कोरोना के चलते रानी तालाब में नहीं चली नाव
संवाद सहयोगी बसोहली पाचवे नवरात्र में रामलीला मंचन के दौरान श्रीराम को वनवास और भरत को राजगद्दी
संवाद सहयोगी, बसोहली: पाचवे नवरात्र में रामलीला मंचन के दौरान श्रीराम को वनवास और भरत को राजगद्दी प्रमुख दृश्य रहे। हालांकि, पूर्व में गंगा पार करवाने का दृश्य एवं केवट के पैर धोने का मंचन रानी तालाब में होता रहा, मगर इस बार कोरोना के कारण दो गज की दूरी को ध्यान में रखते हुए प्रधान चंद्र शेखर ने नाव के सीन को टालने का निश्चय किया। बताया जाता है कि अगर नाव चलाया जाता तो तालाब पर लोगों की भीड़ उमड़ सकती थी, जिस कारण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए नाव को नहीं लाया गया। नाव कस्बे में मछली पकड़ने वाले मछुआरों द्वारा हर बार उपलब्ध करवाई जाती है।
उधर, रामलीला के दौरान श्रीराम को राज तिलक की तैयारियों में पूरा अयोध्या लगा हुआ था, सब खुश थे कि प्रिय राम को अब राजा की गद्दी पर देखेंगे। मगर होनी कुछ और चाल चल गई। मंथरा ने कैकेयी के कान भरना शुरू कर दी अगर एक बार राम का राज तिलक हो गया तो भरत केवल दास बना रहेगा। इसलिए अब मौका है जो दो वर तूने राजा दशरथ से लिए थे, उन्हें माग ले, एक राम को वनवास और भरत का राज तिलक। कैकेयी महल में बाल खुले कर लेट गई और जैसे ही दशरथ उसके कक्ष में आए तो उसका यह रूप देखकर दंग रह गये।
उन्होंने पूछा कि तूझे राम के राज तिलक की खुशी नहीं है। इस पर उसने कुछ नहीं कहा और केवल बातों में दशरथ को उलझाने लगी और बातों में दो वर की याद दिलाई और उन्हें माग लिया। वर मागते ही राजा दशरथ की हालत गंभीर हो गई। वहीं राम के वनवास जाने पर लक्ष्मण ने साथ जाने की जिद्द की और इसके बाद सीता ने दोनों वनवास में साथ जाने को तैयार हो गए। कैकेयी ने उन्हें वनों में रहने के लिये कपड़े दिये और कुमारों वाले कमरे खुलवाए। इसी प्रकार से सीता को भी तैयार किया। वनवास जाते ही रास्ते में गंगा को पार करने के लिए केवट ने कहा कि अगर राम के पैर लगने से एक शिला से औरत बन सकती है तो कहीं उसकी नाव औरत बन गई तो उसका रोजगार चला जाएगा। उसने राम लक्षमण, सीता के पैर छूने और उसके बाद ही नाव में बैठाया और गंगा पार करवाई।