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गिलानी की सियासत: कश्मीर के युवाओं को भड़काते रहे पर खुद का परिवार मलाई काटता रहा

गिलानी का बड़ा दामाद अल्ताफ अहमद शाह उर्फ फंतोश ही गिलानी गुट के वित्तीय मामले देखता था और इस समय टेरर फंडिंग के सिलसिले मे जेल में है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 30 Jun 2020 10:59 AM (IST)Updated: Tue, 30 Jun 2020 04:34 PM (IST)
गिलानी की सियासत: कश्मीर के युवाओं को भड़काते रहे पर खुद का परिवार मलाई काटता रहा
गिलानी की सियासत: कश्मीर के युवाओं को भड़काते रहे पर खुद का परिवार मलाई काटता रहा

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : हुर्रियत के कट्टरपंथी चेहरा सईद अली शाह गिलानी हमेशा अन्य अलगाववादियों पर कश्मीर से दगा करने और पर्दे के पीछे हिंदोस्तान का साथ देने का आरोप लगाते रहे। इसके विपरीत स्वयं हमेशा अपने परिजनों और नजदीकी लोगों को लाभ दिलाने में जुटे रहे। उनसे जब भी पूछा गया कि उनके परिवार का कोई सदस्य आतंकी क्यों नहीं बना तो जवाब आया कि सबको अपनी मर्जी से फैसला लेने का हक है। वह युवाओं को हथियार उठाने और दुकानें बंद करने के लिए उकसाते रहे। इसके विपरीत उनके परिजन मलाई खाते रहे।

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उनका एक बेटा नसीम गिलानी श्रीनगर में शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय में कार्यरत है और दूसरा बेटा नईम गिलानी डॉक्टर है। नईम काफी समय तक परिवार के साथ पाकिस्तान में रहा। उसकी बीबी भी साथ थी और वह भी डॉक्टर है। नईम गिलानी वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी काफी समय वहां रहा। बाद में वह अपनी गर्भवती पत्नी को लेकर अमेरिका चला गया। वर्ष 2010 में कश्मीर में हिंसक प्रदर्शनों में कमी आने पर नईम सपरिवार कश्मीर लौट आया। उस समय चर्चा चली थी कि केंद्र से समझौते के तहत ही नईम को वापस आने की अनुमति मिली है। गिलानी का बड़ा दामाद अल्ताफ अहमद शाह उर्फ फंतोश ही गिलानी गुट के वित्तीय मामले देखता था और इस समय टेरर फंडिंग के सिलसिले मे जेल में है।

गिलानी के दोनों पुत्रों से भी एनआइए ने पूछताछ की है, लेकिन कहा जाता है कि उन्हेंं बचाने के लिए गिलानी ने अपना रुख नरम करने का संकेत दिया है। वर्ष 2016 में जब कश्मीर में हिंसक प्रदर्शन हो रहे थे और गिलानी रोजाना स्कूलों के बायकाट का एलान कर रहे थे, दुकानों को बंद रखने का एलान करा रहे थे तो उसी दौरान उनके एक नाती को नियमों में राहत देकर शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंंशन सेंटर में करीब डेढ़ लाख रुपये महीना की नौकरी पीडीपी-भाजपा सरकार ने दी थी। उसकी एक बेटी जिसका जेद्दाह में पति के साथ रहती है। एक बेटी का पति इफ्तिखार गिलानी पत्रकार है और दिल्ली में रहता है।

देश को कोसता रहा पर पेंशन भी लेता रहा: कश्मीर में भारत विरोधी चेहरा रहे सईद अली शाह गिलानी भले ही देश की निंदा करते रहे हों लेकिन वह इस संविधान में कई बार आस्था जता चुके हैं। वह 1971,1977 और 1987 में जम्मू कश्मीर विधानसभा में जमात ए इस्लामी के टिकट पर विधायक चुने गए। वह लगातार पूर्व विधायक के तौर पर जम्मू कश्मीर सरकार से पेंशन भी लेते रहे। कहा जाता है कि उन्होंने करीब चार साल पहले पेंशन लेना बंद किया है।

घर में है नजरबंद: हृदयरोग, किडनी रोग समेत विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त गिलानी करीब एक दशक से अपने घर में ही तथाकथित तौर पर नजरबंद हैं। पुलिस उनकी नजरबंदी से इन्कार करती है।

गिलानी का परिवार: गिलानी की पहली बीवी से दो बेटियां थी। वह अलग ही रहीं। दूसरी बीवी से दो बेटे और दो बेटियां हुईं। 

बेटे नईम या मसर्रत को चेयरमैन बनाना चाहते थे गिलानी: कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी हुर्रियत कांफ्रेंस में अपने पुत्र नईम गिलानी या अलगाववादी मसर्रत आलम को चेयरमैन देखना चाहते थे। मसर्रत आलम जेल में बंद है, जबकि नईम गिलानी के नाम पर कोई राजी नहीं हो रहा था। उन्होंने परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए ही 19 दिसंबर 2018 को अशरफ सहराई को तहरीके हुर्रियत कश्मीर का चेयरमैन बनाया, लेकिन हुर्रियत कांफ्रेंस से वह किसी भी स्तर पर अलग नहीं हुए थे। हृदयरोग, किडनी रोग समेत विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त गिलानी करीब एक दशक से अपने घर में ही तथाकथित तौर पर नजरबंद हैं। पुलिस उनकी नजरबंदी से इन्कार करती है। माना जा रहा है कि गिलानी के इस्तीफे के एलान के बाद कश्मीर की अलगाववादी सियासत न सिर्फ केंद्र प्रशासित जम्मू कश्मीर में बल्कि गुलाम कश्मीर में भी प्रभावित होगी।

गिलानी का हिजबुल और लश्कर में भी रहा है प्रभाव : कश्मीर में जिहाद के नाम पर आतंकी हिंसा को सही ठहराने वाले गिलानी का हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर जैसे आतंकी संगठनों में भी खासा प्रभाव है। जैश-ए-मोहम्मद के साथ उनके विभिन्न मुद्दों पर नीतिगत मतभेद रहे रहे हैं, लेकिन यह कभी सार्वजनिक नहीं हुए हैं।

आइएसआइ ने भी बनाया था दबाव : सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने गिलानी को वर्ष 2016 में एक संदेश भिजवाया था कि वह हुर्रियत कांफ्रेंस के आजीवन संरक्षक बन जाएं और दोनों गुटों को एकजुट करने के साथ ही किसी नए नेता को हुर्रियत का चेयरमैन बनने दें। उन्हेंं हुर्रियत के दूसरे गुट के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक के साथ मतभेद दूर करने के लिए भी कहा गया था। कहा जाता है कि तब गिलानी ने इसका कोई जवाब नहीं दिया था।


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