Jammu: समकालीन डोगरी रंगमंच पर शोध कार्य करने वाले पहले कलाकार बने यासीन
जम्मू का रंगमंच के क्षेत्र में जोरदार विकास हुआ है। कई दिग्गज डोगरी रंंगमंच को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले गए हैं।जम्मू के रंगकर्मियों का समर्पण भाव ही है कि आज किसी भी रंगमंचीय परिचर्चा में जम्मू के रंगमंच को सम्मान की नजर से देखा जाता है।
जम्मू, जागरण संवाददाता: पिछले 50 वर्षो में जम्मू के रंगमंच के विकास एवं इस क्षेत्र में हुए कार्य पर मोहम्मद यासीन ने समकालीन डोगरी रंगमंच की उत्पत्ति विषय पर शोध कार्य पूरा किया।उन्होंने यह कार्य वर्ष 2019 में सेंटर फॉर कल्चरल रिसोर्सेज एंड र्टेनिंग की ओर से मिली फेलोशिप के तहत किया है।
वह केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के अकेले कलाकार थे। जिन्हें यह फेलोशिप प्राप्त हुई है।इसके साथ ही यासीन पहले कलाकार हो गए हैं, जिन्हें डोगरी रंगमंच की समकालीन स्थिति एवं विकास पर कार्य पूरा करने का गौरव प्राप्त हुआ है। यासीन को शोध कार्य की रिपोर्ट चार खंड में भेजनी थी। हर खंड में उनकी मेहनत झलकती है। इस शोध कार्य को डोगरी रंगमंच के लिए एक दस्ताबेजी कार्य कहा जा सकता है। जिसका पाठ विभिन्न मंचों पर संभव हो सकेगा।
यासीन ने अपनी रिपोर्ट में पिछले 50 वर्षों में जम्मू क्षेत्र में रंगमंच के क्षेत्र में किए गए कार्यों की जानकारी दी है। उन्होंने जम्मू के रंगमंच में डोगरी थिएटर के विकास के साथ-साथ रंगमंच के क्षेत्र में हो रहे कार्यों पर भी चर्चा की। उन्होंने इस तथ्य पर विचार किया कि चीजें बदल गई हैं।
जम्मू का रंगमंच के क्षेत्र में जोरदार विकास हुआ है। कई दिग्गज डोगरी रंंगमंच को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले गए हैं।जम्मू के रंगकर्मियों का समर्पण भाव ही है कि आज किसी भी रंगमंचीय परिचर्चा में जम्मू के रंगमंच को सम्मान की नजर से देखा जाता है। जम्मू के निर्देशकों के कार्य को गंभीरता से लिया जाता है।
उन्होंने डोगरी थिएटर में लोक रूपों को शामिल करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया ताकि अन्य लोक रूपों को उसका उचित हिस्सा मिल सके। जम्मू की पहाड़ियों सुंदर दृश्य दृश्य ताे आकर्षित करते ही हैं। जम्मू के नाटक भी लोगों को आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं।
डोगरी रंगमंच का अपना अनूठा नाट्य तत्व अधिकांश नाटकों में मौजूद था।जिसमें नीरज कांत, अभिषेक भारती, रविंदर शर्मा आदि जैसे नए निर्देशकों ने सभी पारंपरिक रूपों के साथ प्रयोग करने की कोशिश की है और इसे दर्शकों के सामने अपनी ताजगी और उत्साह के साथ प्रस्तुत किया है।
उन्होंने कथा और कहानी कहने के सभी रूपों का पता लगाने की कोशिश की है। संगीत हो, नाटक हो, मेगा प्रदर्शन हो, डोगरी रंगमंच ने अपने दर्शकों के लिए सब कुछ पेश किया है। खासकर जिस तरह पदमश्री बलवंत ठाकुर ने नाटक बावा जित्तो में कारक का सहारा लिया है। उसी तरह युवा निर्देशक अभिषेक भारती हरण नाट्य शैली को अपने मंचन की रीढ़ की हड्डी मान कर चलते हैं।
यासीन का शोध पत्र इस ओर भी इशारा करता दिखता है कि लोक नाट्य शैली को जीवित रखना है या इसका विकास चाहिए तो जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी और दूसरी नाट्य संस्थाओं को रंगमंच को जम्मू के दूसरे जिलों में भी ले जाना होगा। लोक नाट्य शैलियों पर स्थानीय लोगों की मदद से अधिक से अधिक मंचन करने होंगे। कार्यशालाओं पर जोर देना होगा।