जेल से निकलते ही अब्दुल क्यूम वानी ने पीडीपी से नाता तोड़ा, छह माह से थे एहतियातन हिरासत में
पीडीपी छोड़ने वाले अब्दुल क्यूम वानी ने कहा कि सियासत में मेरा कार्यकाल एक साल रहा है और इसमें से भी छह माह मैने जेल में ही बिताए हैं।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। छह माह की एहतियातन हिरासत में मुक्त होने के एक माह बाद ही पूर्व कर्मचारी यूनियन नेता अब्दुल क्यूम वानी ने वीरवार को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से इस्तीफे का एलान कर दिया है। उन्होंने कहा है वह फिलहाल सभी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहेंगे और एक सामाजिक कार्यकर्त्ता के रुप में जम्मू कश्मीर के संवैधानिक, राजनीतिक व आर्थिक हितों के संरक्षण के लिए हमेशा प्रयासरत रहेंगे।
अब्दुल क्यूम वानी ने वर्ष 2019 में संसदीय चुनावों से कुछ समय पहले ही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का दामन था। वह उत्तरी कश्मीर की संसदीय सीट बारामुला-कुपवाड़ा पर पीडीपी के उम्मीदवार भी रहे। चुनाव लड़ने के लिए ही उन्होंने राज्य स्कूल शिक्षा विभाग से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी। पीडीपी का हिस्सा बनने से पहले वह इंप्लायज जायंट एक्शन कमेटी जम्मू कश्मीर के अध्यक्ष भी थे।
पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को लागू किए जाने के मददेनजर जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा एहतियातन हिरासत मेंं लिए गए नेताओं में अब्दुल क्यूम वानी भी शामिल थे। उन्हें सेंट्रल जेल श्रीनगर में रखा गया था। करीब एक माह पहले ही उन्हें रिहा किया गया है। अब्दुल क्यूम वानी ने आज ही पीडीपी से इस्तीफे का एलान किया है।
वानी ने अपने इस्तीफे की पुष्टि करते हुए कहा कि मैने कभी पैसे या ताकत के लिए सियासत को नहीं चुनाथा। मैंने सिर्फ जम्मू कश्मीर के राजनीतिक,सामाजिक,संवैधानिक हितों और कश्मीर मसले के शांतिपूर्ण समाधान के लिए ही चुनाव लड़ा था। उन्होंने कहा कि यहां कश्मीर में राजनीतिक नेताओं के दाेगलेपन का खमियाजा मुझे चुनाव में भुगतना पड़ा। उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद थी कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में अमन बहाली और कश्मीर मसले के समाधान के लिए स्थानीय लोगों केसाथ संवाद शुरु करेगी,लेकिन उसने एेसा कुछ करने के बजाय जम्मू कश्मीर को ही दो केंद्र शासित राज्यों में पुनर्गठित कर दिया। जम्मू कश्मीर में लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हुआ है।
पीडीपी छोड़ने वाले अब्दुल क्यूम वानी ने कहा कि सियासत में मेरा कार्यकाल एक साल रहा है और इसमें से भी छह माह मैने जेल में ही बिताए हैं। मैंने सियासत को छोड़ने और एक सामाजिक कार्यकर्त्ता व सीविल सोसाईटी का एक नागरिक होने के नाते जम्मू कश्मीर के संवैधानिक, राजनीतिक व आर्थिक हितों के संरक्षण के लिए हमेशा प्रयासरत रहने का फैसला कियाहै। उन्होंने कहा कि मेरी केंद्र सरकार से अपील हैकि वह जेलों में बंद सभी कश्मीरी नेताओं को चाहे वह मुख्यधारा की सियासत से जुड़े हों या फिर हुर्रियत से, सभी को बिना शर्त रिहा करते हुए उनके साथ कश्मीर में स्थायी शांति बहाली के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरु करनी चाहिए।