India-China Border: ड्रैगन के सामने बेखौफ डटे रहे हैं लद्दाख के चरवाहे, सेना के लिए आंख, नाक और कान का भी करते हैं काम
लेह पर्वतीय स्वायत परिषद में चुशूल के पार्षद कोनचुक स्टेंजिन के मुताबिक हमेशा स्थानीय चरवाहों ने ही सबसे पहले घुसपैठ का मुकाबला किया है।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। पूर्वी लद्दाख में पांच मई से जारी विवाद के बीच चीनी सेना की हिमाकत ने तनाव बढ़ा दिया है पर भारतीय सेना वहां हौसले के साथ डटी है। वहीं आम लद्दाखी भी जोश के साथ भारतीय सेना के साथ कदमताल करने को तैयार है। लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास ड्रैगन ने जब भी कोई टेढ़ी चाल चली, यहां के चरवाहे उसे नाकाम बनाने के लिए पहले डटे गए और कई बार चीनी सैनिकों को वापस लौटने पर भी मजबूर कर दिया। विशेषकर दमचुक और पैगांग इलाके में चीन को यहां के लोगों के विरोध के कारण बार-बार पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा है। यह लोग भारतीय सेना और प्रशासन की आंख,नाक और कान की तरह भी काम करते रहे हैं।
लद्दाख में तैनात एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के मुताबिक, यह पहला अवसर नहीं है, जब चीनी सैनिकाें ने पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ की है। वह 1959 से लगातार ऐसी साजिशें रच रहा है और पैंगोंग झील के क्षेत्र पर कुदृष्टि रखता रहा है। 1962 में भी चीन ने हमला करते हुए लद्दाख के भूभाग पर अनधिकृत कब्जा जमा लिया। 1993 में भारत-चीन ने एक समझौते के तहत 1962 की जंगबंदी रेखा को वास्तविक नियंत्रण रेखा माना है। इसमें पैंगोंग झील के आसपास फिंगर पांच से आठ तक उसका इलाका है, जबकि इस समय चीन की सेना फिंगर चार के आगे आकर बैठ चुकी है।
उन्होंने बताया कि बीते तो दशकों के दौरान चीनी सेना ने कई बार भारतीय इलाके का अतिक्रमण करने का प्रयास है। सुरक्षाबल चूंकि संयम बरतते हैं, ऐसी स्थिति में स्थानीय नागरिकों ने कार्रवाई की है। उन्होंने बताया कि पैगांग झील लद्दाखियों के लिए बहुत अहम है। इस झील में नमक भी पैदा होता है और इसके औषधिय गुण भी हैं और लद्दाख के लोग इसका निर्यात भी करते रहे हैं।
चीनी सैनिक अपने गडरियों की कराते हैं घुसपैठः इसके अलवा दमचुक और चुशूल के अग्रिम हिस्सों में चरागाह हैं। चीनी सैनिक अपने गडरिए को आगे कर इन चरागाहों पर अक्सर अपना हक जताते हुए डेरा लगाकर बैठ जाते हैं। इस स्थिति में चीनी गडरियों को खदेड़ने का काम लद्दाखी गडरिए ही करते हैं। वही सबसे पहले चीनी घुसपैठ की खबर स्थानीय प्रशासन तक पहुंचाते हैं और अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर चीनी सैनिकों का जल्द से जल्द इलाका छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं। इनमें से अधिकांश इलाकों में आबादी बिल्कुल भी नहीं है। सिर्फ घुमंतु चरवाहे ही इन इलाकों में भारतीय सेना के लिए आंख, नाक व कान का काम करते हैं।
लेह पर्वतीय स्वायत परिषद में चुशूल के पार्षद कोनचुक स्टेंजिन के मुताबिक, हमेशा स्थानीय चरवाहों ने ही सबसे पहले घुसपैठ का मुकाबला किया है। वहीं, इन चरागाहों और एलएसी के साथ सटे इलाकों में आगे डटे नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि चीनी सेना अकसर अपने गडरियों को आगे भेजती है और फिर पीछे आती है। ऐसे हालात में हमारे चरवाहे ही चीन के मंसूबों को नाकाम करते हैं।
यूं समझें पैंगोंग झील और आठ फिंगर का रहस्यः चीन से वास्तविक नियंत्रण रेखा न सिर्फ जमीन से गुजरती है बल्कि यह पैगांग झील से भी गुजरती है। चीन इसी क्षेत्र में ज्यादा विवाद बढ़ाता रहा है। 135 किलोमीटर लंबी इस झील का क्षेत्रफल 700 वर्ग किलामीटर है। इस झील का 45 किलाेमीटर लंबा पश्चिमी हिस्सा भारत के पास है और शेष पर चीन काबिज होकर बैठा है। झील के साथ सटे पहाड़ों की जो ढलानें झील में आकर मिलती हैं, उन्हें ही फिंगर कहा जाता है। यह आठ ढलाने हैं और इसलिए इन्हें आठ फिंगर कहा जाता है। भारत हमेशा एलएसी पर अपना हिस्सा फिंगर आठ तक बताता रहा है जबकि चीन के सैनिक इस समय फिंगर चार तक घुसपैठ कर चुके हैं। यहां बता दें कि 1947 में आजादी के समय पैगांग झील का ज्यादातर हिस्सा हमारे पास था। चीन हमेशा से इस इलाके में गहरी साजिशें रचता रहता है और उसकी कुदृष्टि पूरे पैंगोंग क्षेत्र पर रही है। 1959 में ड्रैगन ने पहली बार दावा किया कि पैंगाग व फिंगर 4 तक का इलाका उसका है। 1962 में भारत चीन के युद्ध से पहले ही उसने काफी हिस्से पर कब्जा जमा लिया। चीन ने 1962 की जंग से पहले ही पैगांग में खुरनक फोर्ट के इलाके पर कब्जा कर लिया था। इसी इलाके में सिरजिप-1 चौकी है, जहां 1962 में परमवीर चक्र विजेता मेजर धन सिंह थापा के साथियों ने चीनी सेना के साथ खूरेंज जंग लड़ी थी। यह फिंगर आठ का इलाका है और आज सिरजिप चौकी भी चीन के पास ही है।