Jammu: भेड़-बकरी पालन दे सकता है अच्छा रोजगार, हर साल 15 लाख भेड़ बकरी का होता है आयात
बकरियों में मिड्डू (वार्बल फ्लाई संक्रमण) की बीमारी बकरी पालकों के लिए सिरदर्द बनी हुई है। यह एक प्रकार की मक्खी के लारवा के कारण होती है। बकरी के पेट और पीठ के उपरी भाग की चमड़ी के नीचे 2 सेंटीमीटर तक सूजन बन जाती है।
जम्मू कश्मीर में भेड़ बकरी पालन का काम भी हो रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में लोग इन्ही भेड़- बकरियों को पाल कर अपनी रोजी चलाते हैं। खासकर गुज्जर परिवार तो भेड़ बकरी बड़ी संख्या में पालकर जम्मू कश्मीर में गोश्त की मांग को पूरा करते हैं। वहीं बकरी का दूध की भी अच्छी मांग रहती है, और इस मांग को कुछ हद तक पूरा किया जा रहा हैं। लेकिन भेड़ बकरी पालन के काम में पैसा तो है मगर कुछ दिक्कतें भी हैं । वर्तमान समय में कई संकटों के दौर से भेड़-बकरी पालकों को गुजरना पड़ता है। हालांकि आज भी बड़े तौर पर भेड़ बकरी बाहरी राज्यों से आयात हो रही है। पूरे मामले को लेकर दैनिक जागरण के वरिष्ठ संवाददाता गुलदेव राज ने शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चर सांइसेज एंड टेक्नोलॉजी जम्मू के डाक्टर अनीश यादव, प्रोफेसर एवं नैशनल फेलाे से बातचीत की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश:-
सवाल: बकरी पालन का काम जम्मू कश्मीर में तो हो रहा है। मगर इसके पालन में चुनौतियां क्या है?
जवाब: बकरियों में मिड्डू (वार्बल फ्लाई संक्रमण) की बीमारी बकरी पालकों के लिए सिरदर्द बनी हुई है। यह एक प्रकार की मक्खी के लारवा के कारण होती है। बकरी के पेट और पीठ के उपरी भाग की चमड़ी के नीचे 2 सेंटीमीटर तक सूजन बन जाती है। किसान या बकरी पालक को भ्रम रहता है कि यह सब कांटे लगने या डंडा मारने से हुआ होगा। यह बीमारी जम्मू कश्मीर में 20 प्रतिशत से अधिक बकरियों में पाई जाती है। इसमें सांबा, ऊधमपुर, राजौरी, जम्मू, कठुआ के क्षेत्र प्रमुख हैं।
सवाल: लेकिन इस बीमारी से नुकसान क्या है? निजात कैसे मिलेगी?
जवाब: वर्ष 2011 में एक अध्ययन के अनुसार मिड्डू बीमारी से जम्मू संभाग को साल में तकरीबन 7.8 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान होता है। जानवर कमजोर हो जाता है और उसका वजन गिर जाता है। इससे प्रति बकरी में 2.40 किलोग्राम मांस का नुकसान होता है। वहीं जानवर प्रतिदिन 100 ग्राम के करीब दूध देना कम कर देता है। चमड़ी में छिद्र बन जाने से जानवर की कीमत भी पूरी नही मिलती।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा स्वीकृत नेशनल फेलो प्रोजेक्ट के अंर्तगत पशु परजीवी विज्ञान विभाग स्कास्ट जम्मू के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए नवीन अध्ययन के अनुसार बीमारी का हर संभव व सस्ता इलाज उपलब्ध है। आइवरमक्टिन दवा पांच माइक्रोग्राम प्रति किलो जानवर के वजन के हिसाब से टीके के रूप में इस्तेमाल की जानी चाहिए। यह टीके जुलाई के प्रथम सप्ताह में लग जाए तो जानवर बीमारी से बचा रहेगा। बस किसानों को जरा सचेत रहने की जरूरत है।
सवाल: सामान्यतया कितना फायदेमंद हैं भेड़ बकरी पालन का काम?
जवाब: बहुत ज्यादा फायदेमंद है। बस किसानों को माणकों का पालन कर काम को आगे बढ़ाना होगा। आपको बताना चाहता हूं कि जम्मू कश्मीर में हर साल 15 लाख भेड़ बकरी अन्य राज्यों से मंगाए जाते हैं। मांस की बेहद मांग है और जम्मू कश्मीर में इतनी उपलब्धता नही। अगर गंभीरता से इस काम को आगे बढ़ाया जाए तो अच्छी कमाई हो सकती है। बेरोजगार युवा फार्म बनाकर बकरी का पालन कर सकते हैं।
सवाल: बकरी पालन के काम को आगे बढ़ाने के लिए सरकार के पास कोई आकर्षक योजना है ?
जवाब: बहुत अच्छी योजना है। भेड़ बकरी के पालन को प्रोत्साहन देने के लिए भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर के प्रशासन से मिलकर योजना तैयार की है। इसके तहत 10 बकरी का यूनिट किसानों को निशुल्क मिल सकता है। साथ में अन्य सुविधाएं भी मिलेंगी। इच्छुक किसानों को चाहिए कि वे निकटतम पशु चिकित्सक से सलाह लें या नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से भी संपर्क साधा जा सकता है।
सवाल: युवाओं से कुछ कहना चाहेंगे?
जवाब: जी हां। यही कि सरकारी नौकरी सबको मिलना संभव नही। लेकिन ऐसे ऐसे काम किए जा सकते हैं कि आप लोगों के लिए रोजगार का जरिया बन सकते हैं। फिर देरी क्यों। बस थोड़ा मंथन करो और अपना काम धंधा शुरू करो। काम की कमी नही, बस युवाओं को अपना इरादा पक्का करना होगा।