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Coronavirus Effects in J&K: ऑनलाइन शिक्षा-परीक्षाओं व मॉस प्रमोशन से बिगड़ा सिस्टम, बच्चे हुए सुस्त

ऑनलाइन शिक्षा ने विद्यार्थियों को सुस्त कर दिया है। हायर सेकेंडरी स्तर और कॉलेजों के विद्यार्थी तो मास प्रमोशन या ऑनलाइन परीक्षाओं की वकालत हीं नहीं कर रहे है बल्कि कुछ तो इस मुद्दे को जोर शोर से कॉलेजों के प्रबंधन के पास उठा रहे है।

By Vikas AbrolEdited By: Published: Sun, 16 May 2021 06:42 PM (IST)Updated: Sun, 16 May 2021 06:42 PM (IST)
Coronavirus Effects in J&K: ऑनलाइन शिक्षा-परीक्षाओं व मॉस प्रमोशन से बिगड़ा सिस्टम, बच्चे हुए सुस्त
ऑनलाइन शिक्षा के अलावा इस समय कोई विकल्प नहीं है

जम्मू, राज्य ब्यूरो । ऑनलाइन शिक्षा ने विद्यार्थियों को सुस्त कर दिया है। अब हालत यह हो गई है कि हायर सेकेंडरी स्तर और कॉलेजों के विद्यार्थी तो मास प्रमोशन या ऑनलाइन परीक्षाओं की वकालत हीं नहीं कर रहे है बल्कि कुछ तो इस मुद्दे को जोर शोर से कॉलेजों के प्रबंधन के पास उठा रहे है।

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कोरोना के कारण जम्मू कश्मीर में शिक्षण संस्थानों को 31 मई तक बंद रखा गया है। जम्मू कश्मीर में शिक्षण संस्थान एक साल से अधिक समय से बंद हैं। इंजीनियरिंग के बाद अब तो मेडिकल के छात्र भी मांग कर रहे हैं ऑनलाइन परीक्षाएं करवाई जाएं। यह सही है कि ऑनलाइन शिक्षा के अलावा इस समय कोई विकल्प नहीं है क्योंकि जिंदगी को सुरक्षित होगी तो पढ़ाई होगी मगर यह बात भी सही है कि विद्यार्थियों की ऑनलाइन शिक्षा से आदतें बदल गई है। दिनचर्या बदल चुकी है। टाइम मैनेजमेंट भी नहीं रही। एक साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद हालत यह है कि स्कूल या काले खुलने पर विद्यार्थियों को अपने आप को ऑफलाइन शिक्षा के लिए तैयार करना भी चुनौती ही होगा।

पिछले साल जब कॉलेज बंद रहे तो इस साल फरवरी में हालात सामान्य हो गए थे। तब डिग्री कालेजों ने आफलाइन परीक्षाएं करवाने का फैसला किया लेकिन इसके विरोध प्रदर्शन शुरु हो गए। आन लाइन परीक्षाओं की मांग ही नहीं उठी बल्कि मॉस प्रमोशन के लिए भी आंदोलन शुरु हो गए। इस बीच फिर से कोरोना के मामले बढ़ गए और सभी शिक्षण संस्थानों को फिर से बंद कर दिया गया। मौजूदा हालात को देखते हुए इस बार के अकादमिक सत्र का भी बर्बाद होना तय हो गया है।

जम्मू विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग के प्रो. चंद्र शेखर का कहना है कि ऑनलाइन शिक्षा से बच्चों की आदतें बदल गई है। मोबाइल से कक्षाएं लेने पर उनकी दिनचर्या ही बदल गई है। मोटापा आ रहा है। लिखना कम हो गया है। बच्चों में सुबह सवेरे उठकर तैयार होना एक अनुशासन था। कक्षाओं में बैठ कर पढ़ना और फिर घर आना। अब बिस्तर में ही मोबाइल पकड़ कर ऑनलाइन पढ़ाई करने के सिस्टम बदल गया है। खेलकूद व सांस्कृतिक गतिविधि नहीं रही। ये सब कुछ होने के बावजूद कोई चारा नहीं है। उन्होंने कहा कि देश में कोरोना से एक दूसरे राज्यों में काम करने वाले लोग अपने घरों को लौटे है। एक अनुमान के अनुसार करीब साठ लाख बच्चों के स्कूल छूट चुके है।


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