नृत्य में पारंगत बना दिव्यांग बच्चों में आत्मविश्वास जगा रहे राहुल तलवार
मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि बच्चा अगर संगीत सुन ही नहीं सकता तो वह नाच कैसे रहा है। बस इसी से मुङो प्रेरणा मिली और मैंने उन बच्चों के साथ काम करने की ठान ली।
जम्मू, सुरेंद्र सिंह। लुक्का चुप्पी फिल्म के गाने कोका कोला तूं पर डांस करते हुए नन्ही बच्ची सांची राजपूत को देखा तो लगा कि यह बच्ची कोई प्रोफेशनल डांसर है जिसने इस गाने पर डांस करने के लिए काफी मेहनत की है। जब सांची से इस बारे पूछा तो वह भागकर अपनी मां की गोद में बैठ गई। वहीं सांची की मां ने बताया कि उनकी बेटी पहली बार किसी डांस स्टूडियो में आई है और पहली बार इस गाने पर नाच रही है।
सांची उन बच्चों में एक है जो हमारे ही समाज का एक हिस्सा है लेकिन समाज में उन्हें बराबरी का हक नहीं मिलता। सांची डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त है और इसी कारण उसे स्वस्थ बच्चों के साथ पढऩे का मौका भी नहीं मिला। उधर, सांची जैसे अन्य बच्चों के लिए आशा की किरण बनकर जम्मू का एक युवा राहुल तलवार आगे आया है जो जम्मू में नटराज स्टूडियो के नाम से चार डांस इंस्टीट्यूट चला आ रहा है।
शारीरिक-मानसिक रूप से कमजोर बच्चे भी प्रतिभाशाली
राहुल ने बताया कि शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर बच्चे भी काफी प्रतिभाशाली होते हैं। इसका पता उस समय चला जब वह अपने एक दोस्त के साथ दिव्यांग बच्चों के लिए कार्य कर रही एक संस्था में गया। वहां पर हमने बच्चों के डांस करना शुरू किया तो उनमें एक बच्चा सबसे अलग होकर किसी माहिर डांसर की तरह डांस कर रहा था। पूछने पर पता चला कि वह बच्चा मूक बधिर है। यानी न ही वह सुन सकता है और न ही बोल सकता है। मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि बच्चा अगर संगीत सुन ही नहीं सकता तो वह नाच कैसे रहा है। बस इसी से मुङो प्रेरणा मिली और मैंने उन बच्चों के साथ काम करने की ठान ली।
ओलंपिक में स्पेशल डांस भी एक कैटेगरी
इस काम में ज्यादा प्रेरणा मुझे उस समय मिली जब मुझ़े पता चला कि अब स्पेशल ओलंपिक में डांस भी एक कैटेगरी होगी जिसमें दिव्यांग बच्चों को मौका मिलेगा। अब मेरा लक्ष्य जम्मू के दिव्यांग बच्चों को दुनिया के सामने मंच पर लाना है। राहुल अब दिव्यांग बच्चों को निशुल्क डांस सिखा रहा है। राहुल का छन्नी, गांधी नगर, त्रिकुटा नगर और तालाब तिल्लो में नटराज स्टूडियो नाम से डांसिंग इंस्टीट्यूट हैं और वहां पर उसके पास कई दिव्यांग बच्चों को लेकर उनके माता-पिता आ रहे हैं। राहुल का कहना है कि सबसे ज्यादा खुशी उसे तब होती है जब उन दिव्यांग बच्चों के माता-पिता के माता-पिता के चेहरों पर अपने बच्चों को कुछ करता देख खुशी झलकती है।
अभी बहुत करना बाकी है
राहुल का कहना है कि यह तो अभी शुरुआत है। अभी बहुत कुछ करना है। मैं दिव्यांग बच्चों की तलाश में अपने दोस्तों का भी सहयोग ले रहा हूं। जब हमें कहीं ऐसे बच्चे का पता चलता है तो हम उसके घर में पहुंच जाते हैं। हैरानी की बात यह है कि ऐसे बच्चों के माता-पिता काफी हिम्मत वाले हैं और उन बच्चों में भी कोई न कोई न प्रतिभा जरूर छिपी मिलती है।
स्वास्थ्य भी रहता है बेहतर
राहुल का कहना है कि दिव्यांग बच्चों के पास ज्यादा कुछ करने को नहीं होता। वे ज्यादा समय घर के भीतर ही बैठकर या लेट कर बिता देते हैं। एक्टिव रहने से स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।
व्यवसाय छोड़ राहुल ने बनाई अपनी पहचान
राहुल का परिवार जम्मू का एक जाना माना व्यवासायिक परिवार है लेकिन उसने अपना अलग ही रास्ता चुना। राहुल ने बताया कि उसे डांसिंग का शौक था और उसने घर पर पहले निशुल्क बच्चों को सिखाना शुरू कर दिया। इसके बाद जब बच्चों की संख्या ज्यादा होने लगी तो उसने किराये पर एक कमरा लिया और वहां पर उसने तीन सौ रुपये प्रति बच्चा फीस रखी। जब बच्चे और बढऩे लगे तो तालाब तिल्लो में एक बड़ा बैंक्वेट हाल ही किराए पर ले लिया जहां उसने डांस के अलावा जिम खोल दिया। उसके पास अब चार इंस्टीट्यूट हैं और जिम हैं जिसमें काफी लोग मैंबर हैं।