जम्मू-कश्मीर में नए युग की शुरुआत, डोमिसाइल नीति पाक से आए विस्थापितों के जीवन में लाएगी नया सवेरा
Jammu Kashmir Domicile Policy भारत-पाक विभाजन के समय जम्मू-कश्मीर में शरण लेने वाले पश्चिमी पाकिस्तान के नागरिकों को अब अपनी नागरिकता के खाने में पाकिस्तानी नहीं लिखना पड़ेगा।
जम्मू-कश्मीर, अभिमन्यु शर्मा। Jammu Kashmir Domicile Policy: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में नागरिकता से जुड़े एक बड़े संशय को दूर करते हुए डोमिसाइल व्यवस्था और उसके नियमों को अधिसूचित कर दिया है। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को मुख्यधारा से अलग करने वाली स्थायी नागरिकता प्रमाण पत्र की व्यवस्था अब पूरी तरह इतिहास का हिस्सा बन गई है।
देश का कोई भी नागरिक अब जम्मू-कश्मीर में बाहरी नहीं रहेगा। वह स्थानीय है। वह भारतीय है। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में बीते 70 वर्षों से एक वर्ग विशेष के तुष्टीकरण वाली सियासत और नौकरशाही का भी सूर्यास्त हो गया है। भारत-पाक विभाजन के समय जम्मू-कश्मीर में शरण लेने वाले पश्चिमी पाकिस्तान के नागरिकों को अब अपनी नागरिकता के खाने में पाकिस्तानी नहीं लिखना पड़ेगा।
डोमिसाइल के नियम और शर्ते : देश के अन्य भागों में जहां पाकिस्तान से आए शरणार्थी भारतीय हैं, वहीं जम्मू-कश्मीर में स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र न होने के कारण भारतीय होने के बावजूद इन्हें पाकिस्तानी कहा जाता रहा है। वाल्मिकी समाज की भी यही स्थिति थी जिसके सदस्य पढ़-लिख जाने के बावजूद प्रदेश में सरकारी नौकरी नहीं कर सकते थे। जम्मू-कश्मीर में नौकरी करने वाले केंद्र सरकार के कर्मचारी, देश के विभिन्न हिस्सों से आए कामगार अब 15 साल की शर्त पूरी करते हुए डोमिसाइल प्राप्त कर सकेंगे और राज्य के विकास की योजनाओं में हर जगह बराबरी का अधिकार पाएंगे।
अब पराई नहीं रह जाएंगी बेटियां : जम्मू-कश्मीर की बेटियां जो शादी के बाद पराई हो जाती रही हैं, अब पराई नहीं रह जाएंगी। उनके बच्चे भी जम्मू-कश्मीर के नागरिक रहेंगे। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने से पूर्व जम्मू-कश्मीर में कोई भी बाहरी व्यक्ति चाहे वह जम्मू-कश्मीर में ही पैदा क्यों न हुआ हो, स्थायी नागरिक नहीं बन सकता था। स्थायी नागरिकता एवं उससे जुड़े विशेषाधिकारों का लाभ सिर्फ वही लोग ले सकते थे, जिनके बाप-दादा भारत-पाक विभाजन के पहले से ही जम्मू-कश्मीर में रहते आए हों। इस व्यवस्था ने जम्मू-कश्मीर में हर स्तर पर भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित किया, अलगाववाद और आतंकवाद को इसने पोषण दिया। एक धर्म और वर्ग विशेष के तुष्टीकरण की नीतियां हमेशा हावी रही हैं।
खैर डोमिसाइल की व्यवस्था और उसके अधिसूचित नियमों ने पक्षपातपूर्ण पुरानी व्यवस्था के बचे अवशेषों को भी मिटाते हुए सभी के लिए सामाजिक- प्रशासनिक न्याय को बराबरी के सिद्धांत पर सुनिश्चित बनाने का प्रयास किया है। जम्मू-कश्मीर के स्थानीय नागरिक जो नई व्यवस्था में अपना सब कुछ छिन जाने से आशंकित थे अब राहत महसूस कर रहे हैं, क्योंकि उनसे अब कुछ नहीं छिनेगा। इस पूरे घटनाक्रम में जो सबसे अच्छी बात है वह यह कि डोमिसाइल के नियमों को पूरा करने के बाद जम्मूकश्मीर का नागरिक बनने वाले अब इसे अपना घर समझेंगे और अपने पूरे जोश के साथ इसकी तरक्की एवं खुशहाली के लिए काम करेंगे। वे यहां पैसा कमाकर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी या बिहार में निवेश करने के बजाय यहीं पर लगाने में विश्वास करेंगे।
आम जन की भावनाओं के शोषण की सियासत : जम्मू-कश्मीर में अब मतदाताओं की संख्या भी बढ़ेगी और इससे उन लोगों के होश ठिकाने आएंगे जो आम जन की भावनाओं के शोषण की सियासत करते आए हैं। उन्हें अगर अपनी सियासत चलानी होगी तो हर वर्ग का ध्यान रखना होगा। जम्मू-कश्मीर में अब जो भी सियासत होगी, उसमें अब अलगाववादी भावनाओं का पोषण करने वाले नारों के बजाय देश के अन्य भागों में हो रही तरक्की की बात होगी। नए मुद्दे और नए नारों की सियासत होगी, लेकिन इसमें सावधानी और पारदर्शिता बरतनी बहुत जरूरी है। सिर्फ 15 साल की शर्तों को पूरा करने और अन्य नियमों को पूरा करने वालों को ही डोमिसाइल बिना किसी रुकावट के मिले यह सुनिश्चित करना होगा। अगर इस नियम में कहीं भी हेर-फेर हुई तो फिर उन लोगों को मौका मिलेगा जो इस व्यवस्था और बदलाव के खिलाफ हैं।
चुनौती बढ़ा रहा कोरोना : जम्मू-कश्मीर में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले चुनौती बन रहे हैं। विशेषतौर पर कश्मीर संभाग में जहां पर पिछले एक सप्ताह में ही तीन सौ के करीब नए मामले दर्ज हो चुके हैं। जम्मू-कश्मीर में कोरोना का पहला मामला आठ मार्च को दर्ज हुआ था। पहले सौ मामले दर्ज होने में तो एक महीने का समय लगा, लेकिन अब एकएक दिन में ही सौ मामले आ रहे हैं। सभी बीस जिले इस संक्रमण से प्रभावित हैं। खासकर जब से सरकार ने बाहरी प्रदेशों में फंसे श्रमिकों, विद्यार्थियों को वापस लाना शुरू किया है, तब से मामले तेजी से बढ़े हैं। सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती इन सभी की जांच करवाने और उन्हें क्वारंटाइन केंद्रों में रखने की है। हजारों की संख्या में लोग आ रहे हैं। यह सही है कि सरकार ने पर्याप्त क्वारंटाइन केंद्र बनाए हुए हैं, मगर वहां पर सुविधाओं की कमी आड़े आ रही है। अब देखना यह है कि सरकार इस संकट से किस प्रकार निपटती है।
[संपादक, जम्मू-कश्मीर]