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पश्चिमी पाकिस्तान रिफ्यूजी जम्मू-कश्मीर के नागरिक तो बने मगर आज भी हक के लिए दर-बदर हो रहे

नागरिकता महज कागजों में ही नजर आ रही है। इतने बरस जम्मू-कश्मीर में गुजारने के बाद भी हम मकान अपने नाम पर नही करवा सकते। मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहूंगा कि वे इन रिफ्यूजी लोगों के प्रश्नों का जवाब दें।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 07:53 AM (IST)Updated: Thu, 27 Jan 2022 07:53 AM (IST)
पश्चिमी पाकिस्तान रिफ्यूजी जम्मू-कश्मीर के नागरिक तो बने मगर आज भी हक के लिए दर-बदर हो रहे
आज भी हम दूसरे नागरिकों की भांति जम्मू-कश्मीर के नागरिक नहीं हैं।

जम्मू, जागरण संवाददाता : अनुच्छेद 370 हटते ही पश्चिमी पाकिस्तान से 1947 में यहां आए शरणार्थी जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिक बन गए। ऐसा लगा कि मानों सारे हक मिल गए। नागरिकता के साथ साथ अब जमीनों पर हक मिल जाएगा। मकान अब अपने नाम करवाए जा सकेंगे। विधानसभा चुनावों में वोट डालने का हक मिल जाएगा। मगर अढ़ाई साल का समय बीत चुका है। आज इन रिफ्यूजी लोगों को लगता है कि उनके हाथ में कुुछ नही आया है। मानों नागरिकता कागजों में ही मिली, जमीन पर कुछ नही मिल रहा। इसको लेकर इन रिफ्यूजी लोगों में रोष है।

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नगरी निवासी रूप लाल का कहना है कि सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि हम जमीनें, मकान अपने नाम नही करवा पा रहे। जम्मू-कश्मीर के नागरिक बनने के बाद इन रिफ्यूजी लोगो को डोमिसाइल प्रमाण पत्र तो दे दिए गए, मगर बाद में पता चला कि डोमिसाइल का उनको 2 ए प्रमाणपत्र मिला है। जबकि जमीन जायदाद अपने नाम कराने के लिए डोमिसाइल प्रमाण पत्र 1 ए चाहिए। 1 ए प्रमाण पत्र उन्ही लोगों को दिया जा रहा है जिनके पास पहले जम्मू-कश्मीर का स्टेट सब्जेक्ट था। इसका मतलब यह हुआ कि आज भी हम दूसरे नागरिकों की भांति जम्मू-कश्मीर के नागरिक नहीं हैं।

वेस्ट पाक रिफ्यूजी एक्शन कमेटी के प्रधान लब्बा राम गांधी का कहना है कि सोचा था कि 72 साल से जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में वोट डालने से वंचित रहने वाले यह रिफ्यूजी नागरिक बनने के बाद वोट डाल पाएंगे। लेकिन हेरानी है कि अढ़ाई साल बीतने के बाद भी इन रिफ्यूजी लोगों के नाम वोटर लिस्ट में नही चढ़ पाए हैं। चुनाव का बिगुल कभी भी बज सकता है लेकिन अभी तक हम वोटर लिस्ट में नहीं। पता नही पूरे मामले में सरकार ने क्या सोचा है।

जगदीश सिंह मन्हास का कहना है कि पश्चिमी पाकिस्तानी रिफ्यूजी लोग जिन मकानों में रह रहे हैं, अपने नाम नही करवा सकते। हमें अब लग रहा है कि आज भी हम दूसरे दर्जे के नागरिक हैं।

नागरिकता महज कागजों में ही नजर आ रही है। इतने बरस जम्मू-कश्मीर में गुजारने के बाद भी हम मकान अपने नाम पर नही करवा सकते। मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहूंगा कि वे इन रिफ्यूजी लोगों के प्रश्नों का जवाब दें। क्या इसी तरह की नागरिकता इन रिफ्यूजी लोगों को दी जानी थी। मंडाल तहसील के मोहन लाल का कहना है कि आज लोग हमें कहते हैं कि हम अपने आप को रिफ्यूजी न कहें क्योंकि आप जम्मू कश्मीर के नागरिक हो। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि आखिर हमने क्या पाया कि हम अपने आप को रिफ्यूजी न कहें। हमें कोई हक मिले ही नही। इसलिए हम आज भी रिफ्यूजी हैं और अपने हक मिलने तक संघर्ष जारी रखेंगे।


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