राजनीतिक विमर्श में गिरावट देशहित में नहीं
पिछले कुछ वर्ष में राजनीतिक विमर्श में काफी गिरावट आई है। राजनीतिक पार्टियां आरोप-प्रत्यारोप में मर्यादाओं को भूल रहे हैं। प्रधानमंत्री पद को भी इसमें नहीं छोड़ा। ऐसा नहीं होना चाहिए। पार्टियों को इस पर मंथन करने की जरूरत है। चुनाव में विकास के मुद्दे होने चाहिए। भावनात्मक मुद्दों के आगे कई बार मूल मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। यह बात जागरण विमर्श में जम्मू विश्वविद्यालय में फिजिक्स विभाग के प्रोफेसर नरेश पाधा ने कही।
राज्य ब्यूरो, जम्मू : पिछले कुछ वर्ष में राजनीतिक विमर्श में काफी गिरावट आई है। राजनीतिक पार्टियां आरोप-प्रत्यारोप में मर्यादाओं को भूल रहे हैं। प्रधानमंत्री पद को भी इसमें नहीं छोड़ा। ऐसा नहीं होना चाहिए। पार्टियों को इस पर मंथन करने की जरूरत है। चुनाव में विकास के मुद्दे होने चाहिए। भावनात्मक मुद्दों के आगे कई बार मूल मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। यह बात जागरण विमर्श में जम्मू विश्वविद्यालय में फिजिक्स विभाग के प्रोफेसर नरेश पाधा ने कही।
उन्होंने कहा कि हर किसी का प्रयास राजनीति में आकर सत्ता हासिल करना है। कई बार जब उन्हें लगता है कि सत्ता में नहीं आने वाले तो हताशा में बदजुबान हो जाते हैं और ऐसा ही देखने को मिल रहा है। उत्तर प्रदेश में ऐसा सबसे अधिक हो रहा है। वहां एक नारी के सम्मान का भी ख्याल नहीं रखा गया। इसके लिए कोई एक एक राजनीतिक दल दोषी नहीं है, सभी प्रमुख दलों के नेता जिम्मेदार हैं। नेताओं को लग रहा है कि उन्हें मूल मुद्दों के आधार पर वोट नहीं मिल रहे हैं, ऐसे में भावनात्मक मुद्दों को उठाया जा रहा है।
एक ओर जहां प्रधानमंत्री के खिलाफ विपक्षी दल नारे लगा रहे हैं, तो भाजपा के भी कुछ नेताओं ने ऐसे बयान दिए, जिनकी जरूरत नहीं। यह देश व समाज के लिए अच्छा नहीं है। पाधा ने कहा कि भारत में बदलाव आ रहा है। लोग समझ रहे हैं। विशेषतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में शिक्षा को लेकर जागरूकता आई है।
आज विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा हासिल करने वालों में ग्रामीण क्षेत्रों के युवा अधिक हैं। आज के यह युवा राजनीतिक दलों से प्रश्न पूछते हैं। उनका विश्वास जीतना राजनीतिक दलों के लिए आसान नहीं है। पहले राजनीतिक दलों के नेता एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे, मगर अब ऐसा नहीं है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे राजनीतिक विमर्श को गिरने न दें। लोगों से संवाद करें और मूल मुद्दों को उठाए। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यरोप लगाने से बेहतर है कि विकास के मुद्दों पर चर्चा हो।
प्र. राजनीतिक विमर्श में गिरावट के लिए जिम्मेदार कौन है?
उ. इसके लिए हर राजनीतिक दल जिम्मेदार है। इसकी शुरूआत साल 2014 के चुनावों से ही हो गई थी। इस बार यह अपने उच्चतम स्तर पर है। मगर कोई भी इसको रोकने के लिए आगे नहीं आना चाहता।
प्र. क्या भारत जैसे देश में सिर्फ एक धर्म को लेकर राजनीति करना उचित है?
उ. जी बिलकुल भी नहीं। भारत में विभिन्न धर्मो के लोग रहते हैं और उन्हें यह अहसास नहीं होना चाहिए कि कोई राजनीतिक दल उनकी उपेक्षा कर रहा है। आज की स्थिति पर चितन की जरूरत है। प्र. क्या चुनाव आयोग अपनी भूमिका सही निभा रहा है?
उ. मुझे नहीं लगता कि चुनाव आयोग अपनी भूमिका को सही से निभा रहा है। किसी नेता को दो दिन तो किसी को तीन दिन तक चुनाव प्रचार से दूर रखने से कुछ नहीं होगा। उन पर सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है। अगर एक दो नेताओं को चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराया गया तो अच्छा संदेश जाएगा और कोई भी नेता चुनाव प्रचार में बदजुबानी नहीं कर पाएगा।