Pulwama Terror Attack: हमला भले जैश ने किया पर राह सियासत ने दिखाई, इस तरह बदलते रहे नियम
Pulwama Terror Attack. जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में भले ही हमला जैश ने किया हो लेकिन उन्हें राह दी है घाटी के सियासी दलों ने।
जम्मू, राज्य ब्यूरो। तिरंगे में लिपटे 40 से अधिक शहीदों के पार्थिव शरीर शुक्रवार को श्रीनगर एयरपोर्ट से उनके परिजनों के पास भेजे गए। 30 के करीब अन्य जवान अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं। भले ही यह हमला जैश ने किया हो, लेकिन उन्हें राह दी है घाटी के सियासी दलों ने। अब यह दल घड़ियाली आंसू बहाते हुए कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं लेकिन सुरक्षा बल कार्रवाई करते हैं तो यही सबसे पहले हंगामा करते हुए सियासत करने पहुंच जाते हैं।
वोटों की सियासत में देश के लिए जान लड़ाने को तत्पर जवानों की सुरक्षा दांव पर रख जाती है। इसके अलावा कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की नीतियां भी गौरीपुरा विस्फोट के लिए जिम्मेदार हैं। इस तरह के हमले की आशंका बहुत पहले सुरक्षाबलों ने उस समय जाहिर कर दी थी, जब वादी में हालात सुधरने का संकेत देने के लिए सुरक्षाबलों के काफिले के समय भीड़ भरे इलाके में आम नागरिक वाहनों को रोके जाने की ड्रिल को बंद किया गया। यह सियासत वर्ष 2003 के दौरान शुरू हुई। तत्कालीन राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने लोगों को राहत देने के नाम पर नियमों में ढील दी गई।
सुरक्षा एजेंसियों ने उस समय इस फैसले पर आपत्ति जाहिर की थी और कहा था कि इससे उनकी सुरक्षा का संकट पैदा होगा। तर्क गया कि सुरक्षाबलों के काफिले से अक्सर ट्रैफिक जाम हो जाता है। तब नियम बनाया गया कि बेशक आम नागरिकों के वाहन को सुरक्षा बलों के काफिले में दाखिल न होने दिया जाए, लेकिन वह काफिले के आगे और पीछे चल सकेंगे। इसके बाद वादी में सुरक्षाबलों पर ग्रेनेड फेंकने व फायरिंग की घटनाएं बढ़ने लगीं। इस दौरान आबादी वाले क्षेत्रों में टकराव होने से सुरक्षाबलों के साथ-साथ आम नागरिक भी शिकार बनते थे। इस पर आतंकियों के खिलाफ जब रोष पैदा होने लगा तो आतंकी संगठनों ने एक बयान जारी कर लोगों से कहा कि वह सुरक्षाबलों के वाहनों से दूर रहें। सुरक्षाबलों ने भी इन हमलों से सीख लेते हुए अपने वाहनों की खिड़कियों और खुले हिस्से पर जाल लगाना शुरू कर दिए, ताकि ग्रेनेड जाल में ही फंस जाए और सड़क पर गिरे।
राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि किसी भीड़ भरे बाजार से जब भी सुरक्षाबलों के काफिले गुजरते थे तो वहां ट्रैफिक को बंद किया जाता था। काफिला गुजरने के तीन से चार मिनट बाद ही आम वाहनों को छोड़ा जाता था। इसके अलावा आम वाहनों को काफिले से एक निश्चित दूरी बनानी होती थी।
इसके बावजूद सियासत यहीं नहीं थमी। फिर सुरक्षाबलों के काफिले की मूवमेंट को लेकर वादी में सुनियोजित तरीके से आवाज उठने लगी। कहा जाने लगा कि इनसे आम लोगों को दिक्कत होती है। इनकी हाईवे पर आवाजाही बंद की जाए। इसके अलावा सुरक्षाबलों के हाथ में हमेशा हथियार रहता है, काफिले के आगे और पीछे चलने वाले वाहन में बैठे सुरक्षाकर्मीं सीटी बजाते व लाठियां लहराते हुए नागरिक वाहनों को पीछे करते हैं। इससे कश्मीर में आने वाले पर्यटकों पर भी नकारात्मक असर होता है। तब यह निर्णय हुआ कि जो जवान छुट्टी से आ रहे हों या छुट्टी पर जा रहे हों, अपने साथ हथियार न रखें, उनके काफिले के आगे पीछे चलने वाले एस्कार्ट वाहन के जवान सीटी नहीं बजाएं, लाठी का इस्तेमाल न करें।
जी जनाब पड़ रहा है भारी
इसके साथ ही यह भी सुझाव आया कि जवानों को रौबीली आवाज में बात करने के बजाय जी जनाब की मुद्रा में बात करनी चाहिए। नागरिकों और सुरक्षाबलों के वाहन एक साथ चलें और नागरिक वाहनों को ओवरटेक करने से न रोका जाए। इस सुझाव के आधार पर तत्कालीन वरिष्ठ सैन्य व अन्य सुरक्षाधिकारियों ने अमल करने का फैसला किया। तत्कालीन राज्य सरकार ने इस पर हामी भर दी।
आतंकी गोलियां बरसाते रहे, जवानों के पास हथियार ही नहीं थे
जून, 2013 में वरिष्ठ कमांडरों के फैसले की कीमत श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र हैदरपोरा मे एक दर्जन जवानों ने चुकाई। लश्कर के आतंकियों ने हमला किया लेकिन जवानों के पास हथियार ही नहीं थे, खुद का बचाव करने के लिए। इस घटना की जांच हुई तो फिर आदेश आया कि आगे से हाईवे पर गुजरने वाले सुरक्षाबलों के काफिले में एक या दो जवानों के पास हथियार रहेंगे, ताकि हैदरपोरा जैसी घटना से बचा जा सके। इससे भी कुछ खास नहीं हुआ।
जानें, अफसरों की क्या मजबूरी है
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ सलीम रेशी ने कहा कि इस घटना से बचा जा सकता था, लेकिन सभी की मजबूरियां हैं। हालात सामान्य दिखाने के लिए, लोगों में वाहवाही लूटने के लिए सिक्योरिटी डिटेल और ड्रिल में ढील देना कभी भी सही नहीं होता, यह बात सभी जानते हैं। सियासी लोगों की मजबूरी सभी समझ सकते हैं, लेकिन ऐसे सुझावों पर अमल की अनुमति देने वाले सुरक्षाधिकारियों की क्या मजबूरी होगी, यह वही जानते हैं। यहां जब किसी के घर की बारात की गाड़ियां निकलती है तो उसमें कोई दूसरा व्यक्ति अपनी गाड़ी लेकर नहीं घुस पाता, फिर सुरक्षाबलों के काफिले में आम लोगों के वाहनों को और वह भी कश्मीर में घुसने की इजाजत देने वालों ने क्या सोच कर यह फैसला लिया था, यह उनसे पूछना चाहिए। उन्हें इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहरा, उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। बेशक जैश के आतंकी ने हमला किया है, लेकिन उसे हमले के लिए रास्ता तो उन्होंने लोगों ने दिया है, जिन पर यह रास्ता बंद करने की जिम्मेदारी थी।
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