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देश की सीमाओं को अपने खून से सींचा है सांबा के योद्धाओं ने, वीर चक्र विजेता ध्रुव सिंह का परिवार है मिसाल

ध्रुव सिंह का एक पोता वरिंदर प्रताप सिंह जोकि कक्षा नौवीं में पढ़ रहा है ने बताया कि वह जब भी अपने दादा जी की कहानियां सुनते है उन्हें बहुत गर्व महसूस होता है और सेना में जाने के लिए बहुत प्रेरणा भी मिलती है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 11:43 AM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 11:51 AM (IST)
देश की सीमाओं को अपने खून से सींचा है सांबा के योद्धाओं ने, वीर चक्र विजेता ध्रुव सिंह का परिवार है मिसाल
वीर चक्र विजेता ध्रुव सिंह की बहादुरी-वीरता को देखते हुए उन्हें 1948 में वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

सांबा, निश्चंत सिंह : देश का कोई भी युद्ध हो और उसमें सांबा के योद्धाओं का नाम न हो, ऐसा कभी नहीं हो सकता क्यूंकि सांबा को वीरो की धरती इसलिए भी कहा जाता है क्यूंकि सांबा का कोई ऐसा कोना नहीं है जहां से किसी फौजी की वर्दी की खुशबू नहीं आती हो। सांबा में हर तीसरे घर में से कोई न कोई फौज में जरूर होता है सांबा के कई वीरों ने देश की सेवा की खातिर अपनी जानें न्यौछावर की है और इन सभी शहीदों की याद ने सांबा में जम्मू पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे एक वीर भूमि पार्क भी स्थापित किया गया और उसमें सांबा के सभी शहीदों के नाम सुनहरे अक्षरों में लिखे गए है ताकि आने वाली पीढ़ी इन शहीदों से प्रेरणा लेकर फौज में जाए और देश की सेवा करे।

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इस वीर धरती पर एक परिवार वीर चक्र विजेता ध्रुव सिंह का भी है जो तीन पीढ़ियों से देश की रक्षा व सुरक्षा में योगदान दे रहा है। सांबा की संगवाली मंडी के वीर चक्र विजेता रिटायर्ड कैप्टन ध्रुव सिंह का परिवार दशकों से देश की सेवा में लगा हुआ है। ध्रुव सिंह खुद चार भाई थे। रिटायर्ड रिसालदार बलदेव सिंह, रिटायर्ड सूबेदार संदोख सिंह, रिटायर्ड मेजर दलीप सिंह जोकि इस समय 100 वर्ष आयु पूरी कर अपना स्वास्थ्य जीवन जी रहे है। ध्रुव सिंह अपने भाइयों में से सबसे छोटे थे सभी को देश की सेवा करने का जज्बा था और सभी भाई सेना में भर्ती हो गए।

ध्रुव सिंह का जन्म 25 सितंबर 1925 को सांबा की संगवाली मंडी में हुआ और वह 18 साल में 31 अगस्त 1943 को बतौर सैनिक सेना की पहली जैक राइफल में भर्ती हो गए। अपने छोटे से अनुभव के साथ उनकी टुकड़ी जम्मू कश्मीर की पुंछ जिले में तैनात किया गया जिस वक्त कबालियों के लगातार हमले हो रहे थे। अपने बहुत छोटे से अनुभव के साथ उन्होंने कई कबालियों को मौत के घाट उतारते हुए अपने बाकी साथियों को संदेश एवं गोला बारूद पहुंचाकर उनकी जान बचाई थी उनकी बहादुरी और वीरता को देखते हुए उन्हें 1948 में वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

उनके तीन बेटों में से एक बेटा राजेश्वर सिंह ने भी फौज से नौकरी कर सेवानिवृत्त हुए है और उनका एक पोता भी नेवी में भर्ती होकर देश की सेवा कर रहा है। ध्रुव सिंह का एक पोता वरिंदर प्रताप सिंह जोकि कक्षा नौवीं में पढ़ रहा है, ने बताया कि वह भी अपने दादा जी और पिता जी की तरह फौज में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहता है। उन्होंने बताया कि जब भी वह अपने दादा जी की कहानियां सुनते है, उन्हें बहुत गर्व महसूस होता है और सेना में जाने के लिए बहुत प्रेरणा भी मिलती है।

हाल ही में केंद्र शासित प्रदेश सरकार स्कूलों एवं कॉलेज के नाम शहीदों के नाम पर रखे जाने के बाद सांबा की लड़कियों का हायर सेकंडरी स्कूल का नाम भी वीर चक्र ध्रुव सिंह जी के नाम पर रखा गया है।


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