तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके सांसद डॉ फारूक अब्दुल्ला पीएसए लगने के बाद कैसे बिता रहे हैं दिन जानिए!
नजरबंदी के दौरान फारूक अब्दुल्ला अपने घर में कहीं भी बैठ सकते थे घूम सकते थे। लेकिन अब प्रशासन ने उनके घर को उपजेल का दर्जा दिया है।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके सांसद डॉ फारूक अब्दुल्ला इन दिनों जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत बंदी बनाए गए हैं। राजनीतिक के मंझे खिलाड़ी माने जाने वाले नेशनल कांफ्रेंस प्रधान डाॅ फारूक अब्दुल्ला को उनके ही घर के एक कमरे में सीमित कर दिया गया है। उन पर आरोप है कि वह भड़काऊ बयानबाजी कर लोगों को सरकार और देश खिलाफ लामबंद कर कानून व्यवस्था का संकट पैदा कर सकते हैं। इसके साथ ही उन पर आतंकवादियों और अलगाववादियों को बढ़ावा देने वाली बयानबाजी करने का आरोप भी है।
पीएसए के तहत बंदी डॉ फारूक अब्दुल्ला भले अपने ही घर में हैं परंतु उनके साथ वैसा ही बरताव किया जा रहा है जो पीएसए लगे दूसरे कैदियों के साथ किया जाता है। आइए बताएं वह इन दिनों अपना समय कैसे बीता रहे हैं।
एक कमरे में कैद हुए फारूक :
नजरबंदी के दौरान फारूक अब्दुल्ला अपने घर में कहीं भी बैठ सकते थे, घूम सकते थे। लेकिन अब प्रशासन ने उनके घर को उपजेल का दर्जा दिया है। पीएसए लागू होने के बाद संबंधित प्रशासन ने उनके घर के सभी कमरों पर ताला जड़ दिया है। ऐसे में उनके लिए सिर्फ एक कमरा जिसके साथ स्नानगृह और शौचालय की सुविधा है, खुला रखा है। उन्हें जेल मैनुअल के मुताबिक सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। बता दें कि फारूक को चार अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाने से पहले नजरबंद किया गया था।
पीएसए के दो वर्ग हैं :
पूरे देश में जहां राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) लागू है तो वहीं जम्मू कश्मीर में जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) है। पीएसए के दो वर्ग हैं। पब्लिक ऑर्डर के तहत बंदी बनाए जाने वाले को तीन से छह माह तक बिना किसी सुनवाई के कैद रखा जा सकता है। जबकि देश की एकता व अखंडता के लिए खतरे के तहत बंदी बनाए जाने वाले को दो साल तक कैद रखा जा सकता है।
प्रशासन ने सात ऐसे मामलों का किया जिक्र :
डॉ. अब्दुल्ला के खिलाफ पीएसए का आदेश जारी करते हुए प्रशासन ने 2016 और उसके बाद सात ऐसे मामलों का जिक्र किया है, जिनमें उन्होंने अलगाववादियों और आतंकियों का खुलकर पक्ष लिया है। पीएसए लागू करने संबंधी आदेश में कहा है कि 370 और 35ए को हटाए जाने के मुद्दे पर डॉ. अब्दुल्ला लोगों को राज्य के खिलाफ लामबंद होने के लिए उकसा रहे थे। वह निरंतर बयान जारी कर लागों को विद्रोह के लिए उकसा रहे थे। इसमें कहा है कि वह इस मुद्दे पर बहस और चर्चा पर जोर दे सकते थे। लेकिन वह राष्ट्रीय एकता व अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाली बातें करते हुए आतंकियों को हीरो बना रहे हैं।