मधुरता से करें वाणी का प्रयोग, मित्र बनते चले जाएंगे
संवाद सहयोगी बसोहली रामेश्वरम धाम बसोहली में चल रही तीन दिवसीय भागवत कथा में संत सुभाष शास्त्री सुभ
संवाद सहयोगी, बसोहली: रामेश्वरम धाम बसोहली में चल रही तीन दिवसीय भागवत कथा में संत सुभाष शास्त्री सुभाष शास्त्री ने प्रवचन करते हुए कहा कि समाज में कई अपराध केवल इसलिए हो जाते हैं क्योंकि मनुष्य अपनी वाणी पर संयम नहीं रख पाता। वाणी द्वारा तीर जैसे चुभने वाले वचन, अपमानजनक, अहितकार, द्वेष जनित शब्द बोल देते हैं। इससे दूसरे के मन में अशाति तथा अप्रसन्नता जन्म लेती है। इस प्रकार बिना किसी कारण ही हम एक शत्रु पैदा कर लेते हैं। इसलिए सदा वाणी का उपयोग मधुरता से करने का प्रयास करें। इसके बाद देखिये आपके मित्र बढ़ते जाएंगे। शास्त्री ने समझाया कि संसार में हर मानव चिंतित दिखता है, क्योंकि उसे संतोष नहीं है। वह असंतोषी हो गया है। मानव के हृदय में सदैव इच्छाएं जन्म लेती हैं। यह सब सांसारिक वस्तुओं एवं पदार्थो के लिए जो चिर स्थाई नहीं होतीं। इनमें जो आपको प्राप्त होगा, उससे एक न एक दिन बिछुड़ने का कष्ट भी होगा। इसलिये हमें चाहिए कि जो कुछ हमें प्रभु ने दिया है, उसमें ही संतोष करते हुए शांति से रहें। शास्त्री ने कहा कि यदि असंतोष करना ही है तो भजन में करें क्योंकि भजन जितना भी करें कम है। जैसे परमार्थ जितना हो कम है, भगवान से प्रेम जितना करो कम है। उन्होंने कहा कि इसके उपाय यह हैं कि जगत के संकल्पों को छोड़ कर भागवत संकल्प करें। ऐसा संकल्प करते हुए मुख से भगवान के नाम का उच्चारण तथा हृदय से, आखों से प्रभु की छवि को धारण करना चाहिए। ऐसे में साधक सहजता से प्रभु के अनुग्रह का अधिकारी बन जाता है। इससे बढ़ कर मानव को और क्या चाहिए।