सूर्य को अर्घ्य देते समय रहेगा ये शुभ संयोग
13 नवंबर 2018, मंगलवार को षष्ठी तिथि सूर्योदय के पहले से शुरू होगी और रात अंत तक रहेगी। वहीं सप्तमी तिथि बुधवार को सूर्योदय के पहले से शुरू होकर रात अंत तक रहेगी।
जागरण संवाददाता, जम्मू। चार दिवसीय छठ महापर्व के दूसरे दिन खरना पर व्रतियों ने परिजनों सहित कुल देवता का पूजन किया। सुबह स्नान के बाद व्रतियों ने छठ मइया की पूजा-अर्चना की। छठ पूजा पर्व रविवार से शुरू हुआ है जो कि सूर्य का दिन माना जाता है। वहीं 13 नवंबर को शाम को अर्घ्य देते समय मानस और रवियोग रहेंगे। इसके अलावा छठ पर्व के आखिरी दिन बुधवार 14 नवंबर को सुबह छत्र योग रहेगा। इस योग को धन और समृद्धिदायक माना गया है। शुभ संयोग में सूर्य की पूजा करने और अर्घ्य देने से शुभ फल और बढ़ जाएगा। जिससे महिलाओं को सौभाग्य और समृद्धि मिलेगी।
13 नवंबर 2018, मंगलवार को षष्ठी तिथि सूर्योदय के पहले से शुरू होगी और रात अंत तक रहेगी। वहीं सप्तमी तिथि बुधवार को सूर्योदय के पहले से शुरू होकर रात अंत तक रहेगी।
13 नवंबर 2018 (संध्या अर्घ्य)
सूर्यास्त का समय – 17 बजकर 28 मिनट
14 नवंबर 2018 (उषा अर्घ्य)
सूर्योदय का समय – 06 बजकर 42 मिनट
छठ पूजा का पौराणिक महत्व
मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। ऐसी ही एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की।
कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था।आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है। पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि छठ पर्व को सूर्य षष्ठी व डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व वर्ष में दो बार आता है पहला चैत्र शुक्ल षष्ठी को और दूसरा कार्तिक शुक्ल षष्ठी सूर्य की आराधना से ताल्लुक रखने के कारण इसे सूर्य षष्ठी कहते हैं।
छठ पर्व की कथा
देवी भागवत पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत विवाह के कई वर्षों बाद भी संतान सुख के लिए तरसते रहे। संतान सुख पाने के लिए इन्होंने सूर्य की उपासना की। सूर्य की कृपा से प्रियव्रत के घर बालक का जन्म हुआ, लेकिन जन्म लेते ही बालक की मृत्यु हो गयी। प्रियव्रत बहुत दुःखी हुए। बालक के शव को लेकर श्मशान पहुंचे। श्मशान में बच्चे के मृत शरीर को देखकर प्रियव्रत के अंदर जीने की इच्छा खत्म हो गई। इसी समय प्रियव्रत के सामने एक देवी प्रकट हुई।
प्रियव्रत ने देवी की पूजा की और मृत बालक को जीवनदान देने की प्रार्थना करने लगे। प्रियव्रत की भक्ति से प्रसन्न होकर देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा कि मैं ब्रह्माजी की मानस पुत्री देवसेना हूं। कुमार कार्तिकेय मेरे पति हैं। मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। देवी ने प्रियव्रत के मृत बालक को पुनर्जीवित कर दिया। जिस दिन प्रियव्रत के मृत बालक को षष्ठी देवी ने जीवित किया वह कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि थी। इसके बाद राजा प्रियव्रत ने छठ पर्व किया। सूर्य की कृपा से प्राप्त बालक को षष्ठी देवी ने पुनर्जीवन दिया, जिससे कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को सूर्य को अर्घ्य देकर छठ मैय्या की पूजा की जाती है।