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Jammu Kashmir: दुखों ने दूसरों के लिए जीना सिखाया, रजनी शर्मा को अब अपना सुख-दुख दूसरों की मदद में ही नजर आता है

बिलावर की भोली देवी का कहना है कि रजनी जैसे समाज सेवक रहेंगे तो गरीबों का उत्थान संभव होगा। उनके कारण ही वह आज अच्छी गृहस्थी चला रही हैं। आत्म सम्मान से जीना सीखा गरीबी और लाचारी में मैं बहुत परेशान थी। तब पायल दीदी मिली। उन्होंने सहारा दिया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 01:14 PM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 01:14 PM (IST)
Jammu Kashmir: दुखों ने दूसरों के लिए जीना सिखाया, रजनी शर्मा को अब अपना सुख-दुख दूसरों की मदद में ही नजर आता है
दर्जनों महिलाओं को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाने के साथ कई गरीब बेटियों का संसार भी बसा चुकी हैं रजनी शर्मा

जम्मू, जागरण संवाददाता : खुद दुख देखे हों तो दूसरों के दर्द का एहसास भी रहता है। यही एहसास इंसान में हमदर्दी और कुछ करने का जज्बा पैदा करता है। इसी जज्बे ने उसे दूसरों की मददगार बना दिया है। अब अपना सुख-दुख दूसरों की मदद में ही नजर आता है।

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बात कर रहे हैं महिलाओं, दिव्यांगों, बच्चों की मदद के लिए हमेशा अग्रसर रहने वाली रजनी शर्मा की। बचपन से ही दूसरों का दर्द देखकर खाना-पीना छोड़ देने वाली रजनी शर्मा का दिल तब तक चैन नहीं पाता जब तक कि वह दूसरों की मदद न कर ले। इसी कारण आज वह जम्मू की महिलाओं के लिए मिसाल बन चुकी है।

दर्जनों महिलाओं को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाने के साथ कई गरीब बेटियों का संसार भी बसा चुकी हैं। छन्नी हिम्मत पुलिस लाइन की रहने वाली रजनी शर्मा, जिन्हें सभी प्यार से पायल बुलाते हैं, जीवन संदेश ट्रस्ट की जम्मू-कश्मीर की चेयरमैन हैं। इस ट्रस्ट का नाम अब संघर्ष कर दिया है। हाल ही में उन्हें भारतीय दिव्य जनशक्ति संगठन का राष्ट्रीय महिला मोर्चा अध्यक्ष भी बनाया गया। इतना ही नहीं रजनी ने बैक टू विलेज कार्यक्रमों में भी महिला पंचों, सरपंचों को भी जागरुक बनाने में अहम भूमिका निभाई। आरएसपुरा, रामगढ़ समेत विभिन्न क्षेत्रों में वह बैक टू विलेज कार्यक्रम का हिस्सा रहीं। वह कैंसर मरीजों के लिए काम कर रही हैं। सरकार व संस्थाओं से मिलकर विभिन्न शिविर लगाती हैं।

रजनी सिलाई-कढ़ाई सिखाते हुए चार दर्जन के करीब महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुकी हैं। इतना ही नहीं ऐसे गरीब परिवारों की बेटियों का भी वह सहारा बनी हैं जिनका पैसों के अभाव में विवाह नहीं हो पाता था। अब तो ट्रस्ट के जुड़ने के बाद वह दिव्यांगों के लिए भी काम रही हैं। वह तीन दर्जन दिव्यांगों को व्हील चेयर, हेयरिंग ऐड, चश्मे, बैसाखियां उपलब्ध करवा चुकी हैं।

उनका ट्रस्ट जम्मू-कश्मीर के अलावा देश के विभिन्न राज्यों में जन कल्याण के कार्यो को कर रहा है। जम्मू-कश्मीर के विभिन्न दिव्यांगों की सूचियां तैयार कर अगले वित्तीय वर्ष में मदद करने की रूपरेखा बनाई गई है। रजनी का कहना है कि कई गरीब व जरूरतमंद बेटियों की शादियां करवा कर उनके घर-परिवार बसाए हैं। इन बेटियों का नाम प्रकाशित करने से मना करते हुए वह कहती हैं कि समाज में बेटियों को बोझ समझने की कुरीति दूर करने के लिए वह बचपन से प्रयासरत हैं। उनका कहना है कि वह कुछ और संस्थाओं से भी जुड़ चुकी हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद कर सकें। इन दिनों कैंसर मरीजों के लिए काम कर रही हैं। दिव्यांगों के लिए जम्मू-कश्मीर ही नहीं इलाहाबाद आदि में भी शिविर लगा चुकी हैं।

बेटियां दो घरों का चिराग बेटियां एक नहीं दो घरों का चिराग होती हैं। उनका पालन-पोषण कभी भी बेटों से कम नहीं होना चाहिए। हर फील्ड में बच्चियों अपना वर्चस्व साबित कर चुकी हैं। बच्चियां कमजोर नहीं। उन्हें अच्छे पढ़ाई और संस्कार देने की जरूरत है। बेटे और बेटी में अब कोई फर्क नहीं रह गया। बल्कि बेटे से ज्यादा बेटियां होनहार साबित हो रही हैं। करीब तीन सौ महिलाएं उनके साथ जुड़ी हुई हैं। हर कोई समाज सेवा के लिए प्रयासरत रहती हैं। जरूरत पड़ने पर आपस में पैसे भी जुटा लेती हैं ताकि किसी की मदद की जा सके।

बिलावर की भोली देवी का कहना है कि रजनी जैसे समाज सेवक रहेंगे तो गरीबों का उत्थान संभव होगा। उनके कारण ही वह आज अच्छी गृहस्थी चला रही हैं। आत्म सम्मान से जीना सीखा गरीबी और लाचारी में मैं बहुत परेशान थी। तब पायल दीदी मिली। उन्होंने सहारा दिया। मुझे सिलाई-कढ़ाई सीखने की ललक थी। मौका मिला तो सफलता की राह पर बढ़ना शुरू हो गई। आम मैं अपनी बूटीक चला रही हूं। अच्छी आमदन भी हो जाती है। घर-परिवार को भी चला रही हूं। बाकी भाई-बहन भी इस कारण आगे बढ़े हैं। वहीं, कठुआ की रहने वाली सुरेष्टा बताती हैं कि रजनी के कारण वह एक अच्छे घर में ब्याही गई। सब कुछ ठीक हो गया। जीवन ठीक चल रहा है।


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