Move to Jagran APP

जम्मू-कश्मीर के जिला ऊधमपुर में मिला वानर का 1.3 करोड़ वर्ष पुराना जीवाश्म

ऊधमपुर में मिला वानर का 1.3 करोड़ वर्ष पुराना जीवाश्मअमेरिकी शोधार्थियों के दल ने चंडीगढ़ के छात्रों के साथ खोजा था सबसे पुराने वानर का दांत-कई चौंकाने वाले खुलासों की राह खुली

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2020 09:26 AM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2020 01:06 PM (IST)
जम्मू-कश्मीर के जिला ऊधमपुर में मिला वानर का 1.3 करोड़ वर्ष पुराना जीवाश्म
जम्मू-कश्मीर के जिला ऊधमपुर में मिला वानर का 1.3 करोड़ वर्ष पुराना जीवाश्म

जम्मू, प्रेट्र । करीब 1.3 करोड़ वर्ष पहले जम्मू-कश्मीर के ऊधमपुर के जंगलों में वानर (एप) विचरण करते थे। ऊधमपुर जिले की रामनगर तहसील में वानर की नई प्रजाति के जीवाश्म से इसकी पुष्टि हुई है। अंतरराष्ट्रीय शोधार्थियों के दल द्वारा किए गए शोध में वानर सभ्यता के कई रहस्यों से पर्दा उठा है। इसे वर्तमान लंगूर का सबसे पुराना पूर्वज भी माना जाता है।

loksabha election banner

अंतरराष्ट्रीय पत्रिका 'प्रोसीडिंग्स आफ द रॉयल सोसाइटी बी' में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार, यह साबित हो गया है कि वानर अफ्रीका से एशियाई देशों में आए थे और उत्तर भारत में विचरण करते थे। इससे हम वानर सभ्यता के इतिहास में 50 लाख साल पीछे जा पहुंचे हैं और कई चौंकाने वाले खुलासों की राह खुल गई है।

अमेरिका में एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी और चंडीगढ़ में पंजाब विवि के शोधार्थियों को ऊधमपुर जिले के रामनगर में पुरातत्व महत्व की साइट पर एप की इस सबसे पुरानी ज्ञात प्रजाति का दांत मिला था। एक शोधार्थी के अनुसार, साबित हो गया है कि लंगूर और वनमानुष के पूर्वज एक ही कालखंड में उत्तर भारत में पाए जाते थे। यह जीवाश्म 'कपि रमनागरेंसिस' प्रजाति के वानर का है। यह एक सदी में रामनगर के प्रसिद्ध जीवाश्म स्थल पर खोजी पहली नई जीवाश्म वानर प्रजाति का प्रतिनिधित्व करता है।

अचानक मिला एक दांत :

बताया जाता है कि अनुसंधानकर्ता क्षेत्र में एक छोटी पहाड़ी पर चढ़ रहे थे, जहां उन्हें वानर के एक जबड़े का जीवाश्म मिला था। दल कुछ देर के लिए आराम के लिए रुका तो उन्हें कुछ चमकीला दिखा। दल में शामिल न्यूयार्क स्थित सिटी यूनिवर्सिटी के क्रिस्टोफर सी. गिलबर्ट कहते हैं कि हम तत्काल समझ गए कि यह वानर का दांत है, लेकिन यह पूर्व में मिले वानरों के किसी दांत जैसा नहीं दिख रहा था। हमारा प्रारंभिक अनुमान यह है कि यह लंगूर के पूर्वज का हो सकता है, लेकिन ऐसे वानर के जीवाश्म का कोई रिकॉर्ड नहीं था। शोधार्थी इसे बड़ी खोज मान रहे हैं।

वानर के इतिहास में नई खोज :

उन्होंने लिखा है कि वानर की बहुत सी प्रजातियों का जीवाश्म रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। इसका आकार और संरचना बता रही थी कि यह लंगूर के पूर्वज के जबड़े का हिस्सा है। 2015 में जीवाश्म की खोज के बाद इसकी सही आयु पता लगाने के लिए वर्षो के शोध और विभिन्न प्रजातियों से तुलना की गई। इसके अलावा दांत का सिटी स्कैन कर वर्तमान प्रजातियों के जबड़े से इसकी आंतरिक संरचना की तुलना की गई। उसके आधार पर ही वानर की सही प्रजाति और कालखंड की जानकारी की पुष्टि की जा सकी।

रिसर्च टीम के सदस्य एलेजेंडरा ऑर्टिज के अनुसार, मेहनत सफल हुई और यह पुष्ट हो गया कि यह दांत 1.3 करोड़ साल पुरानी लंगूर की प्रजाति का ही है। अभी भी हमारे पास केवल एक दांत है, फिर भी यह नया शोध है।

अफ्रीका से हुआ था वनमानुष के पूर्वजों का पलायन :

इससे यह भी साबित हो गया है कि वनमानुष के पूर्वजों और वानरों का पलायन एक कालखंड में ही अफ्रीका से एशिया की ओर हुआ था। आज लंगूरों और वनमानुष की प्रजातियां दक्षिण एशियाई देशों में मिलती हैं और इनके सबसे पुराने जीवाश्म अफ्रीका में मिलते हैं। अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित इस शोधपत्र के अनुसार, इस शोध से वानर सभ्यता के युग आपस में जुड़ गए। साथ ही यह तथ्य साबित हो गया कि एशिया में वानर अफ्रीका से आए थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.