जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35ए को लेकर सियासत जारी, इन कारणों से है विवाद
सियासत के जानकारों का मानना है कि 35ए सिर्फ संवैधानिक प्रावधान या कानूनी नहीं ,राजनीतिक मसला बन चुका है।
श्रीनगर [नवीन नवाज]। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 35ए पर सिसायत जारी है। इस मुद्दे पर अलगाववादियों के अाह्वान पर रविवार को कश्मीर बंद रहा। वहीं, इस की संवैधानिकता के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई होनी है। पिछले साल महबूबा मुफ्ती सरकार ने राज्य में कानून व्यवस्था का हवाला देकर सुनवाई टालने का आग्रह किया था, फिर केंद्र सरकार ने दिनेश्वर शर्मा को केंद्रीय वार्ताकार नियुक्त किए जाने का हवाला देकर और अब राज्यपाल शासन में स्थानीय व पंचायत चुनावों का हवाला देकर।
राज्य के दो प्रमुख दल महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और उमर अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) 35ए हटाए जाने के खिलाफ है, भाजपा पक्ष में है, फिर भी क्या वजह है कि केंद्र में पार्टी सत्ता में है और सूबे का राज्यपाल कोर्ट में सुनवाई टालने का आग्रह कर रहा है।
सियासत के जानकारों का मानना है कि 35ए सिर्फ संवैधानिक प्रावधान या कानूनी नहीं ,राजनीतिक मसला बन चुका है। सत्ता के लिए मुस्लिम वोट बैंक और अलगाववाद का तुष्टिकरण जरूरी है। विधानसभा की 87 में से 37 सीटें जम्मू संभाग की हैं, जिनमें से 20 पर मुस्लिम वोटर अहमियत रखते हैं। 46 कश्मीर संभाग में और लद्दाख की चार में से दो सीटों पर मुस्लिम वोटर प्रत्याशी की जीत में अहम हैं। कश्मीर की 95 फीसद आबादी मुस्लिम है।
एनसी और पीडीपी की सियासत कश्मीर केंद्रित है। इनका राजनीतिक एजेंडा ऑटोनामी और सेल्फ रूल है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को न्यायालय पर छोड़ दिया है।
भाजपा 35 ए को हटाने के पक्ष में है। सर्वोच्च न्यायालय में जिस संगठन वी द सिटीजन्स संस्था ने 35ए के मुद्दे पर जनहित याचिका दायर की है, वह आरएसएस से संबंधित बताई जाती है। गठबंधन सरकार में रहते हुए भाजपा ने कभी स्थानीय स्तर पर 370 और 35ए को समाप्त करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रविंद्र रैना कहते हैं कि 35ए फ्रॉड है। पश्चिमी पाक के शरणार्थियों को कोई नहीं निकाल सकता है।
कश्मीर मामलों के जानकार अहमद अली फैयाज के अनुसार 370 हो या 35ए, दोनों को न केंद्र सरकार भंग कर सकती है न कोर्ट , क्योंकि कश्मीर में अलगाववादियों की तूती बोलती है, वे कश्मीर में क्या बखेड़ा करेंगे, सभी को पता है।
केंद्र के इशारे पर ही उठाया कदम
राज्यपाल एनएन वोहरा के शासन में 35ए पर सुनवाई को टालने का आग्रह केंद्र सरकार के इशारे पर ही किया गया है, क्योंकि वह केंद्र के प्रतिनिधि हैं। अगर अदालत 35ए को रद करती है तो कश्मीर में दोबारा 2016 जैसे हालात पैदा होने से नहीं रोके जा सकते। यह बात महबूबा मुफ्ती भी कह चुकी हैं। राज्यपाल के लिए बेहतर यही है कि जो भी निर्वाचित सरकार आए, वही इस विषय पर अंतिम फैसला ले और अदालत में अपना पक्ष रखे।
35ए के समर्थन में कश्मीर की आजादी ब्रिगेड
कश्मीर के अलगाववादी ही नहीं आतंकी संगठन भी 35ए का समर्थन करते हैं जबकि यह अनुच्छेद भारतीय संविधान का हिस्सा है, जम्मू कश्मीर संविधान का नहीं। इसे कश्मीर की आजादी ब्रिगेड का दोगलापन ही कहा जाएगा कि वह भारतीय संविधान को नकारती है लेकिन अपने फायदे वाले प्रावधानों को लेकर इसका समर्थन करती है। अलगाववादियों को डर है कि अनुच्छेद 35ए हटने से कश्मीर में भारत के विभिन्न हिस्सों से लोग आकर बसेंगे, जिनमें से अधिकांश गैर मुस्लिम होंगे और इससे कश्मीर में मुस्लिम अल्पसंख्यक होने के साथ साथ कश्मीर में अलगाववादी एजेंडा कमजोर पड़ेगा।
कांग्रेस व भाजपा में अंतर नहीं: लब्बा राम
35ए को सर्वोच्च अदालत में चुनौती देने वालों में शामिल लब्बा राम गांधी कहते हैं हमारे लिए कांग्रेस और भाजपा में कोई अंतर नहीं है। आज केंद्र में भाजपा की सरकार है, जो 370 और 35ए हटाने को अपना राजनीतिक एजेंडा बताती है, लेकिन कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठा पाई है।
अगर जम्मू कश्मीर में होता तो प्रधानमंत्री नहीं बन पाता: मनमोहन
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 2014 में जम्मू में स्थानीय प्रतिनिधियों से कहा था मैं खुद पश्चिमी पाकिस्तान का शरणार्थी हूं, अगर मैं जम्मू कश्मीर में होता तो प्रधानमंत्री तो क्या गांव का प्रधान भी नहीं बन पाता। इसकी पुष्टि लब्बा राम भी करते हैं।
1954 में लागू हुआ था अनुच्छेद
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 35ए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश जारी कर 14 मई, 1954 को लागू किया गया था। इस अनुच्छेद के जरिए वहां की विधानसभा को राज्य के स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार मिलता है।
पश्चिमी पाक के शरणार्थियों को दिक्कत
पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी और देश के विभिन्न हिस्सों से आकर जम्मू कश्मीर में बसे लोग न अपने नाम पर जमीन खरीद सकते हैं, न राज्य की सरकारी नौकरियां कर कर सकते हैं। विधानसभा, स्थानीय निकायों और पंचायतों के न तो चुनाव लड़ सकते हैं और न वोट डाल सकते हैं। सिर्फ संसदीय चुनावों में वोट डाल सकते हैं। राज्य सरकार के प्रोफेशनल कॉलेजों में भी इस वर्ग के छात्र नहीं पढ़ सकते।