जम्मू-कश्मीर में हिंदी अकादमी नहीं, कैसे हो प्रचार-प्रसार
जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने पर उम्मीद थी कि अब प्रदेश में हिंदी को अपना उचित स्थान मिल सकेगा। हिंदी का खूब प्रचार-प्रसार होगा और अधिकतर कार्य हिंदी में होने लगेंगे। सबसे बड़ा प्रयास हुआ और उर्दू के साथ कश्मीरी डोगरी हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया।
जम्मू, अशोक शर्मा । जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने पर उम्मीद थी कि अब प्रदेश में हिंदी को अपना उचित स्थान मिल सकेगा। हिंदी का खूब प्रचार-प्रसार होगा और अधिकतर कार्य हिंदी में होने लगेंगे। इस दिशा में सबसे बड़ा प्रयास हुआ और उर्दू के साथ कश्मीरी, डोगरी, हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। सरकार के इस कदम का जमकर स्वागत हुआ और हिंदी की उड़ान नए जज्बे से शुरू होने की उम्मीद बंधी। अभी तक राज्य में हिंदी अकादमी की स्थापना नहीं हो पाई है। सरकार को इस दिशा में कदम उठाना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर में कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी है, जहां हिंदी की नाम की इकाई चल रही है। यहां से पिछले करीब 30 माह में त्रैमासिक हिंदी पत्रिका शीराजा के प्रकाशन के अलावा हिंदी में कोई विशेष कार्य नहीं हो सका है। यहां हिंदी अकाडमी की स्थापना की मांग उठती रही है, लेकिन सरकार ने अब तक इस दिशा में कुछ नहीं किया है। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद गणतंत्र दिवस समारोह पर अखिल भारतीय हिंदी कवि सम्मेलन का आयोजन जरूर किया गया, लेकिन उसमें भी कवियों का चयन ऐसा नहीं था कि कोई कवि किसी नए लेखक को हिंदी लिखने के लिए प्रेरित कर सके। अगर हिंदी अकादमी का गठन होता है तो हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार को गति देने में मदद मिलती।
हिंदी को लेकर सरकार दिखाए गंभीरता
जम्मू यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त प्रो. राज कुमार का कहना है कि यदि जम्मू कश्मीर में हिंदी अकादमी बनती है तो हिंदी देश के दूसरे राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर में भी फल फूल सकेगी। राज्य में हिंदी में लिखने, समझने, पढऩे वालों की कोई कमी नहीं है, लेकिन इसके विकास के लिए जिस गंभीरता से कार्य होना चाहिए, वह नहीं हो रहा। मैं तो कहूंगा कि जब से जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बना है हिंदी ही नहीं, सभी भाषाओं की सांस्कृतिक एवं साहित्यिक यात्रा थम सी गई है।
उपराज्यपाल से भी उठा चुके हैं मांग
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कश्मीर के वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार सतीश विमल का कहना है कि देशभर के कई राज्यों में हिंदी अकादमियां हैं। जम्मू-कश्मीर में इसकी लंबे समय से जरूरत महसूस की जाती रही है। हिंदी अकादमी बनने से प्रदेश में हिंदी का अच्छी तरह प्रचार-प्रसार होगा। साहित्यकारों का काम करने के मौके मिलेंगे। शोध पत्र लिखे जा सकेंगे। नए प्रकाशन, अनुवाद आदि पर अधिक से अधिक काम हो सकेगा। इस मामले को लेकर कुछ साहित्यकार उपराज्यपाल से भी मिल चुके हैं। कोरोना के चलते इस काम को गति नहीं मिल सकी लेकिन उम्मीद है कि जल्द प्रदेश में हिंदी अकादमी का गठन हो सकेगा।
भाषा के उत्थान से जुड़े कई प्रोजेक्ट पाइप लाइन में हैं। अगर किसी भाषा की कोई अकादमी बनती है तो इसका साहित्य जगत को काफी लाभ मिलना तय है। कोरोना के चलते प्राथमिकताएं बदल गई हैं, लेकिन हालात सामान्य होते ही फिर से सभी कार्य तेजी से शुरू हो जाएंगे।
-संजीव राणा, अतिरिक्त सचिव, जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी