Move to Jagran APP

Jammu And Kashmir:शहीद के परिवार में देश के प्रति गजब का जज्बा, संघर्ष की नई इबारत लिख रहीं शाजिया

शहीद के परिवार में देश के प्रति गजब का जज्बा है। एक साल पहले पुलवामा आतंकी हमले में शहीद नसीर अहमद की पत्नी शाजिया कौसर बच्चों में वीरता का जज्बा कूट कूट कर भर रही हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 13 Feb 2020 09:53 AM (IST)Updated: Thu, 13 Feb 2020 09:53 AM (IST)
Jammu And Kashmir:शहीद के परिवार में देश के प्रति गजब का जज्बा, संघर्ष की नई इबारत लिख रहीं शाजिया
Jammu And Kashmir:शहीद के परिवार में देश के प्रति गजब का जज्बा, संघर्ष की नई इबारत लिख रहीं शाजिया

जम्मू, विवेक सिंह। शहीद के परिवार में देश के प्रति गजब का जज्बा है। एक साल पहले पुलवामा आतंकी हमले में शहीद नसीर अहमद की पत्नी शाजिया कौसर बच्चों में वीरता का जज्बा कूट कूट कर भर रही हैं। साथ ही वह पति के सपने को भी साकार करने में जुटी हैं।

loksabha election banner

पुलवामा हमले में शहीद केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के हेड कांस्टेबल नसीर अहमद की पत्नी शाजिया कौसर कहती हैं कि पति की शहादत के बाद जीवन आगे संघर्ष भरा है, लेकिन जब तक पति के सपने साकार कर बच्चों को काबिल नहीं बना लेतीं चैन से नहीं बैठूंगी। वह स्वेच्छा से 14 फरवरी 2019 को केरिपुब जवानों से लदी बस की सुरक्षा के लिए साथ गए थे। उस दिन उनका 46वां जन्मदिन था।

शाजिया का कहना है कि मुझे फर्ख है कि उन्होंने देश के लिए शहादत देकर अपना नाम देश के शहीदों की सूची में लिख दिया। 14 फरवरी 1973 को जन्मे नसीर अहमद बेटे कासिफ को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में अधिकारी व बेटी फलक को डॉक्टर देखना चाहते थे। मैंने उनका दाखिला जम्मू के आर्मी स्कूल में करवाया है ताकि पिता की तरह उनमें देशभक्ति का जज्बा बुलंद हो। शहीद की 13 वर्षीय बेटी फलक और 11 वर्षीय बेटा कासिफ आर्मी स्कूल कुंजवानी में पढ़ते हैं। जम्मू संभाग के राजौरी के डडासन बाला क्षेत्र के शहीद नसीर अहमद छन्नी हिम्मत में तैनात 76वीं बटालियन के हेड कांस्टेबल थे।

जन्मदिन के दिन ही जाने का लिया फैसला :

शाजिया ने बताया कि साथी सिपाही की बेटी की शादी थी, इसलिए पति ने अपने जन्मदिन के दिन पुलवामा जाने का फैसला किया था। वह हमले का निशाना बनी बस के गार्ड कमांडर थे। उनकी जिम्मेदारी थी कि जम्मू से रवाना हुए जवानों को कश्मीर पहुंचाकर वापसी में वहां से जवानों को बस में जम्मू के ट्रांजिट कैंप तक पहुंचाया जाए।

शहीद नसीर बच्चों के भविष्य को लेकर गंभीर थे। इसलिए हम राजौरी से जम्मू के छन्नी रामा इलाके में आकर बस गए थे। इस समय मैं पिता मुहम्मद गुलशेर के साथ छन्नी रामा में मायके में रह रही हूं। पूरी जद्दोजहद कर रही कि पति द्वारा इसी इलाके में खरीदी जमीन पर घर बना सकूं। पति के शहीद होने के बाद समाज ने हिम्मत बढ़ाई तो केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल ने पूरा सहयोग दिया। उम्मीद है कि मैं अकेली न पड़ जाउं, इसके लिए आगे साथ मिलता रहेगा। शाजिया का कहना है कि वह बेटे के भविष्य को लेकर ¨चतित है, बेटा इस समय राजौरी में ताया सिराज उद्दीन के पास है। जम्मू में उसकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है।

पापा की बहादुरी को सलाम :

13 वर्षीय फलक पिता हेड कांस्टेबल नसीर अहमद की बहादुरी को सलाम करती है। उसका कहना है कि पिता का प्यार बहुत याद आता है। वह बहुत बहादुर थे, मुझे फर्ख है कि मैं देश के लिए कुर्बान हुए शहीद की बेटी हूं। मेरी कोशिश है कि मैं डॉक्टर बनकर पिता के सपने को साकार करूं। इसके लिए मैं मेहनत करूंगी। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.