कम किए जा सकते हैं जीएमसी जम्मू और श्रीनगर के प्रिंसिपलों के अधिकार
हालांकि इसका विरोध भी होने लगा है। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने बीस जनवरी को एक ड्राफ्ट सभी संबंधितों को भेजा था। इसमें मेडिकल कालेजों में नियुक्त पर्सनल अधिकारी प्रशासनिक अधिकारी और प्रशासक के बीच कुछ अधिकार देने की बात की गई है।
जम्मू, रोहित जंडियाल : राजकीय मेडिकल कालेज जम्मू और श्रीनगर के प्रिंसिपलों के अधिकार आने वाले दिनों में कम हो सकते हैं। इसके लिए स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने मसौदा तैयार कर चर्चा भी की है। जल्दी ही इसे अंतिम रूप देकर आदेश जारी हो सकता है। हालांकि इसका विरोध भी होने लगा है। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने बीस जनवरी को एक ड्राफ्ट सभी संबंधितों को भेजा था। इसमें मेडिकल कालेजों में नियुक्त पर्सनल अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी और प्रशासक के बीच कुछ अधिकार देने की बात की गई है।
यह अधिकारी सभी जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवाओं के हैं और अधिकतम दो से तीन वर्ष के लिए ही मेडिकल कालेजों में रहते हैं लेकिन अब बहुत सी ऐसी जिम्मेदारियां और अधिकार जो पहले प्रिंसिपल के पास होते थे, अब इन्हें दिए जा रहे हैं।अभी तक मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल के पास सभी स्थायी, अस्थायी, राजपत्रित और गैर राजपत्रित कर्मचारियों व अधिकारियों के सर्विस रिकार्ड, बजट और योजना, सर्वेक्षण, खरीदारी, विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं की निगरानी, जीएमसी की वेबसाइट, कालेजकी विजीलेंस, वित्तिय मामलों की जिम्मेदारी और रिकार्ड रहते थे। यही नहीं सितंबर 2004 को एक आदेश जारी कर स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने जीएमसी जम्मू और श्रीनगर के प्रिंसिपलों को गैर राजपत्रित कर्मचारियों की पदोन्नति और पैरामेडिकल कर्मियों की ट्रेनिंग के लिए बनी कमेटी का चेयरमैन बनाया था।
वह अस्पताल विकास फंड, सूचना प्रोद्याैगिकी, सर्वे बोर्ड के सदस्य भी थे। इसके अलावा गैर राजपत्रित कर्मचारियों के लिए बनी अनुशासनात्मक समिति के चेयरमैन भी थे।मगर अब जो नया ड्राफ्ट बनाया है, उसमें कर्मचारियों के सेवा रिकार्ड से लेकर अन्य कई अधिकार प्रिंसिपलों के स्थान पर जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारियों को दिए जा रहे हैं। यह अधिकारी पर्सनल अधिकारी, प्रयाासनिक अधिकारी और प्रशासक के पदों पर नियुक्त हैं। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के इस प्रस्ताव का अभी से विरोध भी होने लगा है। जीएमसी श्रीनगर और डेंटल कालेज श्रीनगर के मेडिकल फैकल्टी एसोसिएशन ने कहा कि विभाग के इस प्रस्ताव से प्रिंसिपलों के पदों की गरिमा को कम किया जा रहा है।
उनका कहना है कि इस कदम से मरीजों की देखभाल के साथ-साथ चिकित्सा शिक्षा पर भी असर पड़ेगा। उनका कहना है कि मेडिकल कालेज चिकित्सा विशेषज्ञ ही चला सकते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों को प्रिंसिपलों के अधिकार देकर इससे पूरे कालेज प्रभावित होंगे। मेडिकल कालेज अन्य कार्यालयों से अलग हैं और इन्हें केवल इस क्षेत्र मं अनुभव रखने वाले ही बेहतर ढंग से चला सकते हैं। प्रिंसिपलों को यह अधिकार नेशनल मेडिकल कमीशन और यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन के नियमों के अनुसार मिले हैं। इस कदम से कई कोसों की मान्यता को भी खतरा पड़ सकता है।यही नहीं ओमिक्रान और डेल्टा वैरिएंट से लड़ रहे फैकल्टी सदस्यों के मनोबल को भी कम किया जा रहा है।उन्होंने इसे लागू न करने को कहा है।
अतिरिक्त मुख्य सचिव ने की समीक्षा : स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव विवेक भरद्वाज ने दो दिन पहले ही सभी प्रिंसिपलों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा भी की। इसमें कहा गया कि गैर राजपत्रित कर्मचारियों की निगरानी, राजपत्रित और गैर राजपत्रित कर्मचारियों व अधिकारियों की पदोन्नति, एपीआर, विभागीय जांच, लोगों की शिकायतें और उनका निपटान, समय पर पदों को रेफर करना, कर्मचारियों की वरिष्ठता सूची जारी करने, सभी कर्मचारियों का सर्विस रिकार्ड, ठेके पर रखनेे वाले कर्मचारियों का सर्विस रिकार्ड, बजट और रिकार्ड के मामले, सर्वे बोर्ड तथा परचेस कमेटी के चेयरमैन, गैर राजपत्रित कर्मचारियों का प्रशिक्षण सहित कुल 23 प्रकार के मामलों से संबधित फाइलें पहले प्रशासनिक अधिकारियों, फिर पर्सनल अधिकारी और उसके बाद प्रशासक के पास जाएंगी। प्रिंसिपल को इससे बाहर कर दिया गया है।