Jammu Kashmir: बेरोजगारी, आतंकवाद, पलायन ने बढ़ाई मानसिक रोगियों की संख्या
कश्मीर में भी स्थिति ऐसी ही है। कश्मीर संभाग में भी एक साल में एक लाख से अधिक लोग मनोरोग चिकित्सकों के पास जाते हैं।
जम्मू, रोहित जंडियाल। राज्य में बेरोजगारी, आतंकवाद व पलायन सहित कई कारणों से मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ रही है। मनोरोग अस्पताल में कम निजी क्लीनिकों में लोग इलाज करवाने के लिए अधिक पहुंच रहे हैं। निजी व सरकारी अस्पतालों को मिला दिया जाए तो जम्मू संभाग में एक साल में ही करीब एक लाख लोग मनोरोग चिकित्सकों के पास इलाज करवाने या फिर काउंसलिंग के लिए जा रहे हैं।
कश्मीर में भी स्थिति ऐसी ही है। कश्मीर संभाग में भी एक साल में एक लाख से अधिक लोग मनोरोग चिकित्सकों के पास जाते हैं। मनोरोग अस्पताल जम्मू से मिले आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में अस्पताल की ओपीडी में जांच करवाने के लिए 20540 मरीज आए। यह मरीज वर्ष 2018 में बढ़कर 30922 हो गए। इस साल अभी तक करीब 11 हजार मरीज अस्पताल में जांच करवा चुके हैं। इसी तरह श्रीनगर मनोरोग अस्पताल में वर्ष 2018 में 50 हजार से अधिक मरीज जांच करवाने के लिए आए। इसके अलावा आधे से अधिक मरीज ऐसे हैं, जो सरकारी अस्पताल में जांच करवाने के लिए नहीं आते हैं। सिर्फ जम्मू शहर के तीन प्रमुख मनोरोग चिकित्सकों के निजी क्लीनिकों की बात करें तो इनमें हर दिन औसतन डेढ़ सौ मरीज जांच करवाने के लिए आते हैं। अन्य जिलों में भी मनोरोग विशेषज्ञों के पास जांच करवाने के लिए मरीज आते हैं।
बढ़ रही है रोगियों की संख्या
मनोरोग अस्पताल जम्मू के एचओडी डॉ. जगदीश थापा का कहना है कि जम्मू कश्मीर में 90 के दशक के बाद से ही मनोरोगियों की संख्या बढ़ी है। आतंकवाद और पलायन के कारण तनाव बढ़ा है। उस समय अस्पतालों में लोग इलाज के लिए नहीं आते थे। लोग मनोरोग के बारे में जागरूक भी नहीं थे। अभी भी कई मनोरोगी इस अस्पताल में आने के स्थान पर मेडिकल कॉलेज जाते हैं। तीन दशक में राज्य में कई गुणा मनोरोगियों की संख्या बढ़ी है।
रिश्तों में पड़ रही दरार
मनोरोग विशेषज्ञों का मानना है कि रिश्तों में भी दरार पड़ रही हैं। इसका असर भी लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। ऐसे कई मामले अस्पतालों में आते हैं। यह लोग वर्षों तनावग्रस्त रहते हैं और कई प्रकार के रोगों से पीडि़त हो जाते हैं। रिश्तों में दरार आने वाले मामले बहुत बढ़े हैं।
इक्का-दुक्का लोग ही आते हैं इलाज के लिए
डॉ. जगदीश थापा का कहना है कि जम्मू कश्मीर में बेरोजगारी, आतंकवाद, प्राकृतिक आपदाएं, सीमांत क्षेत्रों में पाकिस्तान की गोलाबारी के कारण तनाव अधिक है। कई लोगों को मालूम नहीं होता कि उन्हें सुबह कहां और रात के समय कहां रहना है। यह लोग अस्पतालों में भी इलाज के लिए नहीं आते हैं। इक्का-दुक्का लोग ही इलाज के लिए आते हैं। वर्ष 2005 में आए भूकंप के बाद मानसिक रोग से पीडि़त कई मरीज अभी भी इलाज के लिए आते हैं।
मनोरोग विशेषज्ञों की कमी
राज्य में मानसिक रोगियों की संख्या जहां बढ़ी है, वहां मनोरोग विशेषज्ञों की कमी बनी हुई है। जम्मू के मनोरोग अस्पताल में मात्र तीन ही फैकल्टी सदस्य हैं। डॉ. जगदीश थापा को सेवानिवृत्ति के बाद फिर से नियुक्त किया गया है। वहीं, डॉ. मनु अरोड़ा व डॉ. राकेश बनाल दो अन्य स्थायी फैकल्टी सदस्य हैं। डॉ. शाजिया मनोविज्ञान में पीएचडी हैं। डॉ. अभिषेक चौहान को स्वास्थ्य विभाग से इस अस्पताल में नियुक्त किया गया है। गांधीनगर अस्पताल में डॉ. अखिल मीनिया अपनी सेवाएं दे रहे हैं।