ह्रदय की पवित्रता व विचार ही सब से अनमोल:सुभाष शास्त्री
संवाद सहयोगी बसोहली परम पूजनीय संत श्री सुभाष शास्त्री जी ने रामलीला मैदान में चल रहे भाग
संवाद सहयोगी, बसोहली: परम पूजनीय संत श्री सुभाष शास्त्री जी ने रामलीला मैदान में चल रहे भागवत सप्ताह के छठे दिन में प्रवचनों का अमृत पान करवाते हुए संगत से यजुर्वेद के एक श्लोक का वर्णन करते हुए कहा कि इसमें प्रार्थना है, प्रभु से कि जो मन जागृत अवस्था में दूर-दूर तक चला जाता है, ऐसा मेरा मन शुभ विचारों वाला हो।
शास्त्री जी ने कहा कि आप चाहे जहां भी चले जाओे और चाहे जो भी क्रिया कर लो, परंतु जब तक आपका मन शुद्ध नहीं होगा, तब तक आप को किसी भी प्रकार से मोक्ष नहीं मिल सकता है। उन्होंने कहा कि विश्व का हर धर्म मन की पवित्रता का संदेश देता है। इस्लाम के हदीस शरीफ में वर्णन है कि अल्लाह तुम्हारी शक्ल सूरत और तुम्हारे शरीर को नहीं देखता, बल्कि तुम्हारे दिल एवं मन को देखता हूं, यानी अल्लाह ताला की ओर से बदला देने का व्यवहार इख्लास और दिल की नियत के अनुसार होगा। कितना स्पष्ट संदेश है पर इस पर कोई चलता है नहीं इसलिये पूरे विश्व में अफरा तफरी मची हुई है, सभी परेशान हैं।
आगे मन की पवित्रता के बारे में बताते हुए कहा कि कर्ज लेकर तीर्थ यात्राएं करने की उपेक्षा पाप कमरें से बचना और अपने मन को पवित्र एवं शुद्ध रखना अधिक श्रेष्ठ है। व्यक्ति को सुख और दुख को समान रूप से स्वीकार करना चाहिए। यह अलग अलग नहीं बल्कि एक साथ चलने वाले भाव हैं। इसी प्रकार से मनुष्य को यश अपयश की चिंता भी नहीं करनी चाहिए। सम दृष्टि रखने के लिये मन की पवित्रता का होना बहुत जरूरी है।
शास्त्री जी ने कहा कि धर्म की उत्पत्ति का स्थान हृदय है। हृदय से पवित्र भाव उदित हों और आचरण ठीक हो, इसी को धर्म कहते हैं। यदि तुम्हारा मन पवित्र और विचार शुद्ध हैं तो जो भी कर्म करोगे शुभ ही होंगे। आप के लिये उन का फल कल्याणकारी ही होगा।
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