बंकर होते तो आज इतनी जिंदगी से नहीं होता खिलवाड़
गोलाबारी से प्रभावित कस्बा अरनिया वीरान पड़ा है। गलियां और बाजार सूने पड़े है। हर तरफ सन्नाटा छाया है।
जम्मू , [जेएनएन] । पाकिस्तानी गोलाबारी में फंसे लोगों के लिए आगे कुआं पीछे खाई जैसी स्थिति है। आसमान से दुश्मन देश आग बरसा रहा है। बेशक केंद्रीय गृह मंत्रलय ने वर्ष 2017 में सीमांत क्षेत्रों में 14460 बंकर बनाने के लिए सशर्त 415.3 करोड़ रुपये देने की मंजूरी दी थी, लेकिन सरकार इन शर्तो को पूरा नहीं कर पाई, जिससे सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले करीब पचास हजार लोग दरबदर होकर रह गए हैं।
विधानसभा के आंकड़ों के अनुसार गृह मंत्रलय ने जम्मू, सांबा, कठुआ, पुंछ और राजौरी जिलों के सीमांत गांवों में आठ सौ वर्ग फुट क्षेत्र में बंकर बनाने के लिए कहा था। जम्मू में 120, सांबा में आठ, कठुआ में 243, पुंछ में 688 और राजौरी जिले में 372 बंकर बनाने थे। जिनकी कुल संख्या 1431 है। यही नहीं, सरकार ने अपने तौर पर जम्मू संभाग में घरों में निजी बंकर बनाने के लिए 13029 बंकर बनाने को मंजूरी दी है, लेकिन केंद्र ने इन बंकरों के लिए 160 वर्ग फुट निर्माण की शर्त रखी है। जम्मू, सांबा, कठुआ, पुंछ और राजौरी में आठ बंकर बनाने की केंद्र की स्वीकृति मिली थी। विडंबना यह है कि पाकिस्तान की ओर से जम्मू के अंतरराष्ट्रीय और नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी के बावजूद राज्य सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। स्थिति यह है कि करीब पचास हजार लोग आज बंकर न होने की वजह से दरबदर होकर रह गए हैं, जिसमें तीन दिनों में सुरक्षाबलों समेत 11 लोगों की जान जा चुकी है। इनमें सात आम नागरिक शामिल हैं। हद तो यह है कि सीमा पर 181 गांव हैं, जो पाकिस्तानी गोलाबारी से प्रभावित हैं। राज्य सरकार अभी तक इन बंकरों के निर्माण में कोई गंभीरता नहीं दिखा पाई है। यही कारण है कि लोग जानमाल के लिए दरबदर हो कर रह गए हैं। अगर अंतरराष्ट्रीय सीमा की बात करें तो गांव में एक ही सामुदायिक बंकर है, जिसका रखरखाव ठीक तरह से नहीं है। गोलाबारी के बीच बंकरों तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है। बॉर्डर एरिया में बंकरों में छिपना मुश्किल हो गया है क्योंकि यह अब क्षमता के हिसाब से कम होते जा रहे हैं। सितंबर 2017 में भी पाकिस्तान ने गोलाबारी कर सीमांत क्षेत्रों में बसे लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया था।
सुरक्षित जगहों पर मिले प्लॉट1संवाद सहयोगी, सांबा : नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता डॉ. मुस्तफा कमाल ने सीमावर्ती क्षेत्र गलाढ़ का दौरा कर लोगों की समस्याएं सुनीं। गोलाबारी से परेशान लोगों ने उन्हें अपनी समस्याओं के बारे में बताया। इस मौके पर लोगों ने कहा कि वह कई वर्षो से गोलाबारी के कारण परेशान हैं, लेकिन उनकी समस्याओं को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। लोगों का कहना था कि नेता केवल वोट लेने के समय बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन जब जीत कर जाते हैं तो फिर कोई नहीं आता। वह अपने बच्चों के भविष्य को लेकर काफी परेशान हैं। सीमावर्ती क्षेत्र के बच्चे किस तरह कस्बों के बच्चों के साथ मुकाबला कर पाएंगे क्योंकि बच्चों के दिमाग में हर समय गोलाबारी का डर बना रहता है। सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों ने नेकां नेता से मांग की कि उन्हें सीमा से दूर सुरक्षित जगहों पर पांच-पांच मरले के प्लाट दे दिए जाएं ताकि वह सुरक्षित जगहों पर जा सकें।
घर लौटने की जोखिम नही उठा रहे लोग
सीमा पर तीन दिन तक पाकिस्तानी गोलाबारी झेलने वालो को दहशत के बीच शनिवार शांति की रात नसीब हुई। इस सेक्टर मे बुधवार से सीमा पर लगातार आग उगल रही पाकिस्तानी बंदूके शनिवार रात शांत रही, लेकिन रविवार रात फिर पाकिस्तानी गोलाबारी से लोग सहम गए। स्थिति यह है कि ज्यादातर लोग अभी कैंपो और सुरक्षित स्थानों पर ही बने हुए है। कुछ लोग अपने मवेशियो को देखने के लिए दिन में गांव गए तो लोग काफी डरे सहमे थे। सीमांत लोगो का मानना है कि पाकिस्तान की नीयत पर भरोसा नही किया जा सकता। इस बीच, सीमा सुरक्षा बल ने भी सीमांत क्षेत्रों के लोगो को पूरी एहतियात बरतने की हिदायते दी है। शनिवार दोपहर दो बजे तक सीमा पर गोलीबारी नही हुई। सीमा पर लगातार गोलीबारी के बीच सीमा से सटे गांव के लोग सुरक्षित स्थानों पर चले गए थे। शनिवार रात से लेकर रविवार शाम तक कोई गोलीबारी नही हुई, लेकिन देर रात पाकिस्तान ने फिर गोलाबारी शुरू कर दी।
सुरक्षित स्थानों पर गए ज्यादातर लोग वही ठहरे हुए है। जो लोग अपने घरों मे थे वो भी घरों में दुबके रहे। ग्रामीणों ने बताया कि पाकिस्तान की फितरत है कि कुछ दिन शांत रहने के बाद फिर से गोलाबारी शुरू कर देता है। जैसे ही लोग सीमा पर हालत को सामान्य मान कर अपने घरो को लौटते है तो पाकिस्तान गोलाबारी शुरू कर देता है।
घरो मे लौटने की नही हो रही हिम्मत
सीमा पर चार दिन लगातार गोलाबारी के बाद सन्नाटा पसरा है, लेकिन सीमांत क्षेत्रों में रहने वालो के दिलों में खौफ बरकरार है। शनिवार देर रात से सीमा पार पाकिस्तान ने गोलाबारी नही की है, जिस कारण लोगों को कुछ राहत मिली है, लेकिन लोग अपने घरो में जाने की हिम्मत नही जुटा पा रहे है।
गोलाबारी से प्रभावित कस्बा अरनिया वीरान पड़ा है। गलियां और बाजार सूने पड़े है। हर तरफ सन्नाटा छाया है। कस्बे मे इक्का-दुक्का लोग ही रविवार को नजर आए। ये वो लोग थे जो अपने घरो मे बंधे हुए माल-मवेशियो की सुध लेने के लिए आए थे। अरनिया निवासी बसंत सैनी का कहना था कि पाकिस्तान अपनी हरकतो से बाज नही आ रहा है। पाक की खामोशी मे भी कोई चाल छिपी है। एकदम गोलाबारी बंद करने के पीछे भी पाकिस्तान की कोई साजिश होती है। यही कारण है कि लोगों के दिलो मे अब भी खौफ बना हुआ है। वही, धर्मेश और बबलू का कहना है कि महिलाएं और बच्चे बुरी तरह सहमे हुए है। वे अपने घरो मे वापस जाने के नाम से ही कांप रहे हैं। बचन लाल का कहना है कि सेना को खुली छूट दी जाए ताकि पाकिस्तान को एक ही बार कड़ा सबक दिखाया जा सके। रोज-रोज की गोलाबारी से हम लोग तंग आ चुके है। सीमांत लोग और नुकसान उठाने को तैयार है बशर्ते पाकिस्तान को मुंहतोड़ जबाव दिया जाए। रविवार दोपहर को अपने घरों की सुध लेने के बाद लोग अपने रिश्तेदारो व कैंपों को लौट गए।