लद्दाख में देश के असली नायकों से मिलकर बुलंद हुआ योद्धा अथर्व का हौंसला
पांच साल की आयु से कैंसर को हराते आ रहे दिल्ली के अथर्व तिवारी की बांई टांग को काटना पड़ा था। स्वास्थ्य संबंधी कई दिक्कतें होने के बाद भी अथर्व युद्ध में घायल किसी सैनिक की तरह यह संदेश दे रहे हैं कि मुश्किलों से कभी नही हार नही मानेंगे।
जम्मू, राज्य ब्यूरो । लद्दाख के दुर्गम हालात में जान हथेली पर लेकर सरहदों की रक्षा कर रहे देश के असली नायकों से उनके कर्मक्षेत्र में आकर मिलने वाले नौ वर्षीय योद्धा अथर्व का हौंसला और भी बुलंद हो गया है।
भारतीय सेना ने अथर्व का लद्दाख आकर सरहद पर कुर्बान हुए जवानों को श्रद्धांजलि देने का सपना साकार कर दिया है। उसे विश्व के सबसे उंचे युद्ध स्थल सियाचिन के नार्थ पुल्लु में सियाचिन वारियर्स के साथ मिलने का मौका भी हासिल हुआ। आठ दिन तक लद्दाख में रहे अथर्व कभी न भूलने वाली यादें लेकर अपने माता पिता के साथ दिल्ली लौट गए।
पांच साल की आयु से कैंसर को हराते आ रहे दिल्ली के अथर्व तिवारी की बांई टांग को काटना पड़ा था। स्वास्थ्य संबंधी कई दिक्कतें होने के बाद भी अथर्व युद्ध में घायल किसी सैनिक की तरह यह संदेश दे रहे हैं कि मुश्किलों से कभी नही हार नही मानेंगे। ऐसे में अथर्व को अपने बीच पाकर सेना के जवानों ने भी भारी उत्साह दिखाया। नौ साल के बच्चे की हिम्मत देखकर सैनिकों का हौंसला भी बुलंद हुआ।
दिल्ली लौटने से पहले अथर्व की माता डा निशा तिवारी व पिता डा मनीश तिवारी ने बेटे का सपना साकार करने के लिए सेना की उत्तरी कमान की चौदहवीं कोर का दिल से आभार जताया। हम लद्दाख में मातृभूमि की रक्षा कर रहे असली हीरो देखकर बहुत प्रभावित हुए हैं। सेना के साथ बिताए आठ दिनों ने हमारा हौंसला बढ़ाया है। हम सेना के आभारी हैं। अथर्व के माता-पिता ने ऐसा सेना को दिए आभार पत्र में लिख है। इस आभार पत्र के साथ अथर्व द्वारा सरहदों पर तैनात सैनिकों की एक पेंटिंग भी है।
योद्धा अथर्व का उत्साहित होना स्वाभाविक है। लद्दाख में बिताए आठ दिनों के दौरान सेना ने अथर्व को कई जगहों पर ले जाकर दिखाया कि देश के रक्षक किस तरह से चीन, पाकिस्तान जैसे देशों के सामने कड़ी ठंड में सीने ताने खड़े हैं। अथर्व को लद्दाख के दूरदराज सियाचिन ग्लेशियर के साथ नोबरा वैली व खारदूंगला जाने का भी माैका भी मिला। इसके साथ अथर्व को पूर्वी लद्दाख में पैंगांग झाील के साथ चुशुल के रेजांगला में चीन से युद्ध में लोहा लेते शहीद हुए सैनिकों की याद में रेजांगला वार मेमोरियल में शहीदों को सलामी देने का मौका भी मिला। इससे पहले वह कारगिल वार मेमोरियल पर भी पहुंचे।