श्रद्धा से मनाया गया तुलसी विवाह
जागरण संवाददाता, जम्मू : डुग्गर परिवार के हर घर में माता तुलसी के विवाह का पर्व बड़ी श्रद्धा
जागरण संवाददाता, जम्मू : डुग्गर परिवार के हर घर में माता तुलसी के विवाह का पर्व बड़ी श्रद्धा से मनाया गया। माता तुलसी का भगवान विष्णु के साथ पूरी श्रद्धा एवं आस्था के साथ विवाह किया गया। महिलाओं ने मंदिरों और घरों में माता तुलसी के विवाह पर्व पर तुलसी माता को दुल्हन की तरह सजाया। उन्हें लाल रंग की चुनरी ओढ़ाई गई व कलीरे भी पहनाए गए। शालीग्राम के रूप में भगवान विष्णु को भी सुंदर वस्त्र पहना कर सजाया गया। तुलसी विवाह की महिलाओं ने कई विशेष तैयारियां कर रखी थी।
महिलाओं ने तुलसी माता की सजावट में तरह-तरह की रंगोली बनाई और तरह-तरह के परिधानों से सजाया। फल-फूल, धूप दीप से महिलाओं ने भगवान विष्णु के सांकेतिक स्वरूप शालीग्राम और माता तुलसी की पूजा भी की। उन्हें खिचड़ी का प्रसाद, गन्ना, मूली व अन्य सब्जियां अर्पित की गई। खिचड़ी चावलों की नई फसल की ही तैयार की जाती है। भगवान विष्णु की माता तुलसी से शादी के शुभ अवसर पर महिलाओं ने उपवास भी रखा था। महिलाओं ने सर्वप्रथम तुलसी माता को जल चढ़ाया और उसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर प्रसाद ग्रहण किया।
मंदिरों में सुबह व शाम के समय भजन-कीर्तन भी हुआ। इस दौरान महिलाओं ने तुलसी विवाह से जुड़ी कथा भी सुनाई। उन्होंने बताया कि तुलसी बनने से पूर्व देवी वृंदा थीं और जालंधर से उनका विवाह हुआ था। जालंधर अपनी शक्तियों से मानव जाति पर अत्याचार करता था। विष्णु की उपासक होने के कारण वृंदा ने ऐसा करने से जालंधर को मना किया, लेकिन न मानने पर भी शिव ने विष्णु की मदद से जालंधर का अंत किया। इसके बाद गुस्से में आकर वृंदा ने विष्णु को काले होने का श्राप दिया। लेकिन, राम अवतार में आकर तुलसी ने विष्णु से विवाह किया। उसके बाद विष्णु ने वृंदा को पौधे में बदलकर मानव कल्याण करने का वरदान दिया। तबसे अब तक तुलसी की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता भी है तुलसी विवाह के साथ ¨हदुओं में विवाह करने का समय शुरू हो जाता है। तारा अस्त होने के कारण नहीं होगा उद्यापन (मोख)
श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री ने बताया गुरु एवं शुक्र अस्त होने के दिनों में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस महीने 10 नवंबर से गुरु अस्त हैं जो अगले महीने 7 दिसंबर को उदय होंगे। डुग्गर प्रदेश में व्रत उद्यापन करने को मोख करना कहते हैं। गुरु अस्त होने के कारण ही श्रद्धालु तुलसी विवाह का मोख नहीं कर पाए। भीष्म पंचक भी इस अवधि में आ रहे हैं। इसीलिए इनका उद्यापन भी संभव नहीं है। धर्म ग्रंथों में कार्तिक माह में भीष्म पंचक व्रत का विशेष महत्व कहा गया है। यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। भीष्म पंचक को पंच भीखू के नाम से भी जाना जाता है। भीष्म पितामह ने इस व्रत को किया था। इसलिए यह भीष्म पंचक नाम से प्रसिद्ध हुआ। डुग्गर प्रदेश में इसको दीयों का मोख कहते हैं। कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी 19 नवंबर सोमवार को है और कार्तिक पूर्णिमा 23 नवंबर शुक्रवार को। गुरु अस्त (तारा डूबने) के कारण इस व्रत का मोख भी नहीं होगा।