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आतंकियों के लिए काल है बर्फबारी, बंद हो जाते हैं घुसपैठ के रास्ते

Terrorist. वादी में सर्दियों में आतंकरोधी अभियान जहां तेज होते हैं, वहीं राष्ट्रविरोधी हिंसक प्रदर्शनों में भी कमी आ जाती है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 22 Jan 2019 06:58 PM (IST)Updated: Tue, 22 Jan 2019 06:58 PM (IST)
आतंकियों के लिए काल है बर्फबारी, बंद हो जाते हैं घुसपैठ के रास्ते
आतंकियों के लिए काल है बर्फबारी, बंद हो जाते हैं घुसपैठ के रास्ते

नवीन नवाज, जम्मू। बर्फबारी न सिर्फ कश्मीर में पर्यटन, कृषि और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है बल्कि यह विधि व्यवस्था को बनाए रखने में भी किसी हद तक एक अहम भूमिका निभाती है। बर्फबारी राज्य में सक्रिय आतंकियों के लिए काल है। यही कारण है कि वादी में सर्दियों में आतंकरोधी अभियान जहां तेज होते हैं, वहीं राष्ट्रविरोधी हिंसक प्रदर्शनों में भी कमी आ जाती है। जनवरी 2019 में अभी तक जो हालात रहे हैं, वह इसी तथ्य को सही ठहरा रहे हैं।

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मौजूदा वर्ष में जनवरी में अब तक छह जगहों पर सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ हुई और करीब 12 आतंकी भी मारे जा चुके हैं। बीते साल जनवरी माह में 11 आतंकी मारे गए थे और वर्ष 2017 में भी जनवरी में 11 आतंकी मारे गए थे।

कश्मीर में बीते 30 वर्षों से जारी आतंकी हिंसा के ट्रेंड को अगर देखा जाए तो यही एक तथ्य उभरकर आता है कि सर्दियों में पर्याप्त हिमपात रियासत के आतंरिक और बाहरी सुरक्षा परिदृश्य के संदर्भ में बहुत अहम है। गर्मियों में न सिर्फ रियासत के भीतरी हिस्सों में आतंकी गतिविधियां तेज होती हैं, आतंकियों को आबादी से बाहर जंगलों और पहाड़ों में सुरक्षित ठिकाने आसानी से सुलभ हो जाते हैं। उनके लिए राशन जमा करना कोई बड़ी समस्या नहीं होती। वह सुरक्षाबलों से बचने के लिए बागों, खेतों, जंगलों और पहाड़ों में ही रहते हैं और सर्दियों में बर्फबारी से उनके लिए यह ठिकाने बंद हो जाते हैं। अगर कहीं वह इन ठिकानों में बैठे रहें तो उनके लिए प्राकृतिक मार से बचना बहुत मुश्किल रहता है। वर्ष 2005 तक सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच कथित तौर पर कहा जाता था बर्फ हमारी, मक्की तुम्हारी।

गर्मियों में आतंकियों व उनके समर्थकों के लिए अपने एजेंडे के तहत लोगों को सड़कों पर जमा करना, राष्ट्रविरोधी हिंसक प्रदर्शनों का आयोजन करना आसान रहता है। इसके अलावा सरहद पार से घुसपैठ करने वाले आतंकियों के लिए भी गर्मियां सुरक्षित रहती हैं। गर्मियों में घुसपैठ के रास्ते खुले रहते हैं और एलओसी व अंतरराष्ट्रीय सीमा पर घने जंगल, झाडिय़ां जो गर्मियों में खूब घनी होती हैं, आतंकियों को घुसपैठ के लिए किसी हद तक एक सुरक्षित कवच का भी काम करती हैं।

हिमपात से बंद हो जाते हैं घुसपैठ के रास्ते 

आतंकरोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रहे राज्य पुलिस में एसएसपी रैंक के एक अधिकारी ने कहा कि सर्दियों में आतंकी जंगलों के बजाय बस्तियों में या फिर आबादी के साथ सटे किसी बाग या नाले में अपना ठिकाना बनाते हैं। इसके अलावा सर्दियों के दौरान गांवों में भीड़ कम होती है, अगर कोई भी संदिग्ध या बाहरी तत्व किसी मोहल्ले या गांव में आता है तो जल्द ही उसके बारे में पता चल जाता है। इसी तरह सर्दियों के दौरान एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित घुसपैठ के परंपरागत रास्ते हिमपात के कारण बंद हो जाते हैं और घुसपैठ का स्तर घट जाता है। इसका असर भी कश्मीर में जारी आतंकी हिंसा पर पड़ता है। घुसपैठ कम होने का मतलब है कि वादी में आतंकियों की संख्या में कमी आना, आतंकी कम होंगे तो आतंकी ङ्क्षहसा भी कम होगी और कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने में मदद मिलेगी।

सर्दियों में नागरिक बस्तियों के पास अभियान की विशेष रणनीति 

सुरक्षाबलों ने इस बार सर्दियों में नागरिक बस्तियों या उनके साथ सटे इलाकों में अपने अभियान तेज किए हैं और उनका नतीजा सामने आ रहा है। इस साल अब तक मारे गए एक दर्जन आतंकियों में से नौ आबादी के पास किसी बाग में या फिर किसी किसी गांव के बाहरी छोर पर बने अपने ठिकाने में ही मारे गए हैं। इसके अलावा बर्फबारी में आतंकी समर्थक ङ्क्षहसक तत्व भी सड़कों पर गर्मियों की अपेक्षा कम ही जमा होते हैं और आतंकियों को बच निकलने का मौका भी आसानी से नहीं मिला।


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