दूध की महक ही सिल्क साड़ियों पर कलमकारी की है पहचान, दूध में डुबो कर किया जाता है काम
कलमकारी में दूध का इस्तेमाल भी होता है इसकी जानकारी केवल सिल्क के जानकारों को ही होगी। सिल्क के यही जानकार इन दिनों कला केंद्र में आयोजित सिल्क प्रदर्शनी में पहुंच रहे हैं और कलमकारी का सामान खरीद रहे हैं।
जम्मू, जागरण संवाददाता : साड़ियों व शॉल पर राम वनवास, राम दरबार और प्राचीन व ऐतिहासिक मंदिरों के दृश्य तो आपने खूब देखे होंगे, लेकिन इस कलमकारी में दूध का इस्तेमाल भी होता है, इसकी जानकारी केवल सिल्क के जानकारों को ही होगी। सिल्क के यही जानकार इन दिनों कला केंद्र में आयोजित सिल्क प्रदर्शनी में पहुंच रहे हैं और कलमकारी का सामान खरीद रहे हैं। कलमकारी साड़ी से आने वाली दूध की महक ही इसकी पहचान है। बुनकर ऐसी ही ट्रेडिशन और रेयर फेब्रिक साड़िया लेकर आएं हैं।
हस्तशिल्पी की ओर से कला केंद्र बिक्रम चौक पर लगाई गई प्रदर्शनी में देश के 25 राज्यों से आए बुनकर परंपरागत कला प्रदर्शित कर रहे हैं। प्रदर्शनी में कोटा, तसर, मूंगा, कांजीवरम उप्पाड़ा, सॉफ्ट सिल्क, खादी सिल्क, टिशु सिल्क ढाका सिल्क जैसी तमाम सिल्क की किस्में मौजूद हैं, जिनमें बुनकरों ने अपनी उत्कृष्ट कला से जान डाल दी है। आंध्र प्रदेश के पास श्री कालाहस्ती से आए बुनकर बाबू ने सिल्क के स्टाल पर हाथों से खूबसूरत कलमकारी की है। कोलकाता के सुकुमार अपने साथ तसर पर बटिक प्रिंट की साड़ियां लाए हैं। ओर्गेंजा सिल्क पर हैंड एंब्रॉयडरी का काम भी लोगों को खूब पसंद आ रहा है। इसकी खासियत है कि इसका वजन अन्य सिल्क के मुकाबले काफी कम होता है।
भागलपुर का खास कलेक्शन भी ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, जिसमें लिनन, मटका, कौसा, बाटिक सूट, मधुबनी आदि मुख्य हैं। बनारस का कलेक्शन भी खूबसूरती में अपनी आभा बिखेर रहा है, जिनमें फेब्रिक, सूट्स, साड़ी आदि मुख्य हैं। यहां के मैटेरियल्स से कारीगर को ड्रेस बनाने में दो महीने का समय लग जाता है। इनकी रेंज 11 हजार से 36 हजार रुपये तक की है। आज ये मटेरियल बहुत ही कम जगह उपलब्ध होता है। प्रदर्शनी के आयोजक टी अभिनंद के अनुसार प्रदर्शनी 28 नवंबर तक चलेगी और कला प्रेमी सुबह दस बजे से लेकर रात नौ बजे तक इस प्रदर्शनी में सिल्क बुनकरों की कला को देखने व खरीदने आ सकते हैं।