Jammu Kashmir: बर्फ खो रहे ग्लेशियर बजा रहे खतरे की घंटी, 12 हजार से अधिक ग्लेशियर का किया गया अध्ययन
कश्मीर के ग्लेशियर प्रत्येक वर्ष औसतन 35 सेंटीमीटर तक पिघल रहे प्रदेश के 12 हजार से अधिक ग्लेशियर का किया गया अध्ययनपीर पंजाल रेंज में सबसे अधिक 170 सेंटीमीटर बर्फ हर साल गल रही
जम्मू, राज्य ब्यूरो। मानव जाति ने पर्यावरण के साथ अगर ऐसा ही सौतेला व्यवहार बनाए रखा तो वह समय दूर नहीं जब पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसना पड़ेगा। हिमालय की गोद में बसे जम्मू कश्मीर के लिए यह और भी चिंता का विषय है। प्रदेश के 12 हजार से अधिक ग्लेशियर के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि ये प्रत्येक वर्ष औसतन 35 सेंटीमीटर तक पिघल रहे हैं।
कश्मीर विश्वविद्यालय के जियो इंफार्मेटिक डिपार्टमेंट के तारिक अब्दुल्ला, डॉ. इरफान रशीद और प्रो. शकील रोमशो ने प्रदेश के ग्लेशियरों के पिघलने की स्थिति पर अध्ययन किया है। उनके अध्ययन की रिपोर्ट यूनाइटेड किंगडम (यूके) आधारित नेचर रिसर्च साइंटिफिक जर्नल में प्रकाशित हुई है।
इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 12 हजार से अधिक ग्लेशियर की प्रवृत्ति, बदलाव और स्थिति के बारे में अध्ययन किया गया है। इसमें हैरान करने वाला यह तथ्य सामने आया है कि हिमालय की पीर पंजाल रेंज में ग्लेशियर सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। इस क्षेत्र में ग्लेशियर हर साल 170 सेंटीमीटर पिघल रहे हैं। उनकी परत लगातार कम हो रही है। इसके बाद शम्सबरी ग्लेशियर की 128 सेंटीमीटर मोटी परत प्रत्येक वर्ष पिघल जाती है। ग्लेशियर की परत हिमालय की जंस्कार रेंज में भी कम हो रही है। इस क्षेत्र में हर साल 117 सेंटीमीटर परत पिघल रही है।
ग्रेटर हिमालयन रेंज 112 सेंटीमीटर हर वर्ष कम हो रही है। इसके बाद लद्दाख रेंज का स्थान आता है। यहां पर ग्लेशियर थोड़े कम पिघल रहे हैं। हर साल 46 सेंटीमीटर तक परत कम हो रही है।अध्ययन में इन बातों को रखा गया ध्यान मेंतारिक अब्दुल्ला का कहना है कि अध्ययन में सिर्फ जम्मू कश्मीर के ग्लेशियर पर ही ध्यान केंद्रित किया।
उन्होंने अध्ययन में ग्लेशियर पिघलने के पीछे वहां की भौगोलिक स्थिति, ऊंचाई और अन्य कई पहलुओं को जिम्मेदार बताया गया है। उन्होंने बताया कि अलग-अलग रेंज में स्थित ग्लेशियर के आंकड़े जुटाए गए। यह भी शोध किया गया कि ग्लेशियर किस तरह से पिघल रहे हैं। किस तरह से वर्ष 2000 से 2012 के बीच अधिक बर्फ पिघली है। इसके लिए हमने कई प्रकार का डाटा, शोध उपकरण और सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों का भी इस्तेमाल किया। इन उपकरणों में जियोग्राफिक इनफार्मेशन सिस्टम भी शामिल है।
संयुक्त राष्ट्र आधारित सैटेलाइट और जर्मन एरोस्पेस सैटेलाइट के डाटा का भी इस्तेमाल किया गया। काराकोरम रेंज में स्थिति कम चिंताजनकअध्ययन करने वालों का कहना है कि उन्होंने जम्मू कश्मीर के सभी 12,243 ग्लेशियर कवर किए हैं। वर्ष 1947 के राजनीतिक नक्शे में इतने ही ग्लेशियर आते हैं। अध्ययन में दावा है कि काराकोरम रेंज के ग्लेशियर सबसे कम पिघल रहे हैं। यहां बर्फ पिघलने की दर 11 सेंटीमीटर प्रति वर्ष है।12 वर्ष में ही 70 गीगा टन बर्फ पिघलीअध्ययन में दावा है कि वर्ष 2000 से 2012 तक 12 वर्ष में ही 70 गीगा टन बर्फ जम्मू कश्मीर के इन ग्लेशियर से पिघली है।
अध्ययन में पर्यावरण के लिए चिंता जताई गई है कि आने वाले समय में इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। इससे पहले हुए एक सर्वे में दावा किया गया था कि पिछले छह दशकों में कश्मीर में ग्लेशियरों ने 23 प्रतिशत जगह छोड़ दी है। इससे आने वाले दिनों में कश्मीर में पानी की कमी हो सकती है और इसका असर कृषि उत्पादन पर भी पड़ेगा।