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किश्तवाड़ में सक्रिय आतंकी संगठनों में शुरू हुई वर्चस्व की लड़ाई, हिज्ब की कमान संभालने की फिराक में ओसामा

अब जहांगीर सरूरी रियाज अहमद और दो अन्य के साथ फरार है। पहले तालिब गुज्जर भी उसके साथ था लेकिन वह जहांगीर का साथ छोड़कर आत्मसमर्पण करने के चक्कर में घूम रहा है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 24 Sep 2019 12:37 PM (IST)Updated: Tue, 24 Sep 2019 03:02 PM (IST)
किश्तवाड़ में सक्रिय आतंकी संगठनों में शुरू हुई वर्चस्व की लड़ाई, हिज्ब की कमान संभालने की फिराक में ओसामा
किश्तवाड़ में सक्रिय आतंकी संगठनों में शुरू हुई वर्चस्व की लड़ाई, हिज्ब की कमान संभालने की फिराक में ओसामा

किश्तवाड़, संवाद सहयोगी। किश्तवाड़ में आतंकी संगठनों में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई है। तीन आतंकियों के पकड़े जाने के बाद हिजबुल मुजाहिदीन की कमान संभाल रहे जहांगीर सरुरी की तो कमर तो पहले ही टूट चुकी है। सूत्रों के अनुसार ओसामा विन जावेद ग्रुप में हारुन वानी, नावेद शाह और जाहिद हुसैन शामिल हैं। ये सब जहांगीर को रास्ते से हटाना चाहते हैं। जबकि ओसामा चाहता है कि इलाके में हिज्बुल मुजाहिदीन की कमान उसके हाथ में हो।

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अब जहांगीर सरूरी, रियाज अहमद और दो अन्य के साथ फरार है। पहले तालिब गुज्जर भी उसके साथ था, लेकिन वह जहांगीर का साथ छोड़कर आत्मसमर्पण करने के चक्कर में घूम रहा है। अगर इन दोनों गुटों में टकराव होता है तो यह सेना व पुलिस के लिए बड़ी कामयाबी होगी।

आखिर किश्तवाड़ पर आतंकियों के मददगारों पर कसा शिकंजा

जम्मू संभाग के किश्तवाड़ में कड़ी सुरक्षा के बावजूद लगातार हो रही आतंकी वारदातों से पुलिस, सेना और सुरक्षा एजेंसियां सकते में थीं। गिने चुने आतंकियों का वारदात के बाद अचानक गुम हो जाना सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बन गया था। दूसरी तरफ सेना-पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां लगातार आतंकियों की तलाश में दिन-रात एक किए हुए थीं। हालांकि, सुरक्षा अधिकारियों को पहले से शक था कि आतंकियों को भगाने में शहर में उनके मददगार सक्रिय हैं जो उन्हें वारदात के बाद जल्दी सुरक्षित ठिकाने में पहुंचा देते हैं। 14 सितंबर को पीडीपी के जिला प्रधान शेख नासिर के अंगरक्षक की राइफल लेकर आतंकियों के फरार होने के बाद अचानक किश्तवाड़ शहर में ही कहीं गुम हो जाने के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी के अलावा अन्य सक्रिय एजेंसियों ने इस पर कड़ा संज्ञान लिया।

दैनिक जागरण ने वारदातों के बाद अचानक शहर में आतंकियों के लापता होने के मामले को मुद्दे की तरह उठाया। लगातार एक सप्ताह तक जागरण ने पूरे ऑपरेशन पर नजर रखते हुए कई समाचार प्रकाशित किए। एजेंसियों से लेकर पुलिस व सेना के बड़े अधिकारियों ने इस मामले को चुनौती की तरह मानकर पूरे शहर में ताबड़तोड़ सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिए जिसे मिशन किश्तवाड़ नाम दिया गया। इसी अवधि में 11 साल से लटके सीसीटीवी कैमरे योजना काम में तेजी लाई गई। देखते ही देखते शहर में जगह-जगह लगाए गए 38 में से आधे से अधिक कैमरे काम भी करने लगे। इसके अलावा सेना ने शहर में अलग-अलग जगहों पर ड्रोन भी उड़ाए। उनकी ऊंचाई इतनी अधिक रखी गई कि कोई आसानी से इसे देख नहीं सकता था।

सुरागों की कड़ी दर कड़ी मिलती गई। पुलिस और सेना के संयुक्त अभियान में किश्तवाड़ शहर में चार किमी. के दायरे में चप्पा-चप्पा खंगाल करीब 50 से अधिक आतंकियों के मददगारों (ओवरग्राउंड वर्कर) को पकड़ा। इनमें कुछ व्यापारी, ठेकेदार और सरकारी मुलाजिम भी शामिल थे। इनसे मिले सुरागों के आधार पर ही परिहार बंधुओं (भाजपा के पूर्व प्रदेश सचिव अनिल परिहार-उनके भाई अजीत परिहार) और आरएसएस कार्यकत्र्ता चंद्रकांत शर्मा के हत्यारे पकड़े गए।


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