फास्टैग के बाद भी लग रही वाहनों की कतार
अव्यवस्था से सिरदर्द बन रहा फास्टैग
जागरण संवाददाता, जम्मू : दिसंबर माह से फास्टैग तो शुरू कर दिया गया, लेकिन आज तक ऐसी व्यवस्था नहीं बन पाई कि वाहन चालकों को लाइन में नहीं लगना पड़े। आज भी टोल प्लाजा पर बहुत से फास्टैग को वहां तैनात कर्मचारी स्कैन कर रहे होते हैं। इस प्रक्रिया में काफी समय लग जाता है जो सरकारी दावों की पोल खोल रहा है।
हालत यह है कि फास्टैग के लिए जब चालक तेजी से ट्यूब में पहुंचते हैं तो अधिकतर बार ऑटोमैटिक फास्टैग पढ़ा नहीं जाता। फिर वाहन को रुकवा दिया जाता है। टोल प्लाजा का कर्मचारी हाथ में स्कैनिग मशीन लेकर पहुंचता है और फिर गाड़ी के शीशे पर लगे फास्टैग को स्कैन किया जाता है। इस प्रक्रिया के चलते चालक का काफी समय नष्ट हो जाता है। यह प्रक्रिया सरकार के उस दावे की पोल खोलती है जो फास्टैग के शुरू होने के साथ समय बचने का दावा कर रही थी। यही नहीं टोल प्लाजा में फास्टैग व कैश के लिए बनी अलग-अलग टयूब हैं। चालकों को पता ही नहीं चलता कि वे किस ट्यूब में जाएं। फिर वे जाम में फंसकर रह जाते हैं।
सरोर टोल प्लाजा और बन टोल प्लाजा में यह सब आए दिन झेलना पड़ रहा है। हीरानगर में तैनात दिलीप कुमार का कहना है कि फास्टैग का मकसद समय बचाना है। ऐसा हो कम ही रहा है। स्कैनिग मशीनें आटोमैटिक तरीके से अच्छे से काम करेंगी तभी फायदा है। इससे तो बेहतर है कि लोग स्वयं पैसे कटवा कर आगे चले जाएं। वहीं कठुआ से जम्मू नौकरी करने आने वाले गोपाल शर्मा का कहना है कि अधिकतर बार उनकी गाड़ी के फास्टैग को स्कैन किया जाता है। वहीं, सांबा के रहने वाले नरेश कुमार का कहना है कि कई बार यह देखने को मिलता है कि लोग फास्टैग की ट्यूब में चले जाते हैं। कोई स्पष्ट बोर्ड नहीं लगा होने के कारण ऐसा होता है। इससे वाहनों का जाम बढ़ता है। फिलहाल तो कोरोना के चलते भीड कम है लेकिन व्यवस्था बनाने की जरूरत है। -----
क्या है फास्टैग
फास्टैग एक स्टीकरनुमा डिवाइस है, जो रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन तकनीक से काम करता है। फास्टैग लगी गाड़ी के टोल प्लाज से गुजरते ही रकम कस्टमर के खाते से एनएचआइ कंसेशनेयर के खाते में चली जाती है और ड्राइवर, ऑपरेटर या अन्य स्टेकहोल्डर को मैसेज भी मिल जाता है।
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फास्टैग लगने से वाहनों के जाम में राहत मिली है। हां कुछ गाड़ियों में लगे फास्टैग मशीन पढ़ नहीं पाती। ऐसे में वहां तैनात कर्मचारी स्कैनिग मशीन लेकर आते हैं, लेकिन इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। लोग जागरूक हुए हैं। जम्मू-कश्मीर में कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आ रही। व्यवस्थित तरीके से काम चल रहा है।
-हेमराज, क्षेत्रीय निदेशक, नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया