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Rohingyas in Jammu and Kashmir: साजिश बेनकाब; सियालदाह से रोहिंग्या को ट्रेन में बैठाकर एजेंट भेज देता था जम्मू

जम्मू में आकर बसे इन रोहिंग्या की कहानी पूरी साजिश को बेनकाब कर रही है। दो हजार किलोमीटर से अधिक का सफर तय कर इस तरह यह रोहिंग्या भारत के एक छोर से दूसरे छोर पर पहुंच गए।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 07:26 AM (IST)Updated: Thu, 03 Dec 2020 09:49 PM (IST)
Rohingyas in Jammu and Kashmir: साजिश बेनकाब; सियालदाह से रोहिंग्या को ट्रेन में बैठाकर एजेंट भेज देता था जम्मू
जम्मू कश्मीर में इनकी संख्या 25 हजार के करीब है।

Rohingyas in Jammu and Kashmir जम्मू, अवधेश चौहान : सच नंबर-1 : 'हम वर्ष 2008 में बांग्लादेश सीमा पार कर बंगाल में घुसे। हमें एक व्यक्ति मिला और सियालदाह से ट्रेन में बैठाया। टिकट थमाकर कहा कि ट्रेन सीधे जाएगी और जो आखिरी स्टेशन आएगा, वहां उतर जाना। आखिरी स्टेशन पर जब ट्रेन पहुंची तो मालूम पड़ा कि यह जम्मू है। यहां भी किसी ने बताया कि कुछ रोहिंगया सुंजवां और बठिंडी रह रहे हैं, वहां चले जाओ। वहां आपके रहने का इंतजाम है। सुझाव देने वाले कौन थे, हमें नहीं मालूम।' -जम्मू के बठिंडी क्षेत्र में रोहिंग्या बस्ती में रहने वाले मुहम्मद कासिम।

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सच नंबर-2: वर्ष 2008 में बांग्लादेश से सीमा पार कर परिवार के साथ किसी तरह दिल्ली पहुंच गया। यहां मैंने परिवार पालने के लिए भीख मांगनी शुरू कर दी। कश्मीर के कुछ लोगों के संपर्क में आया। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर चले जाओ। वहां पर मुस्लिम आबादी है। जम्मू में अपने लोग हैं, सरकार अपनी है। सभी सुविधाए मिलेंगी। काम भी दिलवा देंगे। उन्होंने हमारी टिकट भी करवा दी और हम जम्मू पहंच गए। -जम्मू के बठिंडी में ही रहने वाले मुहम्मद अब्दुल्ला

ये वे सच हैं जिसे हर बार झुठलाने की कोशिशें हुईं। जम्मू में आकर बसे इन रोहिंग्या की कहानी पूरी साजिश को बेनकाब कर रही है। दो हजार किलोमीटर से अधिक का सफर तय कर इस तरह यह रोहिंग्या भारत के एक छोर से दूसरे छोर पर पहुंच गए। कुछ खास एजेंटों ने न केवल जम्मू में उन्हें सुरक्षित पनाह दी। कौन थे एजेंट यह न सुरक्षा एजेंसियां आज तक जान पाईं पर अब कुछ स्वयंसेवी संगठनों के नाम सामने आने से उम्मीद है सच सामने आ जाएगा।

साफ है कि जम्मू के जनसांख्यिकी स्वरूप को बदलने के लिए यह खेल खेला गया। हालांकि इसकी शुरुआत वर्ष 2000 में ही हो गई थी। बकायदा, कश्मीरी नेताओं के सहयोग व कुछ एजेंटों के माध्यम से रोहिंग्याओं को ट्रेनों में भर-भर कर जम्मू पहुंचाया गया। जम्मू कश्मीर विधानसभा में फरवरी 2018 में पेश रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के पांच जिलों में 6523 रोहिंग्या थे। इनमें से पांच हजार से अधिक केवल जम्मू में ही बसे। शेष सांबा, पुंछ, डोडा और अनंतनाग में बसाए गए। हालांकि गैर सरकारी आंकड़े बताते हैं कि जम्मू कश्मीर में इनकी संख्या 25 हजार के करीब है। कुछ रोहिंग्या सेना के कैंप और अन्य संवेदनशील केंद्रों के आसपास रह रहे हैं और खुफिया रिपोर्ट में कई बार इस पर चिंता भी जताई गई।

एजेंटों को किया गया सक्रिय : दिल्ली और कोलकाता जैसे शहरों में कश्मीरी नेताओं के एजेंटों को पूरी तरह सक्रिय कर दिया गया। उन्हेंं बड़ी संख्या में रोहिंग्याओं को जम्मू में बसाने का काम सौंपा गया। वर्ष 2007 में कुछ अलगाववादी संगठन के गुर्गे भी रोहिंग्याओं को जम्मू लाने में सक्रिय हो गए। एक एजेंट को एक दिन में 50 रोहिग्याओं को कोलकाता से जम्मू लाने का लक्ष्य सौंपा गया। एक तरफ रोशनी कानून की आड़ में कश्मीरी सियासतदान जम्मू के साथ लगते इलाकों की जमीन पर कब्जे कर रहे थे और दूसरी तरफ धीरे-धीरे कर रोहिंग्याओं को जम्मू के संवदेनशील इलाकों में बसाया जाने लगा।

सुंजवां, सिद्धड़ां, बठिंडी में जमीनों को घेरा जाने लगा : साजिश के तहत ही जम्मू के साथ लगते सुंजवां, सिद्धड़ां, बठिंडी में राजस्व, जंगलात, सिंचाई विभाग की जमींनों को खुर्दबुर्द कर हरी-भरी पहाडिय़ों को घेरने में लगे कश्मीरी सियासतदानों के आसपास की जमींनों पर रोहिंग्याओं को भी बसाया जाने लगा, ताकि वह भी हम साए के रूप में रच-बस जाएं।

वोट बैंक की खातिर बनवा दिए गए राशन कार्ड : सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का रोहिंग्याओं को संरक्षण प्राप्त था। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने इसे वोट बैंक बनाने की कोशिश की। उनके राशन कार्ड, बिजली कनेक्शन और वोटर कार्ड तक बनवा दिए गए। इससे रोहिंग्याओं को लगा कि जम्मू कश्मीर अन्य राज्यों के मुकाबले बेहतर है। इसके चलते बंगाल, दिल्ली, राजस्थान और देश के अन्य राज्यों से रोहिंग्याओं का आना जारी रहा।

महबूबा ने कहा था-नहीं निकाले जाएंगे रोहिंग्या : रोहिंग्याओं को शुरू से ही कश्मीर केंद्गित पाॢटयों का संरक्षण मिलता रहा। पीडीपी अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने 11 जनवरी 2017 को विधानसभा में कहा था कि अतंरराष्ट्रीय कानून के तहत रोहिंग्याओं को जम्मू कश्मीर से बाहर नहीं निकाला जाएगा। यह जहां बसे हैं, उन्हेंंं वही रहने दिया जाएगा। यही नहीं, महबूबा ने 14 फरवरी वर्ष 2018 को आदेश पारित किया था कि जो खानाबदोश गुज्जर बक्करवाल जम्मू कश्मीर में बसे हुए हैं, उस जगह को खाली नहीं करवाया जाए। इस आदेश के बाद रोहिंग्याओं का विश्वास भी पूर्ववर्ती सरकारों के प्रति बढ़ा। हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा था कि केंद्र ने जो नागरिकता संशाधित कानून पारित किया है, उसके तहत रोहिंग्याओं को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।

नहीं संभले तो देर हो जाएगी : इकजुट पार्टी के नेता एंव वरिष्ठ एडवोकेट अंकुर शर्मा ने कहा कि षड्यंत्र के तहत जम्मू के जनसांख्यिक स्वरूप को बदला जा रहा है। अगर अभी नहीं संभले तो देर हो जाएगी। वहीं जम्मू स्टेट मोर्चा के प्रधान प्रोफेसर वीरेंद्र गुप्ता ने भी कहा कि सियासतदानों ने साजिश के तहत जम्मू में जमीने घेरीं और फिर उसके आसपास रोहिंग्?याओं को बसा दिया।

कहां कहां बसे हैं, रोहिंग्या : रोहिंग्याओं को पहले जम्मू की सुंजवां, सिद्धड़ां, छन्नी हिम्मत और बठिंडी के करियानी तालाब और उसके साथ लगती पहाडिय़ों पर झुग्गियों में बसाया गया। फिर उन्होंने अपने करीबियों को म्यामार, बांग्लादेश आदि से बुला लिया। अब यह जम्मू रेलवे स्टेशन के आसपास बस्तियों, तवी नदी किनारे बसे भगवती नगर, सांबा के रेलवे स्टेश, बड़ी ब्राह्मणा की तेली बस्ती, आदि में बस गए। रोहिंग्या सब्जी बेचने, रेहड़ी फड़ी लगाने, ठेकेदारों के साथ रेलवे स्टेशनों में माल ठुलाई, अंडर ग्राउंड केबल बिछाने का काम कर रहे हैं। 


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