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Coronaeffect In Kashmir: कश्मीर की परंपरागत दावत का अंदाज बदला, अब साथ बैठ त्रामी में खाना नहीं खाते मेहमान

गत दिनो मैं एक दावत में गया वहां खान की अलग थाली के अलावा प्रत्येक मेहमान के लिए सैनिटाइजर की एक छोटी बोतल टिश्यू पेपर और मास्क भी एक टोकरी में सजाकर रखा गया था।सरकारी अध्यापक हारुन ने कहा कि मैं सोपोर में एक बाराती बनकर गया था।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 01:04 PM (IST)Updated: Wed, 23 Sep 2020 01:12 PM (IST)
Coronaeffect In Kashmir: कश्मीर की परंपरागत दावत का अंदाज बदला, अब साथ बैठ त्रामी में खाना नहीं खाते मेहमान
कश्मीर में दावतों में सदियों पुरानी परंपरा त्रामी की जगह अब एक छोटी प्लेट ले रही है।

श्रीनगर, नवीन नवाज। कोरोना के फैलते मकड़जाल का असर अब कश्मीर की परंपराओं पर भी होने लगा है। दावतों में त्रामी की पंरपरा फिलहाल बंद होती जा रही है औेर उसके स्थान पर एक खाने की एक छोटी प्लेट लेती जा रही है। कश्मीर में शादी ब्याह का अवसर हो या काेई अन्य दावत, खाना तांबे की एक बड़ी तश्तरी अथवा थाली में परोसा जाताहै। एक थाली में चार लोग एक साथ ही खाते हैं। इसे त्रामी कहते हैं। कोरोना से पैदा हालात से सीख लेते हुए अब कश्मीरी समुदाय भी शारीरिक दूरी और साफ-सफाई के सिद्धांत को अपनाते हुए त्रामी को दूर से सलाम कर रहा है।

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मेहमानो काे सैनिटाइजर, मास्क और टिश्यु पेपर भी दिए जा रहे हैं।ग्रीष्मकालीन राजधानी के लाल बाजार में रहने वाले जहूर जरगर ने गत दिनों अपनी बेटीकी शादी की। उसने कहा कि पिछले साल अगस्त माह के दौरान मेरी बेटी की शादी तय थी,लेकिन हालात के चलते इसे स्थगित करना पड़ा।हमने इस साल मई में शादी का फैसला किया था,लेकिन कोरोनो से पैदा हालात के चलते नहीं कर पाए।फिर हमने सितंबर महीना तय किया। हालात ठीक नहीं थ,लेकिन हमने तय किया कि अब शादी को स्थगित नहीं किया जा सकता। हमने इस बात को सुनिश्चित बनाया कि मेहमान किसी भी तरह से कोविड-19 प्राेटोकाल का उल्लंघन न करें। बहुत कम रिश्तेदारों को बुलाया गया। सबसे ज्यादा दिक्कत थी, मेहमानों के लिए दावत में।

आपको पता ही है यहां दावत में वाजवान त्रामी में परोसा जाता है। इसमें बदलाव बहुत मुश्किल था, फिर भी हमने तय किया कि भाेजन त्रामी में नहींं,बल्कि प्रत्येक मेहमान को अलग अलग थाली में परोसा जाएगा। वाजा (कश्मीरी व्यंजन तैयार करने वाले परंपरागत रसोईयों का वाजा कहा जाता है) को हमने कहा कि वह वाजवान तैयार करते हुए और मेहमानों को खाना परोसते हुए पूरी साफ सफाई का ध्यान रखें। जहूर जरगर ने कहा कि बाराती हमारे इंतजाम से बहुत खुश हुए। हमने सभी का एक दूसरे से थोड़ी दूर बैठाकर खाना खिलाया। सभी के लिए अलग अलग थाली सजाई गई थी।

दावतनामे से भी त्रामी गायब: वादी में लोग अब शादी के दावतनामे पर भी लिखने लग हैं कि खाना त्रामी में नहीं होगा। प्रत्येक मेहमान के लिए अलग अलग थाली परोसी जाएगी। पीरबाग के रहने वाले मंजूर शाह ने कहा कि हमने अपन भतीजे की शादी के लिए जो दावतनामा मेहमाना का भेजा, उसमें हमने विशेष तौर पर लिखा था कि वाजवान के लिए त्रामी नहीं होगी। खाना तांब की अलग-अलग थालियों में ही परोसा जाएगा। उन्होंन कहा कि हमने बीते कुछ महीनों से देखा है कि दावत में बुलाए जाने पर अक्सर मेहमान पूछते हैं कि खाना त्रामी में होगा या अलग-अलग बैठकर खान की व्यवस्था है। त्रामी की व्यवस्था पर मेहमान आने से बचते हैं।ताहिर काजमी ने कहा कि त्रामी केबजाय अलग-अलग थाली में खाना परोसा जाना बहुत बेहतर है। इससे एक तो संक्रमण से बचा जा सकेगा। 

अब मेहमानों को इंतजार नहीं करना पड़ता और यह स्वास्थ्यजनक भी है। त्रामी में कई बार आपके साथ अंजान व्यक्ति भी खाना खाने बैठ जाता है और आप उसे मना नहीं कर सकते,कया पता वह किस संक्रामक रोग शिकार है। दो दिन पहले हम एक शादी में शरीक होने गए थे,वहां दूल्हा मास्क पहने हुएथा। दुल्हन ने भीमास्क लगाया था,लेकिन यह दाेनो मास्क डिजायनर थे और उनकी ड्रेसेज के अनुरुप थे। खैर,सभी डिजायनर मास्क नहीं पहन रहे हैं।उमर हाफिज ने कहा कि बात सिर्फ त्रामी तक सीमित नहीं रही है। अब शादी ब्याह और अन्य दावतों में मेहमानों को खाना खिलाते हुए उनके लिए सैनिटाइजर, टिश्यू और मास्क भी रखे जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कभी यहां किसी ने नहीं साेचा था कि दावत में लोग एक दूसरे से दूर बैठकर,फेस शील्ड लगाकर बैठेंगे। दूल्हा दुल्हन भी अब मास्क लगाए हुए नजर आते हैं।

गत दिनो मैं एक दावत में गया, वहां खान की अलग थाली के अलावा प्रत्येक मेहमान के लिए सैनिटाइजर की एक छोटी बोतल, टिश्यू पेपर और मास्क भी एक टोकरी में सजाकर रखा गया था।सरकारी अध्यापक हारुन ने कहा कि मैं सोपोर में एक बाराती बनकर गया था। वहां हम सभी को त्रामी में नहीं बल्कि मिट्टी के बनी थालियों में वाजवान परोसा गया। मैने जब मेजबानों से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि मिट्टी की यह थालियां बाद में नष्ट कर दी जाएंगी आैर यह पर्यावरण के अनुकूल हैं। वाजवान भी सादगी से तैयार किया गया था।

1416-1470 के दरम्यान हुई थी शुरू, बराबरी का देता है संदेश

कश्मीरी भाषा के वयोवृद्ध साहित्यकार और कवि जरीफ अहमद जरीफ ने कहा जहां तक मेरी जानकारी है, कश्मीर में त्रामी का प्रचलण आम लोगों में 1416 और 1470 के दरम्यिान सुल्तान जैन उल आबदीन के शासनकालमे शुरु हुआ था। उसके बाद इसमें कुछ थोडृ बहुत बदलाव जरुर हुए ,लेकिन यह हमारी पंरपरा का एक हिस्सा बन गए हैं। वाजवान आप चाहे घर में अपने लिए पकाएं,लेकिन किसी दावत में त्रामी में ही वाजवान पराेसा जाए और खाया जाए तो मजा आता है।  उन्होंने कहा कि त्रामी अब कश्मीरी संस्कृति का हिस्सा है,लेकिन डरता हूं जिसतरह से कोरोना के डर से लोग अब त्रामी में खाने से दूर भाग रहे हैं,कहीं त्रामी हमेशा के लिए हमसे दूर न होजाए।उन्होंन कहा कि त्रामी में भोजन कश्मीरी समाज में सामाजिक बराबरी का संदेश भी देता है। आप किसी भी दावत में जाएं, त्रामी में बिना किसी जात-पात और सामाजिक हैसियत से बेपरवाह होकर चार लोग एक साथबैठक खाना खाते हैं। मेरी आपसे चाहे बातचीत नहीं है, आपकी हैसियत मुझसे कहीं ज्यादा हो,अगर किसी दावत में मैं आपके साथ त्रामी पर बैठ जाऊं तो आप न मुझे उठा सकतेहैऔर खुद उठ सकते हैं। यह सामाजिक दूरियों को दूर करते हुए बराबरी का संदेश देती है। 

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