Jammu: डोगरी साहित्य में सूफीवाद पर हुआ परिसंवाद, महिला लेखिकाओं ने कम ही दिखाया रुझान
सुभाष चंद्र बड़ू ने अपने बीज भाषण में सूफीवाद पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डोगरी भाषा में लेखिकाओं का रुझान इस ओर कम ही रहा है। इसके बावजूद डोगरी भाषा में जितना भी साहित्य मिलता है वह कम नहीं है।
जम्मू, जागरण संवाददाता : साहित्य अकादमी नयी दिल्ली की ओर से वेब लाइन साहित्य श्रृंखला के तहत डोगरी साहित्य में सूफीवाद पर आधारित परिसंवाद का आयोजन किया गया। जिसमें साहित्य अकादमी के उपसचिव डा. एन सुरेश बाबू ने हर भाषा के उत्थान के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों की जानकारी देते हुए सूफीवाद पर विस्तृत जानकारी दी। डोगरी भाषा के कन्वीनर दर्शन दर्शी डीके वैद ने अपने संबोधन में भी सूफीवाद के बारे में विवरण सहित विस्तृत प्रकाश डाला।
सुभाष चंद्र बड़ू ने अपने बीज भाषण में सूफीवाद पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डोगरी भाषा में लेखिकाओं का रुझान इस ओर कम ही रहा है। इसके बावजूद डोगरी भाषा में जितना भी साहित्य मिलता है, वह कम नहीं है। कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. ज्ञान सिंह ने सूफीवाद की जानकारी देते हुए डोगरी साहित्य में उपलब्ध साहित्य पर कहा कि डोगरी में यह वाद तीन प्रकार का मिलता है। इस में सीधे तौर पर ईश्वर से संबंध जोड़ने, देवी देवताओं को मोक्ष प्राप्ति का साधन मानने तथा छायावाद के प्रभाव में लिखे गए साहित्य की जानकारी मिलती है।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में तीन पेपर पढ़े गए। जिन में कवि एवं प्रसिद्ध लोक गायक खजूर सिंह ने डोगरी लोक साहित्य में सूफीवाद, डा. नरसिंह दास ने बीसवीं शताब्दी के डोगरी साहित्य में सूफीवाद तथा डा. सुषमा रानी ने इक्कीसवीं शताब्दी के डोगरी साहित्य में उपलब्ध सूफीवाद पर रोचकतापूर्ण जानकारी दी। कार्यक्रम के इस सत्र की प्रधानता सुभाषचंद्र बाली उर्फ राज मनावरी ने की। कार्यक्रम के अंत में डोगरी भाषा के कन्वीनर दर्शन दर्शी ने सभी प्रतिभागियों का अपनी ओर से तथा डा. सुरेश बाबू ने साहित्य अकादमी की ओर से धन्यवाद किया।