी धड़ल्ले से हो रहा है प्रयोग
संवाद सहयोगी बसोहली वातावरण को प्रदूषित होना देना चाहते हैं तो हर कोई एक ही जवाब देता है कि
संवाद सहयोगी, बसोहली: वातावरण को प्रदूषित होना देना चाहते हैं तो हर कोई एक ही जवाब देता है कि नहीं। सरकार अपनी ओर से वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए हर वर्ष लाखों रुपये खर्च करती है, कभी सेनिार तो कभी रैलिया निकालने के लिसे हर स्कूल में विवाद प्रतियोगिता एवं कई कार्यक्रम करवाती है, इसके बावजूद लोग पालीथिन का प्रयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं।
सुबह आठ बजे के करीब रामलीला मैदान में जब लोगों के घरों से कचरा इकट्ठा कर एक जगह फेंका जाता है तो उस समय सिर्फ पालीथिन ही पालीथिन नजर आता है। सरकार पालीथिन का प्रयोग करने वाले दुकानदारों को हर बार जुर्माना करती है, मगर बसोहली में नाममात्र औपचारिकता के कारण पालीथिन का प्रयोग बंद नहीं हो रहा है। इसी पालीथिन को बरमार गला के जंगल में फेंका जाता है, जिसके कारण कई दिनों तक आग लगी रही। वातावरण को इस पालीथिन से नुकसान हो रहा है, मगर कोई भी संस्था इसके लिये आगे नहीं आ रही है। अगर इसी प्रकार से पालीथिन का प्रयोग बंद ना किया गया तो आने वाले दिनों में रंजीत सागर झील, बरमार गला प्रदूषण की चपेट में आ जाएंगे, जिससे जंगली जानवरों एवं पानी के जीव जन्तुओं की जिंदगी खतरे में पहुंच जाएगी।
बहरहाल, पंजाब से हर रोज सब्जी, फलों, करियाना के ट्रकों में लोड होकर पालीथिन की खेप कस्बे में आती है। अटल सेतु पर वन विभाग का नाका है, पुलिस का नाका होने के बावजूद कई किलो पालीथिन बसोहली एवं आसपास के कई गावों तक पहुंच रहा है। जिससे पर्यावरण को तो नुकसान हो ही रहा है, वहीं पशु पक्षी भी पालीथिन का प्रयोग होने से बीमार हो रहे हैं। कोट्स---
पालीथिन के प्रयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध है, विभाग की टीम समय-समय पर औचक निरीक्षण करती है। दुकानदारों को जुर्माना भी करती है। लोगों का सहयोग मिले तो पालीथिन का प्रयोग सदा के लिये समाप्त हो सकता है।
-पी आर सागड़ा, ईओ, म्यूनिसिपल कमेटी, बसोहली।