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Exhibition in Jammu: डोगरा संस्कृति की कला और संस्कृति की छाप छोड़ गया दो दिवसीय समारोह, लोक नृत्य ने दर्शकों का किया मनोरंजन

हिमालय हेरिटेज म्यूजियम में डोगरा वर्तन सगला बलटोई देसका परथी पतीला जग पुराने भांती के गिलास पसंद किए गए। मुगली स्टाइल का मैटल का बना हुक्का आकर्षण का केंद्र रहा। भेड़ की शकल का बना हुक्का और अन्य कई तरह के हुक्के देखने को मिले

By lokesh.mishraEdited By: Published: Sun, 27 Dec 2020 03:44 PM (IST)Updated: Sun, 27 Dec 2020 03:52 PM (IST)
Exhibition in Jammu: डोगरा संस्कृति की कला और संस्कृति की छाप छोड़ गया दो दिवसीय समारोह, लोक नृत्य ने दर्शकों का किया मनोरंजन
हिमालय हेरिटेज म्यूजियम में डोगरा वर्तन, सगला, बलटोई, देसका, परथी, पतीला, जग, पुराने भांती के गिलास पसंद किए गए।

जम्मू, जागरण संवाददाता। कला केंद्र में पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित दो दिवसीय समारोह ने डोगरा शिल्प, संस्कृति, खान-पान और संस्कारों की छटा बिखेरी। विरासत से जुड़ी चीजों की प्रदर्शनी ने आकर्षित किया तो गुज्जर संस्कृति को दर्शाती फोटो प्रदर्शनी ने जम्मू-कश्मीर की मिली-जुली संस्कृति की मजबूती का अहसास करवाया। वहीं गीत संगीत और लोक नृत्यों का भी लोगों ने पूरा लुत्फ उठाया। कला केंद्र के अंदर हिमालय हेरिटेज म्यूजियम और अमर संतोष म्यूजियम की प्रदर्शनियों ने दर्शाया कि हमारी सांस्कृतिक जड़ें कितनी मजबूत हैं।

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हिमालय हेरिटेज म्यूजियम में डोगरा वर्तन, सगला, बलटोई, देसका, परथी, पतीला, जग, पुराने भांती के गिलास पसंद किए गए। मुगली स्टाइल का मैटल का बना हुक्का आकर्षण का केंद्र रहा, जिस पर चांदी का काम हुआ था। सिर्फ इतना ही नहीं भेड़ की शकल का बना हुक्का और अन्य कई तरह के हुक्के देखने को मिले जो कभी शान और शौकत हुआ दर्शाया करता था। इंद्र सिंह के पास स्वतंत्र भारत के सिक्कों के अलावा कुशान काल, कश्मीरी कारकोटा, इंडो ग्रीक सिक्के, डोगरा सिक्कों की भी काफी अच्छी कोलेक्शन दिखी। चांदी के लगभग सभी प्रकार के सिक्के भी युवाओं को आकर्षित करते दिखे। सिख काल की 18 शताब्दी के सिक्कों के अलावा पांंडुलिपियों में 1884 का गुरुमुखी में भागवत महापुराण, कैलोग्राफी की हुई वशिष्ठ रामायण।

पन्ने की बनी सबसे छोटी मूर्ति, राधा कृष्ण और गणेश जी की छोटी मूर्तियां। हिमालयण हेरिटेज म्यूजियम के चेयरमैन इंद्र सिंह ने बताया कि वह 40 वर्षों से भी ज्यादा समय से लगातार कोलेक्शन कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में खास प्रोत्साहन न होने के कारण आगे काम करने की हिम्मत नहीं होती, लेकिन वह चाहते हैं कि विरासत से जुड़ी इन धरोहरों को वह सुरक्षित आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं। युवा सिमरण एवं रमण उप्पल ने कहा कि प्राइवेट म्यूजियम आज सरकारी संग्रहालयों से बेहतर काम कर रहे हैं, लेकिन उनके प्रोत्साहन की ओर कोई ध्यान नहीं है। अगर उन्हें प्रोत्साहित किया जाए तो वह इससे भी अच्छा संग्रहालय बना सकते हैं।

150 साल पुराना नुक्शा बढ़ा रहा था जिज्ञासा : अमर संतोष म्यूजियम की प्रदर्शनी में पुराने डोगरा वाद्य यंत्र तो आकर्षण का केंद्र रहे ही पत्थर के वर्तन, टैराकोटा वर्तन, जहर मोहरा, अस्त्र शस्त्र, तीर, तिब्तियन डैगर, पित्तल का चाकू, जनजातीय जेबरात, चंद्र गुप्त मोर्या काल, कुशान, गुप्ता, मुगल, डोगरा काल के सिक्के। इसके अलावा पांडुलिपियों में राजतरंगणी, पेंटिंग्स और शारदा, अरबी, फारसी टाकरी पांडुलिपियां, 150 वर्ष पुराना नक्शा जिज्ञासा बढ़ाने वाला था। वहीं चांदी का कश्मीरी समावार जिस पर महाभारत के युद्ध को दर्शाती कढ़ाई हुई है, वह प्रदर्शनी में काैतूहल बना हुआ था।

अमर संतोष म्यूजियम ऊधमपुर के निदेशक अनिल पावा ने बताया कि उनके पास काफी अच्छी कोलेक्शन है। देश भर में आयोजित कई प्रदर्शनियों में अपने संग्रह की चुनिंदा चीजों को प्रदर्शित कर चुके हैं। सरकारी प्रोत्साहन मिलता रहे तो संग्रह की काफी संभावना है। उन्होंने कहा कि ऊधमपुर में एक म्यूजियम होना चाहिए। इससे युवा पीढ़ी अपनी विरासत से जुड़ेकी, साथ ही प्रर्यटक म्यूजिसम में आकर यहां की संस्कृति से रुबरू हो सकेंगे।


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