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किश्तवाड़ का सच-2 : कौन है चिनाब दरिया के किनारे बसा खूबसूरती से सराबोर किश्तवाड़ के अमन का दुश्मन

चिनाब दरिया के किनारे बसा प्राकृतिक खूबसूरती से सराबोर किश्तवाड़ कस्बा फिर सुर्खियों में है। वर्ष 2007 में जिला बना किश्तवाड़ शुरू से ही सांप्रदायिक और आतंकी हिंसा का केंद्र रहा है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 14 May 2019 03:42 PM (IST)Updated: Tue, 14 May 2019 03:42 PM (IST)
किश्तवाड़ का सच-2 : कौन है चिनाब दरिया के किनारे बसा खूबसूरती से सराबोर किश्तवाड़ के अमन का दुश्मन
किश्तवाड़ का सच-2 : कौन है चिनाब दरिया के किनारे बसा खूबसूरती से सराबोर किश्तवाड़ के अमन का दुश्मन

जम्मू, राज्य ब्यूरो। जम्मू से करीब 235 किलोमीटर दूर चिनाब दरिया के किनारे बसा प्राकृतिक खूबसूरती से सराबोर किश्तवाड़ कस्बा फिर सुर्खियों में है। लगभग डेढ़ दशक तक आतंकवाद के मकड़जाल में रहे किश्तवाड़ में दोबारा हवा का झोंका बड़ी साजिश की तरफ इशारा कर रहा है। पिछले छह माह में चार हत्याएं, ओवरग्राउंड वर्करों का पकड़ा जाना, आइएसआइ जासूस की गिरफ्तारी, पुलिसकर्मी की राइफल छीनने की वारदात के पीछे आतंकियों के फिर सक्रिय होने के दावे सच लगने लगे हैं।

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स्थानीय लोगों के चेहरों के हाव-भाव असामान्य लग रहे हैं। गलियों, बाजारों व दुकानों में बैठे लोगों की बातचीत बता देती है कि सभी डरे हैं। सतह पर नजर आने वाली शांति भंग करने वाला बड़ा बखेड़ा किसी भी समय भी हो सकता है। अगर सरकार और जिला प्रशासन ने बारूद की तरह सुलग रहे किश्तवाड़ पर जल्द गंभीरता से ध्यान नहीं दिया तो फिर आतंकवाद का दानव कहीं शांति से अशांति की तरफ धीरे-धीरे लौट रहे पहाड़ी जिले को निगल न ले।

लगी अलगाववादियों और जेहादियों की नजर

वर्ष 2007 में जिला बना किश्तवाड़ शुरू से ही सांप्रदायिक और आतंकी हिंसा का केंद्र रहा है। जब यह जिला नहीं बना था और किश्तवाड़ डोडा का एक हिस्सा था तो धर्मांध जिहादियों द्वारा अंजाम दिए अधिकांश नरसंहार इसी इलाके में हुए थे। लददर, सरहोती धार, छिरजी में कई घटनाएं आज भी यहां कई लोगों में सिहरन पैदा कर देती हैं।

कश्मीर से बाहर किश्तवाड़ शुरू से अलगाववादियों और जिहादियों के निशाने पर रहा है। यह कभी भी घाटी के हालात से अछूता नहीं रहा है। हरकत उल जेहाद ए इस्लामी, मुस्लिम जांबाज फोर्स, लश्कर और हिज्ब के आतंकियों का बड़ा कैडर इस क्षेत्र से रहा है। वर्ष 2005 के बाद इस क्षेत्र में आतंकी गतिविधियां नाममात्र रह गई। आतंकियों की संख्या भी दर्जन से नीचे रह गई थी जो कभी-कभार जंगल से नीचे आते थे। पूरे क्षेत्र को सुरक्षाबलों ने ग्रीन जोन अथवा आतंकवाद से मुक्त क्षेत्र मानना शुरू कर दिया था।

वर्ष 2013 को ईद पर्व के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगों जिनमें कथित तौर पर तत्कालीन विधायक की भूमिका बताई जाती है, ने बता दिया किश्तवाड़ रेड जोन होने जा रहा है। यह साजिश वर्ष 2013 के बाद तेज हुई। स्थानीय मस्जिद से अक्सर जिहादी नारे भी गूंजने लगे।

कश्मीर में अलगाववादियों के बंद व हड़ताल का एलान बाद में होता उसका असर किश्तवाड़ में पहले नजर आने लगा। इन सभी के बीच आतंकियों के पुराने ओवरग्राउंड वर्कर भी सक्रिय होने लगे। 

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