पंचायत चुनाव से रुके कार्यो को गति मिलने की जगी उम्मीद
जागरण संवाददाता, कठुआ : पिछले दो सालों से निष्क्रिय पड़ी गांवों के विकास में अहम भूमिका निभाने वाली प
जागरण संवाददाता, कठुआ : पिछले दो सालों से निष्क्रिय पड़ी गांवों के विकास में अहम भूमिका निभाने वाली पंचायतों को फिर से सक्रिय करने के लिए सरकार ने चुनाव कराने की घोषणा कर दी है। नई पंचायतों के गठन होने से ग्रामीणों में कई साल से रुके विकास कायरें में तेजी आने की उम्मीद जगी है। गांववासियों को लगने लगा है कि अब उनकी कोई सुनने वाला होगा, जो स्थानीय स्तर की कई तरह की समस्याएं गांव स्तर पर ही हल कराने में सक्षम होगा। इसी के चलते गांवों में भी चुनाव कार्यक्रम घोषित होते ही सरगर्मियां तेज होने लगी है। हालांकि, इस बार पंचायत चुनाव में सरकार ने सरपंच का चुनाव मतदाताओं से कराने का प्रावधान करके इस प्रक्रिया को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष बनाने का प्रयास किया है। इससे पहले पंचायत चुनाव में पंच ही सरपंच का चुनाव करते थे। ऐसे में अब पंचायत चुनाव गांवों के विकास में अहम साबित होंगे, लेकिन इससे पहले कौन होगा सरपंच का उम्मीदवार, जो साफ छवि वाला होने के साथ-साथ पढ़ा लिखा, ईमानदार व विकास कराने में सक्षम हो, इसको लेकर गावों में चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि गांवों का विकास विभाग या अधिकारी नहीं, बल्कि स्थानीय प्रतिनिधि ही करा सकते हैं। ऐसे में पंचायतों का गठन होना, गांवों के विकास में नया दौर शुरू होगा। गवर्नर का हर हाल में चुनाव कराने का ये फैसला सराहनीय है, हालांकि ये काम चुनी गई सरकारों का था। -जगदीश कुमार राज्य में पूर्व पीडीपी-भाजपा सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी हैं, लेकिन पंचायत चुनाव न कराकर निचले स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत बनाने में उनकी नियत साफ नहीं थी, ये उजागर हो गया है। अब गवर्नर ने चुनाव कराने का फैसला लेकर गांवों के विकास में नया अध्याय शुरू करने का जो निर्णय लिया है, वो सराहनीय है। -नरेंद्र सिंह
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करोड़ों रुपये पर चुनाव न होने से गांवों के विकास पर ब्रेक लगी थी। गांवों की समस्याएं सुनने वाला कोई नहीं था, अब उम्मीद जगी है कि चुनाव होने से उनकी समस्या सुनने वाला भी कोई होगा। पंचायत चुनाव होने से केंद्र द्वारा रोके गए फंड भी जारी होंगे। -संजू
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जबसे पंचायतें भंग हुई हैं, तबसे गांव के लोगों की समस्याएं सुनने वाला कोई नहीं रहा है। अधिकारी उनकी समस्याएं दरकिनार कर देते थे। यहीं कारण है कि गांवों के लोग आए दिन सरकारी कार्यालयों में प्रदर्शन करते देखे जाते हैं। अब चुनाव होने से उनके प्रतिनिधि सरपंच होंगे, जो उनकी समस्याएं सरकार के समक्ष रखेंगे। -देवेंद्र सिंह
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पंचायत चुनाव घोषित होते ही गांवों में सरपंच व पंच चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन के लिए सुगबुगाहट शुरू हो गई है। हालांकि सभी स्वच्छ छवि एवं ईमानदार और काम कराने वाले उम्मीदवार को अपना प्रतिनिधि बनाना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए आम बनाना मुश्किल लग रहा है। इसी को लेकर चर्चाएं शुरू हैं। -जितेंद्र कुमार