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कश्मीर के युवाओं को हिंसा की आग में झोंककर उनकी मौत पर भी पैसा बनाते रहे अलगाववादी, जानिए इनका सच!

पाकिस्तान की सरकार कश्मीर में जिहाद और अलगाववाद की आग को जिंदा रखने के लिए पाकिस्तान के विभिन्न मेडिकल व इंजीनियरिंग कालेजों में करीब 150 सीटें उन लोगों के लिए आरक्षित रखती है

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 04:42 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 06:21 PM (IST)
कश्मीर के युवाओं को हिंसा की आग में झोंककर उनकी मौत पर भी पैसा बनाते रहे अलगाववादी, जानिए इनका सच!
कश्मीर के युवाओं को हिंसा की आग में झोंककर उनकी मौत पर भी पैसा बनाते रहे अलगाववादी, जानिए इनका सच!

श्रीनगर, नवीन नवाज। अलगाववादी कश्‍मीरी युवाओं को बहकाकर हिंसा की आग में झोंकते रहे और उनके नाम पर अपनी तिजोरियां भरते रहे। पाकिस्‍तान सरकार कश्‍मीर में अलगाववाद की आग को भड़काने के लिए अपने यहां आतंकियों और मारे गए कट्टरपंथियों के रिश्‍तेदारों के लिए एमबीबीएस व इंजीनियरिंग की 150 सीटें आरक्षित करती है। यह सीटें इन पाकिस्‍तान के इशारे पर चलने वाले अलगाववादी नेताओं को आवंटित कर दी जाती। अलगाववादी इन सीटों को बेचकर मोटा मुनाफा बना लेते। एक नेता को अधिकतम चार सीटें मिलती थी। हुर्रियत के विवाद में गिलानी की चिट्ठी ने इस बंदरबांट की पोल खोलकर रख दी है। टेटर फंडिंग मामले की जांच कर रही एनआइए (राष्‍ट्रीय जांच एजेंसी) के हाथ भी ऐसे कई पत्र हाथ लगे हैं। इससे कई बड़े अलगाववादियों पर शिकंजा कसना तय है।

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भले ही इन सीटों की आड़ में हुए पैसे का खेल काफी पुराना है पर अब हुर्रियत के विवाद ने इसे सतह पर ला दिया है। वर्ष 2015 को गुलाम कश्मीर स्थित हुर्रियत कांफ्रेंस के संयोजक महमूद सागर को इसी नाम पर कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। इधर जम्मू कश्मीर में अलगाववादी नेता शब्बीर शाह ने हुर्रियत कांफ्रंस के कट्टरपंथी गुट से किनारा कर लिया था। उस समय एमएबीबीएस की एक सीट के लिए अलगाववादी 13 लाख रुपये वसूल रहे थे।

1990 में बाद से कश्‍मीर में आतंकवाद की आग को और भड़काने के लिए पा‍किस्‍तान ने अलगावाादियों और आतंकियों के रिश्‍तेदारों के लिए निशुल्क सीटें रखनी आरंभ कर दी। इसके अलावा जम्मू कश्मीर के छात्रों के लिए विदेशी छात्र वर्ग से भी प्रवेश की छूट दे दी। इसके जरिए पाकिस्तान में पढ़ने वाले छात्रों को अन्य विदेशी छात्राें के बराबर ही फीस चुकानी पड़ती है। छात्रवृत्ति के आधार पर दाखिला लेने वाले छात्रों को हॉस्टल, फीस समेत अन्य संबधित सुविधाएं निशुल्क प्रदान की जाती हैं। आरक्षित सीटों पर प्रवेश आतंकी संगठन या फिर कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी नेताओं की पुष्टि के आधार पर ही दिया जाता है। इसी को अलगाववादियों ने जेब भरने का औजार बना लिया।

व्‍यापारियों व कर्मचारियों के बेटे भी जाते रहे हैं पाकिस्‍तान: अलगाववादी खेमे से जुड़े सूत्रों के मुताबिक कट्टरपंथियों को उनके कद के मुताबिक दो से चार सीटें मिलती हैं। इन सीटाें पर दाखिला लेने वाले छात्रों को अलगाववादी मोल-भाव कर मोटा पैसा वसूल कर लेते हैं। पाकिस्तान ने सब जानते हुए भी कभी एतराज नहीं किया। इस तरह संबंधित नेता कश्‍मीरी लोगों का हितैषी बनने का आडंबर करते हुए अपनी तिजोरी भरता रहा। सूत्रों के अनुसार अलगाववादी आतंकियों के परिवार के बदले उनके दूरदराज के रिश्तेदारों को भी एमबीबीएस व इंजीनियरिंग में दाखिला दिलावाने लगे और सीटों का दाम बढ़ता चला गया। वर्ष 2008 के बाद इन दाखिलों को लेकर अलगाववादी नेताओं में जबरदस्त होड़ मच गई थी। कश्मीर के कई नामी व्यापारियों के बच्चे को भी अलगावादियों ने इन सीटों पर दाखिला दिलवाया। उन्हाेंने बताया कि कुछ सरकारी कर्मियों के बच्चे व रिश्तेदार भी इस काेटे से पाकिस्तान में पढ़ चुके हैं।

नेताओं के नाम पर चल रहा वसूली का खेल: करीब पांच साल पहले कुछ छात्रों ने कोटा न मिलने पर हंगामा कर दिया और एक नेता द्वारा पैसे मांगने के खेल का खुलासा किया। जनवरी 2015 में इस पर खूब हंगामा हुआ था। कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी के करीबी रहे शब्बीर शाह को इन सीटाें को बेचने के आरोपों के चलते हुर्रियत छोड़नी पड़ी। उस समय गुलाम कश्मीर में हुर्रियत की कमान संभाल रहे महमूद सागर को हुर्रियत से निकाला गया था। इसके बाद गुलाम माेहम्मद साफी ने वहां हुर्रियत की कमान संभाली और वह भी इस गोरखधंधे में लिप्त हाे गए। मामले ने तूल पकड़ा तो गिलानी ने उन्हें भी हटा दिया। इसके साथ गिलानी ने दावा किया कि वह अब स्कॉलरशिप कोटे से किसी को पाकिस्तान पढ़ने नहीं भेज रहे हैं। इसके बावजूद न सिर्फ गिलानी गुट बल्कि मीरवाइज मौलवी उमर फारूक के करीबी भी इस खेल में जुटे रहे।

बड़े नेताओं के करीबियों से मिले अहम दस्‍तावेज: टेरर फंडिंग के सिलसिले में पकड़े गए गिलानी के खासमखास एयाज अकबर और मीरवाइज के प्रवक्ता शाहिद उल इस्लाम के घर से मिले दस्तावेजों से भी पाकिस्‍तान में एमबीबीएस और इंजीनियरिंग की सीटों के नाम पर हुए पैसे के खेल की पुष्टि हुई है। एनआए के हाथ भी यह खास दस्‍तावेज लगे हैं। सूत्र बताते हैं कि हर साल करीब 100 बच्चों को पाकिस्तान भेजा जा रहा है। अलगाववादी खेमे की सियासत पर नजर रखने वालाें के मुताबिक, गिलानी के इस्तीफे ने अलगाववादी खेमे में जारी पैसे के खेल की पोल खोली है। इससे फिर साबित हो गया है कि यह लाेग पहले युवाओं को बरगला कर हिंसा में धकेलने के लिए पाकिस्तान से पैसा लेते हैं। फिर यह इन आतंकियों की मौत को बेचते हुए तिजोरियां भरते हैं। इन्हें कश्मीर या कश्मीरियों से नहीं सिर्फ पैसे से मतलब है।


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