बदलता कश्मीर : हस्तकला में भविष्य तलाश रही कश्मीर की युवा पीढ़ी
कश्मीर के हुनरमंद कारीगर महीनों एक शाल पर महीन कढ़ाई करते हैं और उसके बाद वह शोरूम से होते आपकी आन बन जाती है। भारत ही नहीं ईरान से चीन तक इस सोजनी शाल की धूम है। बडग़ाम जिले में बसा गांव सोनपाह इस हस्तकला को जीवित रखे हुए है।
रजिया नूर, श्रीनगर: कश्मीर की शान है पश्मीना। छूने में मुलायम और ओढऩे में बेहद गर्म। उस पर सोजनी (सूई से महीन रेशमी) कढ़ाई आपकी शान को चार चांद लगा देगी। कश्मीर के हुनरमंद कारीगर महीनों एक शाल पर महीन कढ़ाई करते हैं और उसके बाद वह शोरूम से होते आपकी आन बन जाती है। भारत ही नहीं, ईरान से चीन तक इस सोजनी शाल की धूम है। कश्मीर के बडग़ाम जिले के आंचल में बसा गांव सोनपाह इस हस्तकला को जीवित रखे हुए है। खास बात यह है कि यहां की युवा पीढ़ी नौकरी के पीछे भागने के बजाय अपनी पढ़ाई के साथ पारिवारिक पेशे में महारत हासिल कर इसमें भविष्य तलाश रही है। यहां के लोग विशेषकर युवा चाहते हैं कि सरकार सोनपाह को क्राफ्ट विलेज (शिल्प गांव) का दर्जा दे, ताकि वे अपने पूर्वजों की विरासत को और ऊंचाई तक ले जाएं।
घर-घर में भरा हुनर: श्रीनगर से 40 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में घर-घर यह हुनर भरा है। हस्तकला सीख रही नुजहत नामक युवती ने कहा, मैं 12वीं कक्षा में पढ़ती हूं और साथ-साथ इस कला को भी सीख रही हूं। मेरे माता-पिता दोनों यह कला जानते हैं। मैं उन्हीं से सीख रही हूं। मैंने सोच रखा है कि पढ़ाई पूरी कर मैं इस कला के विकास के लिए अपनी एक इकाई खोलूंगी। वहीं, स्थानीय युवक सफदर अली मीर ने कहा कि मैंने यह कला दसवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान सीखी थी। आज पढ़ाई पूरी करने के बाद पूरी तरह से इस कला से जुड़ गया हूं। मेरे साथ गांव के दूसरे युवा भी अपनी पढ़ाई के साथ इस कला से अच्छा पैसा कमा रहे हैं। मीर ने कहा, यदि सरकार संजीदगी से हमारी इस कला को समर्थन देे तो युवा सरकारी नौकरियों के पीछे भागने के बजाय हस्तकला में अपना भविष्य तलाशें।
गांव की उपज है कला: बीते 35 वर्षों से सोजनी कढ़ाई से पश्मीना को निखार रहे गुलाम हसन मलिक बताते हैं कि कश्मीर में सोजनी वर्क हमारे गांव की ही उपज है। बाद में कश्मीर के अन्य क्षेत्रों में लोगों ने इसे सीखा है। मेहनत बहुत है, इसी का नतीजा है कि आज देश ही नहीं विदेश में भी हमारे काम को पसंद किया जाता है।
एक शाल पर कढ़ाई में लगते छह माह से दो साल : 45 वर्षों से इस हस्तशिल्प से जुड़े कारीगर बशीर अहमद भट ने कहा कि हमने सरकारों को कई बार गांव को क्राफ्ट विलेज का दर्जा देने की मांग की, लेकिन न ही हमें कोई वित्तीय सहायता मिली और न ही किसी योजना का लाभ। शाल कीमती होते हैं। एक शाल पर कढ़ाई का काम पूरा करने में छह माह से दो साल भी लग जाते हैं।
एक लाख से 10 लाख तक कीमत: बशीर अहमद भट ने बताया कि बाजार में सोजनी वर्क के शाल की कीमत एक लाख से शुरू होकर 10 लाख रुपये तक है। आमतौर पर यह शाल आर्डर पर ही बनाए जाते हैं। चीन और ईरान में इनकी काफी मांग है।
ऐतिहासिक है गांव: बताया जाता है कि यह गांव तब सुर्खियों में आया जब वहां एक चश्मे (झरने) से मां दुर्गा की सोने की मूर्ति मिली थी। इस घटना के बाद गांव सोनपथ (सोने का धातु मिलने वाली जगह) के नाम से मशहूर हो गया, जो अब सोनपाह के नाम से जाना जाता है। सोनपाह के 14 कारीगर इस कला में राष्ट्रीय व अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके हैं।
जल्द मिलेगा क्राफ्ट विलेज का दर्जा: हैैंडीक्राफ्ट के निदेशक महमूद अहमद शाह ने कहा कि सोजनी हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए यह गांव कितनी कोशिशें कर रहा है, हमें इस बात का बखूबी अंदाजा है। मुझे खुशी है कि गांव के युवा पढ़ाई के साथ इस कला से भी जुड़े हुए हैं। गांव को क्राफ्ट विलेज की सूची में शामिल किया जाएगा। औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं।